रांची:झारखंड की धरती ने कई सपूतों को जन्म दिया है जिन्होंने आजादी और अपनी धरती की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दे दी. अंग्रेज इन सपूतों के शौर्य से कांपते थे. ये क्रांतिकारी भले ही कम उम्र में ही देश के लिए न्योछावर हो गए लेकिन उन्होंने आजादी और आदिवासियों के हक के लिए जो मशाल जलाई वह युगों-युगों तक रोशन होती रहेगी.
तिलका मांझी ने छेड़ी थी पहली जंग
झारखंड के साहिबगंज जिले के राजमहल में 11 फरवरी 1750 को तिलका मांझी का जन्म हुआ. तिलका मांझी पहाड़िया जनजाति से आते हैं. जब वो बड़े हुए तो अंग्रेजों का जुल्म-अत्याचार देखा. उन्होंने अंग्रेजों और उनके समर्थक सामंतों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. 1771 से 1784 के तिलका मांझी ने अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला वार किया. अंग्रेजों ने 1781 में हिल काउंसिल का गठन किया लेकिन इससे भी पहाड़िया जनजाति पर अत्याचार कम नहीं हुआ. फिर 13 जनवरी 1784 को तिलका मांझी ने ताड़ के पेड़ पर चढ़कर कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैंड को तीर से मार दिया.
1758 में दी गई थी फांसी
अंग्रेजों की लाख कोशिश के बाद भी तिलका मांझी उनकी पकड़ में नहीं आ रहे थे. फिर 'फूट डालो और राज करो' की नीति अपनाई और पहाड़िया समुदाय के लोगों को उनके खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया, उन्हें लालच भी दिया जाने लगा. एक बार अंग्रेजी सैनिकों ने तिलका मांझी के गुरिल्ला आर्मी पर हमला कर दिया, जिसमें उनके कई लड़ाके मारे गए और वो खुद भी पकड़े गए. 35 साल की उम्र में 13 जनवरी 1785 को उन्हें फांसी दे दी गई.
ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव
ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव का जन्म 12 अगस्त 1817 को एक नागवंशी राज परिवार में हुआ था. पिता रघुनाथ शाहदेव की मौत के बाद उन्होंने बड़कागढ़ की गद्दी संभाली. उन्होंने मुक्ति वाहिनी सेना का गठन किया. उस समय अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की आग सुलग रही थी. कई रजवाड़े अंग्रेजों की नीति के कारण नाराज थे. इस बीच ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव छोटा नागपुर को ब्रिटिश सत्ता से मुक्ति दिलाने के लिए लड़ाई शुरू कर दी. उन्हें शेख भिखारी, टिकैत उमरांव सिंह और पांडेय गणपत राय समेत कई लड़ाकों को एक साथ जोड़ा. सभी ने उनके नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का निश्चय किया. इस बीच 1887 के विद्रोह का बिगुल बज चुका था.
रामगढ़ छावनी में भी विद्रोह की आग भड़क गई चुकी थी. यहां पर ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने अपने सबसे भरोसेमंद शेख भिखारी और टिकैत उमरांव सिंह को भेजा. जहां पर ब्रिटिश छावनी में विद्रोह के बाद कई लोग इनके साथ जुड़ गए. कई मौकों पर ठाकुर की सेना और अंग्रेजों के बीच जबरदस्त लड़ाई हो चुकी थी. अंग्रेजों की यहां पर एंट्री नहीं हो पा रही थी. डोरंडा छावनी से अंग्रेजी सेना ने हटिया पर आक्रमण कर दिया. जहां अंग्रेजी सेना को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा. लड़ाई के दौरान चतरा से लौटने के दौरान एक घर में वो आराम करने लगे जहां से अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और 16 अप्रैल 1858 में उन्हें फांसी दे दी गई.
शेख भिखारी और टिकैत उमरांव सिंह
शेख भिखारी का जन्म 1819 में रांची जिले के होक्टे गांव में हुआ था. अंसारी परिवार से होने के नाते उन्होंने बचपन से ही अपने खानदानी पेशा अपना लिया. कपड़े तैयार कर ग्रामीण हाट बाजार में बेचने लगे. जव वो वयास्क हुए तो छोटा नागपुर महाराज के यहां नौकरी शुरू कर दी. बाद में बड़कागढ़ के राजा ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने उन्हें अपने यहां दीवान की नौकरी दी. उन्हें एक फौज की जिम्मेवारी दी गई. जब अंग्रेजों ने 1857 में अचानक हमला कर दिया उस समय शेख भिखारी ने अंग्रेज अफसर को मार गिराया.
शेख भिखारी ने रामगढ़ रेजिमेंट के कई लड़ाकों को अपने फौज में शामिल कर दिया और रांची, चाईबासा और संथाल परगना से अंग्रेजों को खदेड़ दिया. पहाड़ के रास्ते अंग्रेज रांची आने लगे लेकिन शेख भिखारी और टिकैत उमरांव की सैनिकों ने उनका जमकर मुकाबला किया. बाद में अंग्रेज गुप्त रास्ते पहाड़ पर चढ़ गए और उन्हें घेर कर पकड़ लिया बाद में 8 जनवरी 1858 को शेख भिखारी और टिकैत उमरांव सिंह को बरगद के पेड़ से लटकाकर फांसी की सजा दे दी गयी. शेख भिखारी की तरह टिकैत उमरांव सिंह भी जगन्नाथपुर के राजा ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के यहां काम करते थे.
सिदो-कान्हू, चांद-भैरव
झारखंड के साहिबगंज जिले के भोगनाडीह गांव में सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू का जन्म हुआ था. सिदो का जन्म 1815 में जबकि कान्हू का जन्म 1820 में हुआ था. इनके दो और भाई थे, एक चांद थे, जिनका जन्म 1825 में और दूसरे भैरव थे जिनका जन्म 1835 में हुआ था. ये छ भाई-बहन थे. बहनों का नाम फूलो और झानो था.