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पूर्व छात्र ने आईआईटी मद्रास को दान किए 228 करोड़ रुपये, जानिए कौन हैं डॉ. कृष्णा शिवुकुला - IIT Madras

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 6, 2024, 9:58 PM IST

IIT Madras Gets Largest Single Donation from alumnus Dr Krishna Chivukula : आईआईटी मद्रास को पूर्व छात्र डॉ. कृष्णा शिवुकुला ने संस्थान को 228 करोड़ रुपये का दान किया है, जो संस्थान के इतिहास में एक पूर्व छात्र की ओर से सबसे बड़ा दान बताया गया है. शिवुकुला ने आईआईटी मद्रास से 1970 में एमटेक किया था.

IIT Madras Gets Largest Single Donation from alumnus Dr Krishna Chivukula
डॉ. कृष्णा शिवुकुला (ETV Bharat)

चेन्नई: आईआईटी मद्रास को पूर्व छात्र की तरफ से अब तक का सबसे बड़ा दान मिला है. आईआईटी मद्रास के पूर्व छात्र डॉ. कृष्णा शिवुकुला ने 228 करोड़ रुपये का दान किया है, जो चेन्नई स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के इतिहास में एक पूर्व छात्र की तरफ से सबसे बड़ा दान बताया गया है.

कृष्णा शिवुकुला आईआईटी मद्रास में एमटेक 1970 बैच के छात्र रहे हैं. 1997 में शिवुकुला भारत में 'मेटल इंजेक्शन मोल्डिंग' (एमआईएम) नामक अत्याधुनिक इंजीनियरिंग विनिर्माण तकनीक लेकर आए, जबकि यह अभी भी अमेरिका में एक उभरती हुई तकनीक है. वर्तमान में उनकी कंपनी, इंडो यूएस एमआईएम टेक (INDO US MIM Tec) क्षमता और बिक्री के मामले में एमआईएम प्रौद्योगिकी में दुनिया में पहले नंबर पर है और इसका अनुमानित कारोबार लगभग 1,000 करोड़ रुपये है. आईआईटी मद्रास ने 2015 में डॉ. कृष्णा शिवुकुला को 'विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार' से सम्मानित किया था.

वहीं, आईआईटी मद्रास परिसर में मंगलवार को आयोजित एक समारोह में संस्थान की एक इमारत का नाम कृष्णा शिवुकुला के सम्मान में रखा गया. इस कार्यक्रम में डॉ. कृष्णा शिवुकुला, उनकी पत्नी जगतमपाल, आईआईटी चेन्नई के निदेशक वी. कामाकोडी, आईआईटी डीन (पूर्व छात्र और कॉर्पोरेट संबंध) प्रो. महेश पंचकनुला, प्रोफेसर, शोधकर्ता और छात्र शामिल हुए.

आईआईटी ने मुझे बेहतरीन शिक्षा दी...
डॉ. कृष्णा शिवुकुला ने इस अवसर पर मीडिया से बात करते हुए कहा, "मैं 55 वर्षों से अमेरिका में रह रहा हूं. वहां अमीर लोग पूर्व छात्र के रूप में अपने विश्वविद्यालयों के विकास के लिए करोड़ों रुपये दान करते हैं. इन पैसों का उपयोग छात्र शोध के लिए करते हैं. गरीब परिवार से होने के बावजूद आईआईटी ने मुझे बेहतरीन शिक्षा दी. मैंने आईआईटी मद्रास से मात्र 12.50 रुपये में एमटेक की पढ़ाई की. इससे पहले मैं 5.10 करोड़ रुपये दान कर चुका हूं."

उन्होंने आगे कहा, "एक सुबह अचानक मेरे मन में विचार आया. मैंने अपनी कंपनी में अपना हिस्सा और उसका मूल्य रखकर अनोखे तरीके से फंड देने का विचार किया. अब मैंने और अधिक फंड दिया है."

भारत में औद्योगिक कंपनियों पर विनियमन कम होना चाहिए...
उन्होंने कहा कि अमेरिका और भारत में अंतर यह है कि अमेरिका पूंजीवादी देश है, लेकिन भारत लोकतांत्रिक देश है. जैसे-जैसे भारत पूंजीवादी देश बनता जाएगा, वैसे-वैसे और अधिक विकास हो सकता है. भारत में औद्योगिक कंपनियों पर विनियमन कम होना चाहिए और व्यापारियों को आयकर का उचित भुगतान करना होगा. भारत का औद्योगिक विकास तभी आगे सकता है जब काला धन समाप्त हो जाए. हम बेंगलुरु में 2,500 बच्चों को दोपहर का भोजन उपलब्ध कराते हैं. मैं हिंदू हूं, लेकिन मैं एक ईसाई अस्पताल को दान कर रहा हूं जो बहुत अच्छा काम कर रहा है.

डॉ. शिवुकुला ने आगे कहा, "आईआईटी मद्रास में मेरी शिक्षा, बेहद यादगार और आनंददायक होने के अलावा, मुझे जीवन में बहुत कुछ हासिल करने में सक्षम बनाती है और मुझे ऐसी स्थिति में लाती है जिससे मैं संस्थान को एक उपहार दे सकता हूं - जो भारत में किसी विश्वविद्यालय को अब तक का सबसे बड़ा एकल दान है!"

शिक्षा के लिए धन दान करना खुशी की बात...
वहीं, शिवुकुला की पत्नी जगतमपाल ने कहा, "यह खुशी की बात है कि उनके पति आईआईटी मद्रास को धन दान कर रहे हैं. वह पहले से ही कर्नाटक में स्कूली बच्चों को भोजन उपलब्ध करा रहे हैं. इसी तरह, शिक्षा के लिए धन दान करना भी खुशी की बात है."

हम शिवुकुला के महान योगदान के लिए आभारी...
इस अवसर पर आईआईटी मद्रास के निदेशक प्रो. वी. कामकोटी ने कहा, "हमारे पूर्व छात्र कई दशकों के बाद भी अपने संस्थान को याद करते हैं, यह इस तथ्य को पुष्ट करता है कि शिक्षा ही एकमात्र अमर धन है जो हम मानव जाति को दे सकते हैं. हम कृष्णा शिवुकुला के महान योगदान के लिए उनके आभारी हैं, जो ज्ञान की खोज में छात्रों की कई भावी पीढ़ियों को लाभान्वित करेगा."

डॉ. कृष्णा शिवुकुला को धन्यवाद देते हुए आईआईटी मद्रास के डीन (पूर्व छात्र और कॉर्पोरेट संबंध) प्रो. महेश पंचाग्नुला ने कहा, "डॉ. कृष्णा शिवुकुला न केवल एक सफल तकनीकी-व्यवसायी हैं, बल्कि एक आदर्श पूर्व छात्र भी हैं. उनकी विनम्रता और उदारता पूर्व छात्रों की पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय विशेषताओं के रूप में खड़ी रहेगी."

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