देहरादून: लोकसभा चुनाव 2024 बेहद करीब है. आने वाले 19 अप्रैल को उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर मतदान होना है. ऐसे में ईटीवी भारत आपके लिए हर सीट से जुड़ी कुछ रोमांचक चुनावी किस्से-कहानियां लेकर आया है. आज बात करेंगे उत्तराखंड की सबसे महत्वपूर्ण कहे जाने वाली गढ़वाल (पौड़ी) लोकसभा सीट की. इस बार गढ़वाल लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों की जोरदार टक्कर होने की उम्मीद है, लेकिन इस सीट का सबसे चर्चित मुकाबला इतिहास में दर्ज है. बात साल 1982 की है जब उत्तराखंड (तत्कालीन यूपी) ही नहीं बल्कि पूरे देश का केंद्र बिंदु गढ़वाल लोकसभा सीट बन गई थी. ऐसा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गढ़वाल सीट पर दिलचस्पी के कारण हुआ था.
उत्तराखंड के राजनीतिक जानकार जय सिंह रावत बताते हैं कि तब इंदिरा गांधी ने गढ़वाल सीट को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया था. यहां मुकाबला सीधे हिमालय पुत्र कहे जाने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा से था. गढ़वाल लोकसभा सीट कैसे राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बिंदु बनी और इंदिरा गांधी ने इस सीट पर होने वाले चुनाव को क्यों अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ा, इसी के बारे में आज आपको विस्तार से बताते हैं.
लोकसभा चुनाव 2004 को लेकर उत्तराखंड में सबसे कड़ा मुकाबला गढ़वाल सीट पर माना जा रहा है. यहां नरेंद्र मोदी और अमित शाह के करीबी अनिल बलूनी के चुनाव मैदान में होने के कारण भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर है, तो वहीं कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल की लोकप्रियता ने इस मुकाबले को कड़ा कर दिया है. हालांकि यह सीट पहले भी कई बार राष्ट्रीय फलक पर चर्चाओं में रही है. इस सीट पर सबसे चर्चित मुकाबला साल 1982 में हुए उपचुनाव का है.
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बना लिया था प्रतिष्ठा का सवाल: दरअसल, साल 1982 में गढ़वाल लोकसभा सीट पर उपचुनाव करवाए गए थे. तब यहां तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई चरम पर दिखाई दी. बकौल जय सिंह रावत, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच वर्चस्व की लड़ाई की शुरुआत साल 1982 के चुनाव से काफी पहले ही शुरू हो गई थी.
संजय गांधी के फैसले के खिलाफ थे बहुगुणा: हेमवती नंदन बहुगुणा का संजय गांधी के फैसलों के खिलाफ जाना इंदिरा गांधी से उनकी दूरियां बढ़ा रहा था. उसी समय संजय गांधी केंद्र से लेकर राज्यों तक की सरकारों में अपना हस्तक्षेप बढ़ा रहे थे. हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी रीता बहुगुणा जोशी की किताब में इंदिरा गांधी और हेमवती नंदन बहुगुणा के बीच टकराव के कई किस्से बताए गए हैं. हालांकि हेमवती नंदन बहुगुणा कांग्रेस में रहते हुए तमाम महत्वपूर्ण पदों पर भी रहे.
बहुगुणा की वजह से केके बिड़ला हार गए थे: केंद्रीय मंत्री बनने के अलावा उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री भी बना दिया गया था. इस दौरान रायबरेली सीट पर इंदिरा गांधी के निर्वाचन को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था. उस दौरान यह माना गया कि हेमवती नंदन बहुगुणा का भी इसमें हाथ रहा. उधर, राज्यसभा सीट के लिए इंदिरा गांधी और संजय गांधी के पसंदीदा केके बिड़ला का हेमवती नंदन बहुगुणा ने खुलकर विरोध किया और इसी वजह से वह राज्यसभा सीट हार गए.
बहुगुणा ने 1975 में आपातकाल का विरोध किया था: इसके बाद 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की तो भी हेमवती नंदन बहुगुणा ने इसका विरोध भी किया. इसके बाद हेमवती नंदन बहुगुणा को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा और फिर हेमवती नंदन बहुगुणा ने कांग्रेस पार्टी को भी छोड़ने का फैसला ले लिया.
साल 1980 में फिर से कांग्रेस में शामिल हुए: हालांकि 1980 के आम चुनाव से ठीक पहले हेमवती नंदन बहुगुणा ने कांग्रेस में वापसी की और वो लोकसभा चुनाव जीतकर संसद भी पहुंच गए, लेकिन इंदिरा गांधी और संजय गांधी के फैसलों के खिलाफ उनका विरोध जारी रहा.
1981 में फिर से कांग्रेस छोड़ी: रावत बताते हैं कि, इसके बाद भी कांग्रेस में हेमवती नंदन बहुगुणा की दाल नहीं गली और उन्होंने 1981 में फिर से कांग्रेस छोड़ दी. कांग्रेस छोड़ने के साथ ही बहुगुणा ने संसद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया. रीता बहुगुणा जोशी ने अपनी किताब (हेमवती नंदन बहुगुणा- भारतीय जन चेतना के संवाहक) में लिखा है कि लोकसभा सीट से इस्तीफा देने के कारण गढ़वाल लोकसभा सीट पर साल 1982 में उपचुनाव कराए गए और तब वह चुनाव राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र रहा.
बहुगुणा ने साल 1982 का उपचुनाव लड़ा: इस चुनाव में एक तरफ हेमवती नंदन बहुगुणा चुनाव मैदान में थे तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री चंद्र मोहन नेगी को अपना प्रत्याशी बनाया था. कहा जाता है कि उस दौरान उपचुनाव में प्रधानमंत्री का चुनावी प्रचार प्रसार के लिए आने का कोई उदाहरण नहीं था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस उपचुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से इस कदर जोड़ लिया था कि उन्होंने यहां गढ़वाल लोकसभा सीट उपचुनाव में जमकर पसीना बहाया और चुनाव प्रचार प्रसार के लिए कई दौरे किए.
बहुगुणा को हराने में कांग्रेस ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था: उस दौरान इस चुनाव को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक जानकार जय सिंह रावत बताते हैं कि आधिकारिक रूप से इंदिरा गांधी ने 4 सभाएं की थीं. इतना ही नहीं, कई राज्यों के मुख्यमंत्री चुनाव के लिए गढ़वाल लोकसभा सीट में ही डट गए थे. इसके अलावा केंद्रीय मंत्रिमंडल के अधिकतर मंत्री भी गढ़वाल लोकसभा सीट में उपचुनाव के लिए प्रचार प्रसार कर रहे थे.
गढ़वाल सीट में इंदिरा गांधी वर्सेस पहाड़ के बीच हुआ मुकाबला: वैसे तो प्रत्याशी के रूप में यह मुकाबला हेमवती नंदन बहुगुणा और कांग्रेस के चंद्र मोहन सिंह नेगी के बीच था, लेकिन कहा जाता है कि हकीकत में यह चुनाव सीधे इंदिरा गांधी ही लड़ रही थीं.