नई दिल्ली: तमिलनाडु के एक जोड़े ने 2013 में चेन्नई में शादी की और बाद में दोनों ब्रिटेन चले गए, जहां वे साढ़े सात साल तक एक साथ रहे. बाद में उनके रिश्ते में दरार आ गई और वे अप्रैल 2021 में अलग हो गए. पत्नी ने पति से सारे रिश्ते तोड़ लिए और बातचीत भी बंद कर दी. इस बीच दंपती का मामला अदालत में पहुंचा और पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की. हालांकि पत्नी ने पति को नपुंसक बताते हुए तलाक की मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने इसी सप्ताह की शुरुआत में पति की उस याचिका को मंजूर कर लिया, जिसमें पति ने अपना पोटेंशियलिटी टेस्ट कराने की मांग की थी.
मामले में सुनवाई कर रही जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा, हम पति की अपील को आंशिक रूप से ट्रायल कोर्ट द्वारा 27 जून, 2023 को पारित आदेश को बरकरार रखते हुए स्वीकार करते हैं. पीठ ने कहा कि आज से चार सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित निर्देश के तहत परीक्षण किया जाए और उसके बाद दो सप्ताह के भीतर शीर्ष अदालत को रिपोर्ट सौंपी जाए.
ब्रिटेन से लौटने के बाद भी पति-पत्नी साथ रहे. महिला अपने पिता के घर में रह रही थी, जहां उसके साथ उसका पति भी रहता था. हालांकि, इस दौरान दोनों के बीच विवाद हो गए और दोनों के रिश्ते में दरार आ गई. 2021 में, पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के तहत चेन्नई की एक परिवार अदालत में आवेदन दायर किया और वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की. हालांकि, पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1) (आईए) के तहत तलाक की याचिका इस आधार पर दायर की कि पति की नपुंसकता के कारण उनका विवाह अधूरा है.
इसके बाद पति ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के तहत ट्रायल कोर्ट के समक्ष आवेदन दायर किया और खुद के पोटेंशियलिटी टेस्ट की मांग की. साथ ही पत्नी के प्रजनन परीक्षण और मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण की मांग की. ट्रायल कोर्ट ने पति के आवेदनों को इस शर्त पर मंजूर कर लिया कि पति-पत्नी का परीक्षण करने के लिए चेन्नई के राजीव गांधी गवर्नमेंट जनरल हॉस्पिटल के डीन द्वारा मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाएगा. कोर्ट ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट एडवोकेट कमिश्नर के जरिये सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंपी जाएगी। साथ ही अदालत ने निर्देश कि दोनों पक्ष परीक्षण के नतीजे किसी तीसरे पक्ष को नहीं बताएंगे और गोपनीयता बनाए रखेंगे.