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बचपन में मांगती थी भीख, अब MBBS कर बनी डॉक्टर - Himachal Beggar Girl became Doctor

हिमाचल के धर्मशाला की पिंकी हरयान एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करके डॉक्टर बन गई है. बच्चपन में पिंकी अपनी मां संग भीख मांगा करती थी.

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 4 hours ago

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Updated : 3 hours ago

Dharamshala Begging Girl Pinky become Doctor
धर्मशाला की पिंकी बनी डॉक्टर (ETV Bharat)

धर्मशाला: हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में एक लड़की जो पहले भीख मांग कर गुजारा करती थी, वो अब डॉक्टर बन गई है. नामुमकिन लगने वाले इस काम को धर्मशाला की पिंकी ने अपनी मेहनत और एक बौद्ध भिक्षु की मदद से मुमकिन करके दिखा दिया है. दरअसल मैक्लोडगंज में भगवान बुद्ध के मंदिर के पास साढ़े चार साल की मासूम पिंकी हरयान कभी अपनी मां के साथ लोगों के आगे हाथ फैलाकर भीख मांगती थी, लेकिन बुद्ध की दया और करुणा के प्रतीक तिब्बती शरणार्थी भिक्षु जामयांग ने अन्य भीख मांगने और कूड़ा बीनने वाले बच्चों के साथ उसे भी अपना बच्चा बनाकर नई जिंदगी दे दी. जिसके चलते आज ठीक बीस साल बाद वो ही लड़की एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करके डॉक्टर बन गई है.

माता-पिता संग झुग्गी में रहती थी डॉ. पिंकी

पिंकी हरयान का कहना है, "मुझे डॉक्टर बनने पर बहुत खुशी हो रही है. मुझे अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाना बहुत पसंद है." पिंकी ने बताया कि 2004 में वो अपनी मां कृष्णा के साथ मैक्लोडगंज में त्योहारों के सीजन में बुद्ध मंदिर के पास भीख मांग रही थी. तभी भिक्षु जामयांग की नजर उन पर पड़ी. कुछ दिन बाद भिक्षु जामयांग चरान खड्ड की झुग्गी-बस्ती में आए, जहां पिंकी अपने परिवार के साथ रहती थी. भिक्षु जामयांग ने पिंकी को देखते ही पहचान लिया. उसके बाद उन्होंने पिंकी के पिता कश्मीरी लाल से अनुरोध किया कि वो पिंकी को पढ़ाई करने के लिए उनके नए शुरू किए गए टोंगलेन चैरिटेबल ट्रस्ट के हॉस्टल में भेज दें. ये हॉस्टल चरान खड्ड की गंदी झुग्गियों में रहने वाले उन बच्चों के लिए था, जो भीख मांगते थे या फिर सड़कों पर कूड़ा बीनते थे. उसके पिता कश्मीरी लाल बूट पॉलिश करते थे.

कभी बचपन में मां संग मांगी थी भीख, अब बनी डॉक्टर (ETV Bharat)

बच्चपन से था डॉक्टर बनने का सपना

पिंकी ने बताया कि उसके माता-पिता ने शुरुआती ना-नुकुर के बाद उसे जामयांग को सौंप दिया. पिंकी कहती है, "मैं टोंगलेन चैरिटेबल ट्रस्ट के हॉस्टल में शामिल किए गए बच्चों के पहले बैच में थी. शुरू-शुरू में मैं बहुत रोती थी और घर वालों को याद करती थी, लेकिन धीरे-धीरे अन्य बच्चों के साथ हॉस्टल में मन लग गया."वहीं अन्य बच्चों के साथ पिंकी का भी धर्मशाला के दयानंद मॉडल स्कूल में दाखिला कर दिया गया. स्कूल में टीचर्स द्वारा पूछने पर कि बड़े होकर वो क्या बनेगी? पिंकी का हर बार एक ही जवाब होती था- डॉक्टर. हालांकि तब उन्होंने नहीं सोचा था कि अपने पैशन का पीछा करते हुए वो एक दिन सच में डॉक्टर बन जाएंगी.

भिक्षु जामयांग के साथ डॉक्टर पिंकी (ETV Bharat)

चीन की मेडिकल यूनिवर्सिटी से पूरी की MBBS

भिक्षु जामयांग ने बताया, "पिंकी पढ़ाई में शुरू से बहुत अच्छी थी. 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही उसने नीट की परीक्षा भी पास कर ली थी. उसे किसी प्राइवेट कॉलेज में प्रवेश मिल सकता था, लेकिन वहां फीस बहुत अधिक थी. इसलिए उन्होंने उसे चीन के एक प्रतिष्ठित मेडिकल विश्वविद्यालय में 2018 में दाखिला दिला दिया. वहां से 6 साल की एमबीबीएस की डिग्री पूरी करके अब पिंकी धर्मशाला लौट आई है."

मां को भी भीख मांगने से किया मना

पिंकी बताती हैं कि जब वो हॉस्टल में रहकर पढ़ने लगी तो उसने अपनी मां को भीख मांगने से मना किया. वो कहती हैं, "मेरे पिता बूट पॉलिश का काम छोड़कर अब गलियों में चादर और दरी बेचने का काम करते हैं. वहीं, मेरी मां अब टोंगलेन द्वारा स्लम के छोटे बच्चों के लिए खोले गए स्कूल में बच्चों की मैंटेनेस का काम करती हैं" पिंकी का एक छोटा भाई और बहन है. जो कि सभी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित टोंगलेन स्कूल में पढ़ते हैं, जिसका उद्घाटन 2017 में दलाई लामा ने किया था.

टोंगलेन स्कूल (ETV Bharat)

पिछले 19 वर्ष से टोंगलेन के साथ जुड़े उमंग फाउंडेशन शिमला के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने कहा, "भिक्षु जामयांग बच्चों को पैसा कमाने की मशीन बनाने की बजाय अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करते हैं. उन्होंने धर्मशाला और आसपास की झुग्गी झोपड़ियां के बच्चों के लिए अपनी सारी जिंदगी समर्पित कर दी है. उनके द्वारा अपनाए गए बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार और होटल मैनेजर आदि बन चुके हैं, जो कभी भीख मांगते थे या कूड़ा बीनते थे."

भिक्षु जामयांग और टोंगलेन टीम को दिया श्रेय

वहीं, पिंकी खुद के भिखारी से डॉक्टर बनने का श्रेय भिक्षु जामयांग और टोंगलेन की पूरी टीम को देती है. वो ये भी कहती हैं कि उसके माता-पिता ने शिक्षा के महत्व को समझकर हर कदम पर उसका साथ दिया. जबकि जामयांग का कहना है कि शुरुआत में उन्हें नहीं पता था कि बच्चों में इतनी प्रतिभा छिपी हुई है. वो तो यह सोचकर बच्चों के साथ जुड़े थे कि उन्हें थोड़ा बहुत पढ़ा लिखा देंगे, ताकि वे अपना नाम लिखना सीख जाएं, लेकिन झुग्गी झोपड़ियों के वही बच्चे अब समाज को प्रेरणा दे रहे हैं.

वहीं, डॉक्टर बनने के बाद पिंकी का कहना है, "अब मैं झुग्गी झोंपड़ी में रहने वाले बच्चों और लोगों की सेवा करना चाहती हूं. एक डॉक्टर होने के नाते ये मेरी जिम्मेदारी है कि मैं एक काबिल डॉक्टर बनने के बाद मैं अपनी स्लम कम्युनिटी को सर्व करूं."

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