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मेवाड़ के इस गांव में आज खेली जाएगी 'बारूद की होली' - Gunpowder Holi in Menar - GUNPOWDER HOLI IN MENAR

पूरे देश में होली का पर्व बड़े धूमधाम से अलग-अलग अंदाज में मनाया जाता है. कहीं रंगों से होली खेली जाती है तो कहीं लठमार होली तो कहीं कोड़ामार होली. लेकिन राजस्थान में एक ऐसी जगह है जहां होली का त्योहार बड़े ही अलग अंदाज में मनाया जाता है. होली खेलने का तरीका यहां इतना अनूठा है कि लोग भी एक बार के लिए उलझन में पड़ जाते हैं कि आखिर यहां होली खेली जा रही है या दिवाली मनाई जा रही है .

'बारूद की होली'
'बारूद की होली'

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Mar 26, 2024, 10:32 AM IST

उदयपुर.दक्षिणी राजस्थान के एक गांव में आज बारूद से होली खेली जाएगी. जहां देश-दुनिया में सोमवार को लोगों ने गुलाल और फूलों से होली खेली तो वहीं आज जमराबीच के अवसर पर राजस्थान का एक गांव में बंदूक और तोप की गूंज सुनाई देगी. लेकिन राजस्थान के मेवाड़ में आज यानी मंगलवार को बारूद से होली खेली जाएगी. इस होली को लेकर न सिर्फ गांव के लोगों में विशेष उत्साह रहता है. बल्कि इसे देखने के लिए दूर-दूर से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. उदयपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर मेनार गांव की होली इतिहास के उस कहानी को बयां करती है जिसमें यहां के लोगों ने मुगलों को मुंहतोड़ जवाब दिया था.

इस गांव की अनूठी होली : मेनार गांव की होली अपने आप में अनूठी है, क्योंकि यहां खेली जाने वाली होली रंग और फूलों की नहीं, बल्कि पटाखे और गोला-बारूद की होती है. स्थानीय लोगों के अनुसार आज से करीब 500 वर्ष पूर्व इस गांव के रणबांकुरों ने मुगलों की सेना को शिकस्त देने के उत्साह में इस अनूठी होली का आयोजन किया जाता है. इस दिन शाम ढलने के साथ ही गांव में होली की तैयारियां परवान चढ़ने लगती हैं. मेनार गांव में मेनारिया समाज के लोग अपने हाथों में गोला-बारूद के साथ होली खेलना शुरू कर देते हैं. जानकारों के अनुसार इस गांव में पिछले 500 साल से इस परंपरा का निर्वहन बदस्तूर जारी है, जिसके पीछे कहानी है. मुगलों की सेना को इस इलाके के रणबांकुरों ने अपने शौर्य और पराक्रम के बल पर शिकस्त दी थी. उसी खुशी में जमराबीज के दिन यहां की अनूठी होली मनाई जाती है.

अजब है ये गांव

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पिछले 500 वर्षों से परंपरा जारी: मेनार गांव में इस होली को लेकर देश-दुनिया में रहने वाले इस गांव के लोग इस त्योहार को मनाने के लिए अपने घर आते हैं. ऐसे में पूरा गांव जमराबीज के दिन काफी खूबसूरत तरीके से रंग-बिरंगी लाइटें सजी हुई नजर आती हैं.वहीं, शाम ढलने के साथ ही गांव के अलग-अलग रास्तों से रणबांकुरों की टोलियां सेना की टुकड़ियों के वेश में अलग-अलग रास्तों से मुख्य चौक में पहुंचती हैं. इसके बाद यहां बंदूक और बारूद की चिंगारियां उस दिन की याद दिलाती हैं, जिस दिन यहां के आसपास के इलाकों में रणबांकुरों ने मुगल आक्रांताओं को धूल चटा दी थी. 500 साल से चली आ रही इस परंपरा को अब बारूद की होली के नाम से पहचाना जाने लगा है.

बारूद वाली होली का इतिहास : इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि उदयपुर से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर मेनार गांव में जमराबीज के उपलक्ष्य में इस अनूठी होली का आयोजन किया जाता है. इस गांव की होली का अपना एक विशेष इतिहास और परंपराएं जुड़ी हुई हैं. उन्होंने बताया कि जब महाराणा प्रताप ने मुगलों से संघर्ष के लिए हल्दीघाटी के युद्ध की शुरुआत की थी. ऐसे में प्रताप ने मेवाड़ के हर व्यक्ति को उस चेतना से जोड़ते हुए स्वाभिमान का पाठ पढ़ाया था. इसी के बाद में अमर सिंह के नेतृत्व में मुगल थानों पर हमले किए जा रहे थे.

पिचकारी की जगह चलेंगी बंदूकें

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उन्होंने बताया कि मेनार के पास मुगलों की एक छावनी हुआ करती थी. ऐसे में मुगलों की छावनी का जो अत्याचार था, इससे मुक्ति पाने के लिए मेनार के ही ग्रामवासियों ने मुगलों के अत्याचार का मुंहतोड़ जवाब देने की योजना बनाई. मेनार के लोगों ने एकजुट होकर मुगलों का मुंहतोड़ जवाब दिया. लोगों ने मुगलों की छावनी पर भीषण आक्रमण करते हुए वहां की सेना को शिकस्त दी. इसके बाद में जो जीत हासिल हुई थी, उसी की याद में यहां हर साल मेनार की अनूठी होली खेली जाती है.

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