नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जमानत देना और उसके बाद अत्यधिक और बोझिल शर्तें लगाना इस तरह है जैसे दाएं हाथ से दी गई चीज को बाएं हाथ से छीनना. अनादि काल से यह सिद्धांत रहा है कि एक्सेसिव बेल कोई जमानत नहीं है.
इसके साथ ही जस्टिस बी आर गवई और के वी विश्वनाथन की पीठ ने उस व्यक्ति की याचिका को स्वीकार कर लिया, जिस पर एक दर्जन से अधिक एफआईआर दर्ज हैं. कोर्ट ने कहा है वह अपने खिलाफ अन्य सभी मामलों में एक मामले में दी गई जमानत का उपयोग कर सकता है.
पीठ ने कहा कि ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में 'जमानतदार' की परिभाषा इस प्रकार दी गई है, "ऐसा व्यक्ति जो दूसरे के दायित्व की जिम्मेदारी लेता है" और पी रामनाथ अय्यर द्वारा लिखित एडवांस्ड लॉ लेक्सिकन, तीसरा एडीशन 2005 में 'जमानतदार' की परिभाषा इस प्रकार दी गई है, "वह जमानत जो किसी आपराधिक मामले में दूसरे व्यक्ति के लिए ली जाती है."
'विकल्प बहुत सीमित'
पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि चाहे किसी व्यक्ति को ऋण लेनदेन के लिए गारंटर बनाना हो या किसी आपराधिक कार्यवाही में जमानतदार बनाना हो, व्यक्ति के पास विकल्प बहुत सीमित हैं.
उन्होंने कहा कि यह अक्सर कोई करीबी रिश्तेदार या पुराना दोस्त होगा और आपराधिक कार्यवाही में यह दायरा और भी छोटा हो सकता है क्योंकि सामान्य प्रवृत्ति यह होती है कि अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए रिश्तेदारों और दोस्तों को उक्त आपराधिक कार्यवाही के बारे में नहीं बताया जाता.
जस्टिस विश्वनाथन ने जोर देकर कहा कि ये हमारे देश में जीवन की कठोर वास्तविकताएं हैं और एक अदालत के रूप में हम इनसे आंखें नहीं मूंद सकते और हालांकि, इसका समाधान कानून के दायरे में ही खोजना होगा.
'एक्सेसिव जमानत कोई जमानत नहीं'
जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, "प्राचीन काल से ही यह सिद्धांत रहा है कि एक्सेसिव जमानत कोई जमानत नहीं है. जमानत देना और उसके बाद अत्यधिक और बोझिल शर्तें लगाना, बाएं हाथ से वह छीनना है जो दाएं हाथ से दिया गया है. एक्सेसिव क्या है यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा."
उन्होंने कहा कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता को कई जमानतदार खोजने में वास्तविक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है और जमानत पर रिहा हुए आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जमानतदार आवश्यक हैं.
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा, "साथ ही, जहां अदालत को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है, जहां जमानत पर रिहा आरोपी को आदेश के अनुसार जमानतदार नहीं मिल पाता है, कई मामलों में, जमानतदार उपलब्ध कराने की आवश्यकता को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों के साथ संतुलित करने की भी आवश्यकता है."
जमानतदार प्रस्तुत करने में विफल
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणियां गिरीश गांधी की याचिका स्वीकार करते हुए कीं, जिन्होंने धोखाधड़ी और अन्य अपराधों के संबंध में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और केरल जैसे कई राज्यों में कई मामलों का सामना किया है. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि दो मामलों में उनके द्वारा पहले से प्रस्तुत किए गए जमानतदारों को अन्य सभी 11 मामलों में इस्तेमाल करने की अनुमति दी जानी चाहिए और बताया कि हालांकि उन्हें जमानत मिल गई है, लेकिन जमानतदार प्रस्तुत करने में विफल रहने के कारण वे अभी भी हिरासत में हैं.
जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, "सभी राज्यों में एक ही तरह के जमानतदारों को जमानत के रूप में खड़े होने की अनुमति है. हमें लगता है कि यह निर्देश न्याय के उद्देश्यों को पूरा करेगा और आनुपातिक और उचित होगा."
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