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ना जीते हैं ना जीतने देंगे! जानिए किस तरह पवन सिंह ने 4 सीटों पर NDA को नुकसान पहुंचाया, पूरे शाहाबाद में खाता तक नहीं खुला - Pawan Singh

Karakat Lok Sabha Seat : जीत हो या हार, समीक्षा और चर्चा तो की ही जाती है. पवन सिंह की चर्चा पूरे बिहार में है. कहा जा रहा है कि पवन सिंह के कारण एनडीए को 4 सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा. आगे पढ़ें पूरी खबर.

पवन सिंह
पवन सिंह (Etv Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jun 5, 2024, 7:59 PM IST

पटना :एक फिल्म का डायलॉग है कि 'तेरी जीत से ज्यादा चर्चे मेरी हार की है'. भोजपुरी पावर स्टार पवन सिंह की हार के बाद इस तरह के सोशल मीडिया पर मिम्स बनने लगे हैं. यह चर्चा होना लाजिमी भी है क्योंकि, पटना के पश्चिम सभी लोकसभा क्षेत्र को एनडीए हार चुकी है. यह बताया जा रहा है कि इन सभी लोकसभा क्षेत्र में पवन सिंह का इफेक्ट दिखा है. पाटलिपुत्र, आरा, बक्सर, सासाराम और काराकाट इन सभी सीटों पर एनडीए के प्रत्याशी औंधे मुंह गिरे हैं. उनकी करारी हार हुई है. इन सभी सीटों पर भोजपुरी गायक और अभिनेता पवन सिंह का इफेक्ट दिखा.

पवन सिंह की खिलाफत महंगी :पवन सिंह ने काराकाट लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया. उसके बाद उन्होंने इस चुनाव में जमकर प्रचार किया. उनके साथ उनका पूरा परिवार था, उनके चुनाव प्रचार में काराकाट लोकसभा क्षेत्र के युवाओं ने जमकर पसीने बहाये थे. भोजपुरी स्टार गली-गली में घूम कर लोगों से वोट मांगने लगे तो, लोगों के करीब और भी पहुंच गए. इसी बीच भाजपा नेताओं ने पवन सिंह की खिलाफत शुरू कर दी. चुंकी पवन सिंह पहले भाजपा में थे. उनको भाजपा ने आसनसोल से टिकट दिया लेकिन, उनके कुछ विवादित गानों को लेकर जब विपक्ष भाजपा पर हमले करने लगी तो, उनसे टिकट वापस ले लिया गया. उसके बाद पवन सिंह ने काराकाट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय लिया.

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आरा में दिखा राजपुत इफेक्ट :जब पवन सिंह पूरी तरह से चुनाव में प्रचार प्रसार करने लगे तो आरा के भाजपा उम्मीदवार आरके सिंह ने पवन सिंह का विरोध करते हुए उनको भाजपा से हटाने की सिफारिश की. साथ ही पवन सिंह के खिलाफ कई बयान बाजी कर दी. आनन-फानन में भाजपा ने चुनाव से कुछ दिन पहले पवन सिंह को पार्टी से निष्कासित कर दिया. ऐसे में पवन सिंह के समर्थक और पवन सिंह जिस जाति से आते हैं यानी कि राजपूत समुदाय में इसको लेकर आक्रोश हो गया.

सुदामा प्रसाद ने दी करारी शिकस्त : आरा संसदीय क्षेत्र में लगभग साढ़े 21 लाख मतदाता हैं, जिनमें लगभग छह लाख अगड़ी जाति के हैं. इनमें पौने तीन लाख मतदाताओं के साथ सबसे बड़ी भागीदारी राजपूतों की है. चुंकी, पवन सिंह आरा के रहने वाले हैं, आरा में उनकी एक अलग लोकप्रियता है. जब चुनाव हुआ तो पवन सिंह का इफेक्ट सबसे पहले आरा में दिखा. केंद्रीय मंत्री और भाजपा उम्मीदवार आरके सिंह लोकसभा चुनाव परिणाम के दिन एक बार भी अपने प्रतिद्वंदी सीपीआईएमएल के सुदामा प्रसाद से आगे नहीं निकाल पाए. अंत में उनको करारी हार का सामना करना पड़ा.

काराकाट से लेकर बक्सर तक असर :दूसरी तरफ, जहां से पवन सिंह चुनाव लड़ रहे थे काराकाट लोकसभा सीट, वहां भी पवन सिंह ने अपने दोनों उम्मीदवारों को यानी कि एनडीए समर्थित उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा और सीपीआईएमएल के राजाराम सिंह को कड़ी टक्कर दी. हालांकि पवन सिंह काराकाट लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार गए. वह दूसरे नंबर पर रहे लेकिन, उनकी हार के चर्चे इस लिहाज से होने लगे क्योंकि, काराकाट से सटे सासाराम में भी बीजेपी को करारी शिकस्त मिली, इसका इफेक्ट बक्सर में भी देखने को मिला. वहां भी बीजेपी के उम्मीदवार मिथिलेश तिवारी चुनाव हार गए. कुल मिलाकर पवन सिंह का पूरा इफेक्ट शाहाबाद के क्षेत्र में देखने को मिला. शाहाबाद की चार लोकसभा क्षेत्र पर एनडीए पूरी तरह से हार गया.

भाजपा कहीं और से भी लड़ा सकती थी :शाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार भीम सिंह बताते हैं कि शाहाबाद में एनडीए के हारने के कई वजह है. जिसमें पवन सिंह अहम हैं. पवन सिंह भोजपुरी गायक होने के साथ-साथ एक अभिनेता भी हैं. साथ ही लोगों में उनकी एक छवि भोजपुरिया कलाकार की है. जाति से वह राजपूत हैं. ऐसे में पवन सिंह लोगों से इमोशनल जुड़े हुए हैं. इसमें दो राय नहीं है कि यदि पवन सिंह को बीजेपी बिहार के किसी और क्षेत्र से चुनाव लड़ाती तो पवन सिंह विनिंग कैंडिडेट होते.

''आरा के पूर्व सांसद आरके सिंह के बयान के बाद लोगों में आक्रोश आया. इसके बाद एनडीए के दूसरे नेताओं ने भी पवन सिंह के खिलाफ बयान बाजी की. उन्हें नचनिया गवानिया कहा गया. ऐसे में एक बड़ा तपका एनडीए से नाराज दिखा. इसका असर मुख्य रूप से आरा, काराकाट, बक्सर और सासाराम पर देखने को मिला है.''- भीम सिंह, शाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार

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