कांगड़ा/नाहन: अमेरिका से डिपोर्ट होकर आ रहे लोगों की कहानियां एक जैसी ही हैं. परिजनों को समझ नहीं आ रहा है कि अपनों के आने की खुशी मनाएं या फिर जो कर्ज बेटों को भेजने के लिए लिया था उसे कैसे चुकाना है इसका बंदोबस्त करें. कर्ज कैसे उतारेंगे ये सोच कर परिजनों की आंखें छलक रही हैं. अमेरिका से डिपोर्ट होकर लौटे अधिकतर लोग जमीन बेचकर या फिर कर्ज का बोझ सिर पर लादकर अमेरिका अपने सपने की गठरी लेकर गए थे. डिपोर्ट होकर आए तो सपनों की गठरियां पीछे छूट गई.
हिमाचल के जिला कांगड़ा के इंदौरा उपमंडल में मिलवां गांव में एक घर है. घर की चारदीवारी ईंटों से बनी है. दीवारों पर प्लास्टर नहीं है. दीवारों पर सफेदी की जगह पर्दे लटक रहे हैं. गांव की महिलाओं की भीड़ घर में जुटी है. ये भीड़ किसी खुशी में नहीं बल्कि परिवार को सांत्वना देने के लिए आई है, क्योंकि मिलवां गांव का रोहित भी अमेरिका से डिपोर्ट होकर सोमवार को घर पहुंचा है. रोहित के पिता का देहांत हो चुका है. मां मिड डे मील वर्कर है. रोहित इसी घर में मां के साथ रहता है. घर की बैरंग दीवारों और अपनी जिंदगी में रंग भरने के लिए रोहित अमेरिका गया था. माता आशा रानी सरकारी स्कूल में मिड-डे मील हेल्पर हैं.
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रोहित आंखों में हजार सपने लिए अमेरिका जाने के लिए जहाज में बैठा था, लेकिन एजेंटों ने उसे भी डंकी रूट से अमेरिका भेज दिया. रोहित अमेरिका अपने साथ जो सपने लेकर गया था वो अब एजेंटों की चालाकी और जालसाजी के कारण मिट्टी हो चुके हैं. रोहित रविवार देर रात को अन्य भारतीय के साथ डिपोर्ट होकर अमृतसर एयरपोर्ट पहुंचा था. रोहित अब एकदम खामोश है. उसने अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया है.

बॉर्डर क्रॉस करते ही पुलिस ने पकड़ा
रोहित ने बताया कि, 'पहले हमें मुंबई, मलेशिया, एम्स्टरडैम, पनामा भेजा गया, फिर डेढ़ महीने में डंकी रूट के जरिए मैक्सिको पहुंचे. इसके बाद टैक्सी में तीन चार दिन सफर करने के बाद डॉंकर्स ने अमेरिकन बॉर्डर क्रॉस करवा दिया, जैसे ही हमने बॉर्डर क्रॉस किया पुलिस ने हमे पकड़ लिया. पकड़ कर हमें पुलिस स्टेशन ले गए. इसके बाद में कैंप में फेंक दिया गया. हमें 18 दिन कैंप में रखा गया. न कोई कार्रवाई की गई न ही कोई ब्यान दर्ज किए गए और न ही किसी बात करने दी गई. हमारे हाथ और पांव में हथकड़ियां थी. हमें दूसरे कैंप में शिफ्ट करने के नाम पर प्लेन में बिठाया. प्लेन में बिठाने के बाद बताया गया कि उन्हें डिपोर्ट किया गया है.'

बैंक का कर्ज उतारने की चिंता
रोहित की बहन ने बताया कि, 'अमेरिका जाने के लिए एक साल पहले अमृतसर के एक एजेंट से संपर्क किया था. कागजात तैयार करने के बाद एजेंट ने उसे अमृतसर एयरपोर्ट पर एक सप्ताह तक रखा और फिर वहां से दुबई भेज दिया. आठ महीनों तक एजेंट ने उसे दुबई में ही रखा. आठ महीने के बाद कई देशों से होते हुए रोहित को मैक्सिको बॉर्डर पर पहुंचा दिया. इसके बाद एजेंट ने फोन कर चार लाख रुपये और मांगे. इसके बाद दोबारा एजेंट ने पैसों की मांग की थी, जबकि उसने 34 लाख रुपये पहले ही अपने खाते में डलवा लिए थे. मैक्सिको पहुंचने के बाद फिर एजेंट ने फोन किया और उसके लिए अच्छा वकील करने के लिए फिर पैसे मांगे. कुछ दिन बाद एजेंट ने फोन करके बोला कि मेरे को अब फोन मत करना और उस समय से आज तक एजेंट ने फोन नहीं उठाया. घर पर मां और बहन का रो-रोकर बुरा हाल है. मां का कहना है कि अब वो बैंको का कर्ज कैसे उतारेंगे.'
नौकरी से ज्यादा नशा बिक रहा है
रोहित की मां आशा ने बताया कि, 'अब हमारे बच्चे क्या करेंगे. बेरोजगार होने पर बच्चे अब नशे के चंगुल में न फंस जाएं, जितनी यहां नौकरियां नहीं हैं उससे ज्यादा यहां नशा बिक रहा है. अगर हमारे बच्चों के लिए यहां रोजगार हो तो वो बाहर क्यों जाएंगे. एजेंट पर केस दर्ज होना चाहिए, क्योंकि उसने हमारे साथ धोखा किया है. सरकार को इस मामले पर कुछ करना चाहिए.'
एजेंट शातिर तरीके से बिछाते हैं जाल
शायद इतनी किराने की दुकानें नहीं जितनी फर्जी एजेंटों ने गली मोहल्ले में विदेश भेजने के नाम पर अपनी दुकानें खोल रखी हैं. एजेंट एक नंबर में (पासपोर्ट और वर्क वीजा) में अमेरिका, यूरोप भेजने का वादा लोगों से करते हैं. पैसे लेने के बाद या तो फोन बंद कर लेते हैं या फिर गलत रास्ते से भोले भाले और गरीब लोगों को विदेश भेजते हैं. इनके शिकार अधिकतर लोग बेरोजगारी, गरीबी का शिकार हैं. ये इन्हें हसीन सपने दिखाकर ब्रेनबॉश करते हैं और फिर होता है ठगी का खेल. इस खेल में जो एक बार फंस गया निकलना मुश्किल हैं. ये फर्जी एजेंट धीरे धीरे जेब पर कट लगाते हैं. पहले एकमुश्त कई लाख ले लेते हैं. फिर अमेरिकन बॉर्डर पहुंचने तक कई बार लाखों रुपये की डिमांड करते हैं. अब मरता क्या नहीं करता, क्योंकि डॉन्कर (डंकी रूट पर बॉर्डर पार करवाने वाला) जान से मारने की धमकी देते हैं.
वर्क वीजा के नाम पर दिखाए अमेरिका के सपने
एजेंटों ने हिमाचल के ही नाहन में पालियो पंचायत के रितेश और उसके परिवार के साथ विदेश भेजने के नाम पर ऐसा खेल रचा कि अमेरिका में नौकरी तो नहीं मिली, लेकिन ठगों ने उसे वर्क वीजा के नाम पर करीब 15 देश जरूर घुमा दिए. हर पल जान का जोखिम अलग से बना रहा. बेटे को विदेश भेजने के लिए परिवार ने पूरे 45 लाख रुपये और जीवन भर की संपत्ति भी गंवा दी.
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एजेंटों ने डंकी रूट से करवाई एंट्री
रितेश के पिता शमशेर सिंह जंगलाभूड स्कूल में एचटी के पद पर तैनात हैं. बेटे को बेहतर भविष्य के लिए अमेरिका भेजना चाहा था, लेकिन एजेंटों ने उसे डंकी रूट से एंट्री करवाई. परिवार और रितेश इस बात से बिल्कुल अनजान था. रितेश के पिता शमशेर ने बताया कि, 'उनका बेटा रितेश बी फार्मा कर रहा था. इसी बीच पिछले साल मई-जून माह में बेटा हरियाणा में नारायणगढ़ क्षेत्र के एक एजेंट के संपर्क में आया, एजेंट ने उसे अमेरिका में लाखों रुपये की नौकरी का सपना दिखाते हुए कहा कि, मुंबई में अमेरिका की एक दवा कंपनी है, जहां उसे महीने की 50-60 हजार रुपये की नौकरी मिल जाएगी और वहां से 6 महीने के बाद उसे अमेरिका भेज दिया जाएगा, वहां उसे ढाई से 3 लाख रुपये तक की सैलरी मिलेगी. इसके बाद रितेश 23 अगस्त 2024 को मुंबई चला गया. मुंबई पहुंचने पर 3-4 दिन उसकी घर पर कोई बात नहीं हुई. फोन भी स्विच ऑफ आ रहा था. 8-10 दिन बाद गयाना से व्हाट्सअप कॉल आई कि वो घबराएं नहीं, वो नौकरी के लिए अमेरिका जा रहा है, जहां पहुंचने में उसे 10-15 दिन लग सकते हैं.'
जमीन गिरवी रख बैंकों से लिया लोन
रितेश के पिता ने बताया 'गयाना सहित ब्राजील, मैक्सिको आदि कई देशों से अलग-अलग व्हाट्सअप कॉल्स आईं और वर्क वीजा के नाम पर अलग-अलग राशि की डिमांड की गई. बेटे से उतनी ही बात करवाई जाती थी, जितनी पैसे की डिमांड जालसाज करवाते थे. इस तरह से मैंने पहली बार 20 लाख और उसके बाद 10 लाख, 7 लाख, 3 लाख और 5 लाख रुपये वर्क वीजा के नाम पर भिजवाए. इसके मैंने दो अलग-अलग बैंकों से क्रमशः 20-20 लाख रुपये का लोन लिया, जिसके लिए जमीन भी गिरवी रखी. इसके अलावा 5 लाख रुपये की राशि मेरी जमा पूंजी थी.'

कई दिन रखा भूखा प्यासा
रितेश ने घर लौटने पर परिवार को बताया कि, 'डॉन्करों ने (बॉर्डर पार करवाने वाला) मैक्सिको में उसे भूखा प्यासा भी रखा. करीब 15 देश घुमाने के बाद डॉन्करों ने उसे 25 जनवरी 2025 को मैक्सिको का बॉर्डर पार करवा दिया. इसके बाद लो अमेरिका पहुंचा. अमेरिका पहुंचते ही इस पूरे मामले से उसने स्थानीय पुलिस को अवगत करवाया, लेकिन वीजा ना होने की सूरत में सीबीपी ने उसे अपनी कस्टडी में ले लिया.' कुल मिलाकर सबकी कहानी एक जैसी ही है. एजेंटों ने लोगों को अमेरिका में नौकरी के हसीन सपने दिखाए. इन झूठे सपनों के लाखों रुपये लिए. पैसा मिलते ही एजेंट अपना फोन बंद कर नौ दो ग्यारह हो गए.