पटनाः'बक्सर को मैं कभी नहीं छोड़ सकता हूं. बक्सर मेरे रग रग में है'.... ये कहना है केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी चौबे का. बक्सर लोकसभा सीट से टिकट कटने के बाद अश्विनी चौबे इनदिनों जेपी के आंदोलन को आगे बढ़ाने की बात कर रहे हैं. टिकट कटने के बाद जब वो पटना आए थे तो सीधे जेपी के आवास पर गए थे. वहां समर्थकों ने उनका जोरदार स्वागत किया था. अब अश्विनी चौबे जेपी के विचारधारा को आगे बढ़ाने की बात कह रहे हैं. अश्वनी चौबे ने आगे की रणनीति का खुलासा नहीं किया. उनका नाम भाजपा के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में है अब देखना है कि वो चुनाव प्रचार में जाते हैं कि नहीं. पेश है अश्वनी चौबे से खास बातचीत.
सवाल - चूक कहां हो गई जेपी के छात्र से
अश्विनी चौबे- मुझसे कभी कोई चूक नहीं हुआ है. मैं तो जेपी आंदोलन का एक सेनानी हूं. जेपी के उस आंदोलन का जो 8 अप्रैल 1974 को हुआ था. मैं जब पटना आया 8 अप्रैल को तो, मैं उस जगह पर गया, वहां मुझे बहुत प्रेरणा मिलती है. लेकिन, मैं वहां देखा जेपी को आज एक भी माला नहीं पहनाई गई थी. आखिर क्या कारण है. मैं दिल्ली से सीधे पटना एयरपोर्ट से वहां गया था. हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे. इसलिए मुझे लग रहा है कि जेपी आज भी प्रासंगिक हैं. मुझे याद है सत्ता में आज भी बहुत सारे लोग बैठे हैं, जो सत्ता से बाहर भी हैं, ऐसे सभी लोगों ने जेपी के यहां शपथ लिया था. जातिवाद मिटाएंगे, नया बिहार बनाएंगे, भ्रष्टाचार मिटाएंगे, नया समाज बनाएंगे.
सवाल- अब तो राजनीति का वही आधार हो गया है, जातिवाद, भ्रष्टाचार, अब यह सब तो आधार हो गया है.
अश्विनी चौबे- मैं व्यक्तिगत रूप से उसे खारिज करता हूं. आपको आश्चर्य होगा मैं इस जेपी आंदोलन से निकल कर आया था. छात्रसंघ का चुनाव पटना विश्वविद्यालय का, जो पार्लियामेंट चुनाव से कम नहीं होता था और चुनाव में विद्यार्थी परिषद की तरफ से मैं छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ा. हम पूरी टीम को जिताकर लाए थे. मेरी जाति क्या थी ब्राह्मण जाति थी. और उस तरफ सारे के सारे लोग यहां तक की कर्पूरी ठाकुर जी को भी जबरदस्ती कुछ नेताओं ने बाध्य किया कि चलिए और अश्वनी चौबे के खिलाफ बोलिए. लेकिन, कर्पूरी जी नहीं आए. उन्होंने कहा कि उस व्यक्ति के बारे में क्या बोलूंगा. 1974 में मैं जीवन और मौत के साथ पीएमसीएच में 6 महीना संघर्ष करता रहा. कर्पूरी ठाकुर उस समय वांटेड थे. लेकिन, कई बार मुझे वह देखने चोरी छुपे आते थे और मुझे आशीर्वाद दे जाते थे. आज प्रधानमंत्री ने उन्हें भारत रत्न देकर नवाजा है.
सवाल- अश्विनी चौबे मूल्यों के आधार पर राजनीति की. विधायक बने, एमपी बने, मंत्री बने, इस बार आपको टिकट नहीं दिया गया. आगे क्या करेंगे.
अश्विनी चौबे-मैं तो यही कह रहा हूं यह विधाता की देन है. विधाता ने सोचा होगा. प्रभु ने कुछ सोचा होगा. मुझे क्या मालूम मैं तो केदारनाथ में विलीन हो गया था. तीन-तीन पीढ़ी मेरी साथ जा रही थी. कितने लोग हमारे सामने चले गए. 7 दिन तक भूखे प्यासे रहे केदारनाथ में. भगवान ने मेरी रक्षा की थी. वहां से लाने के लिए उस समय के गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने मेरी चिंता की थी. राजनाथ सिंह जी जो राष्ट्रीय अध्यक्ष थे स्वयं देहरादून जाकर के मुझे वहां से दिल्ली अस्पताल में ले जाकर भर्ती कराया था. मैं उस दिन को भी देखा हूं. मैंने सोचा नहीं था कि मुझे एमपी और मिनिस्टर बनना है. हम लोग तो अंतिम आठ लोग परिवार में थे, हाथ पकड़े हुए थे, 20 लोग गए थे, आधे से ज्यादा चले गए थे. मात्र 8 लोग हम लोग बचे थे. मेरी तीन-तीन पीढ़ी साथ में थी. आप कल्पना नहीं कर सकते मेरे आंखों के सामने वह दृश्य आता है तो आंसू आ जाते हैं.
सवाल- अभी मैंने चर्चा किया, आपको टिकट नहीं मिला लेकिन, आप मुस्कुरा रहे हैं. एक राजनेता को जिन्होंने पूरी जिंदगी राजनीति की, जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज के बीच में बिताया. उनको टिकट नहीं मिल रहा है और आप मुस्कुरा रहे हैं क्यों?
अश्विनी चौबे-मैं इसलिए मुस्कुरा रहा हूं. जीवन भर में मुस्कुराता रहूंगा. भगवान से मेरी यही प्रार्थना है. हर लोगों के चेहरे पर वही मुस्कान दो. हर लोगों के चेहरे पर मुस्कान रहेगा. तो सुख, शांति, समृद्धि, सब कुछ मिलेगा. मुझे लगता है कि आपने कहा कि टिकट नहीं मिला मैंने कभी बेटिकट यात्रा नहीं की है. लोग उम्मीद लगा रहे थे शायद चौबे चुनाव लड़ जाएं, शायद चौबे बगावत कर दें. जेपी ने उस समय कहा था 8 अप्रैल को, हृदय छुब्ध, मुख बंद, हमला चाहे जैसा हो, हाथ हमारा नहीं उठेगा. हमारे ऊपर बहुत सारे हमले होते हैं. चाहे राजनीतिक हो, मैं कभी हिलने वाला नहीं हूं. मैं कभी पथभ्रष्ट नहीं हो सकता. हम तो वही हैं, जो थे और आज भी वही हैं और अंतिम सांस तक वही रहेंगे. मेरा गेरुआ रंग उस पर दूसरा रंग कोई नहीं चढ़ सकता. इस रंग में लिपट करके मैं अंतिम सांस लूंगा. यही प्रभु से प्रार्थना है.