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भारत-चीन के बीच LAC को लेकर बातचीत का निकलेगा हल? वांग यी से हुई मुलाकात, क्या बोले जयशंकर - Jaishankar meets Wang Yi

RESTORING THE LAC: एससीओ बैठक के दौरान वार्ता के अंत में भारत-चीन की तरफ से कोई संयुक्त बयान जारी नहीं किया गया, बल्कि दोनों पक्षों ने अपने-अपने संस्करण दिए, जो उनकी अपनी धारणाओं का समर्थन में थे. उम्मीद थी कि बैठक के कुछ सकारात्मक परिणाम निकलेंगे क्योंकि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद यह दोनों देशों के बीच पहली बैठक थी.

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फोटो (ANI)

By Major General Harsha Kakar

Published : Jul 8, 2024, 7:47 PM IST

नई दिल्ली: भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने पिछले सप्ताह कजाकिस्तान के अस्ताना में एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) शिखर सम्मेलन से इतर अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात की. जयशंकर ने एससीओ मीटिंग को लेकर ट्वीट करते हुए कहा कि, बैठक में सीमावर्ती क्षेत्रों में शेष मुद्दों के शीघ्र समाधान पर चर्चा हुई. इस उद्देश्य के लिए राजनयिक और सैन्य चैनलों के माध्यम से प्रयासों को दोगुना करने पर सहमति व्यक्त की गई. उन्होंने कहा कि, एलएसी का सम्मान करना और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति सुनिश्चित करना आवश्यक है. उन्होंने चीन-भारत संबंध को रेखांकित करते हुए कहा कि, तीन आपसी संबंध - आपसी सम्मान, आपसी संवेदनशीलता और आपसी हित - हमारे द्विपक्षीय संबंधों का मार्गदर्शन करेंगे.'

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एलएसी का सम्मान किया जाना चाहिए
विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया, 'दोनों मंत्री इस बात पर सहमत हुए कि सीमावर्ती क्षेत्रों में मौजूदा स्थिति का लंबे समय तक बढ़ना किसी भी पक्ष के हित में नहीं है. वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का सम्मान किया जाना चाहिए और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और शांति हमेशा लागू की जानी चाहिए.' बता दें कि, एलएसी के मसले पर भारत में चीनी दूतावास की तरफ से जारी बयान में कोई समानता नहीं थी.

SCO के वार्षिक शिखर सम्मेलन से इतर कई मुद्दों पर चर्चा
चीनी दूतावास के बयान में वांग यी के हवाले से कहा गया है कि, 'दोनों पक्षों को द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक दृष्टिकोण से देखना चाहिए, संचार को मजबूत करना चाहिए और चीन-भारत संबंधों के मजबूत और स्थिर विकास को सुनिश्चित करने के लिए मतभेदों को ठीक से संभालना चाहिए.' दोनों पक्षों को सकारात्मक सोच का पालन करना चाहिए, सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थिति को ठीक से संभालना और नियंत्रित करना चाहिए, साथ ही एक-दूसरे को बढ़ावा देने और एक साथ आगे बढ़ने के लिए सक्रिय रूप से सामान्य आदान-प्रदान फिर से शुरू करना चाहिए.' अपने पश्चिम विरोधी रुख को दर्शाते हुए, इसमें कहा गया है, 'वैश्विक दक्षिण के देशों के रूप में, चीन और भारत को एकतरफा समस्याओं का विरोध करने, विकासशील देशों के सामान्य हितों की रक्षा करने और क्षेत्रीय और विश्व शांति में उचित योगदान देने के लिए हाथ मिलाना चाहिए. इससे यह संकेत साफ है कि भारत को चीन को रोकने के किसी भी कदम में अमेरिका का भागीदार नहीं बनना चाहिए.

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पीएम मोदी ने एलएसी गतिरोध को हल करने के दिए थे संकेत
मोदी ने चुनावों से पहले न्यूजवीक को दिए अपने साक्षात्कार में एलएसी गतिरोध को हल करने की ओर भी संकेत दिया था. उन्होंने कहा था, 'मेरा मानना है कि हमें अपनी सीमाओं पर लंबे समय से चली आ रही स्थिति को तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है ताकि हमारे द्विपक्षीय संबंधों में असामान्यता को पीछे छोड़ा जा सके. मुझे उम्मीद है और मेरा मानना है कि कूटनीतिक और सैन्य स्तरों पर सकारात्मक और रचनात्मक द्विपक्षीय जुड़ाव के माध्यम से, हम अपनी सीमाओं पर शांति और स्थिरता बहाल करने और बनाए रखने में सक्षम होंगे.'

एस जयशंकर (ANI)

आखिर क्या चाहता है चीन?
चीनी की तरफ से जवाब आया, 'चीन और भारत कूटनीतिक और सैन्य चैनलों के माध्यम से निकट संपर्क में बने हुए हैं और बहुत सकारात्मक प्रगति हुई है. चीन को उम्मीद है कि भारत चीन के साथ मतभेदों को ठीक से प्रबंधित करने और द्विपक्षीय संबंधों को स्वस्थ, स्थिर ट्रैक पर आगे बढ़ाने के लिए उसी दिशा में काम करेगा,' एक बार फिर, संकेत एलएसी को अनदेखा करते हुए आगे बढ़ने का था.

पीएम मोदी और शी जिनपिंग (फाइल) (ANI)

चीन ने भारत पर आरोप लगाए
पीएम मोदी के दोबारा चुने जाने के बाद, चीनी मुखपत्र, ग्लोबल टाइम्स ने मोदी के तीसरे कार्यकाल के दौरान भारत-चीन संबंधों को कवर करते हुए एक संपादकीय प्रकाशित किया. इसमें उल्लेख किया गया है कि एलएसी विवाद 'कोई नया मुद्दा नहीं है, बल्कि दशकों से मौजूद है. इसने चीनी धारणा को आगे बढ़ाते हुए कहा, 'पिछले कुछ सालों में, भारत ने घरेलू नीतियों में चीन विरोधी कई कदम उठाए हैं, जिसमें चीनी कंपनियों को दबाना, वीजा जारी करना निलंबित करना और लोगों के बीच आदान-प्रदान को सख्ती से दबाना शामिल है, जो पूरी तरह से नकारात्मक रवैया दर्शाता है. ग्लोबल टाइम्स ने चीन से संबंधों में गिरावट के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया.

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वापस नहीं लौटना चाहता है चीन
वहीं, बीजिंग यह संदेश देना चाहता है कि चीन संबंधों को सामान्य बनाना चाहता है, लेकिन उसका अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति में लौटने का कोई इरादा नहीं है, जिसको लेकर भारत प्रतिबद्ध है. चीन का मानना है कि, मौजूदा तैनाती को एलएसी के नए संरेखण के रूप में माना जाना चाहिए, जिसे भारत स्वीकार करने से इनकार करता है. जवाब में, भारत एलएसी पर अपनी मजबूत उपस्थिति बनाए रखते हुए चीन पर कूटनीतिक रूप से जवाब दे रहा है.

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दलाई लामा को पीएम ने बधाई दी, चीन ने किया विरोध
धर्मशाला में दलाई लामा के साथ बातचीत के दौरान अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के खिलाफ टिप्पणी करने और प्रधानमंत्री से मिलने की अनुमति देना इस बात का संकेत था कि भारत भी बीजिंग के साथ अपने पिछले समझौतों का पालन नहीं करेगा. इसके बाद प्रधानमंत्री ने 6 जुलाई को दलाई लामा को उनके 89वें जन्मदिन पर जन्मदिन की बधाई दी. प्रधानमंत्री ने गतिरोध शुरू होने के बाद 2021 से ही दलाई लामा को शुभकामनाएं देना शुरू किया, जो भारत के रुख में बदलाव का संकेत हैं. चीन ने अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के धर्मशाला आने और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दलाई लामा को बधाई देने पर आपत्ति जताई. उसने दलाई लामा पर ‘धर्म की आड़ में चीन विरोधी अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त एक राजनीतिक निर्वासित होने का आरोप लगाया और उनके साथ किसी भी तरह की बातचीत करने को लेकर आपत्ति जताई.

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ताइवान से भारत की नजदिकियां चीन को नापसंद
इतना ही नहीं चीन ने प्रधानमंत्री मोदी के फिर से चुने जाने के बाद भारत और ताइवान के बीच बधाई और शुभकामनाओं के आदान-प्रदान पर भी आपत्ति जताई. भारत ने देश के साथ अपनी असहमति को देखते हुए किसी भी साझा समूह में सभी चीनी प्रस्तावों का विरोध करना भी शुरू कर दिया है. एससीओ बैठक में पीएम मोदी का शामिल न होना यह संदेश था कि भारत चीन के प्रभुत्व वाली किसी भी संस्था का समर्थन नहीं करेगा. एससीओ के साथ भारत के संबंध वैसे भी कम होते जा रहे हैं क्योंकि एससीओ के राष्ट्राध्यक्षों की अगली बैठक इस साल पाकिस्तान में और नेताओं की शिखर बैठक अगले साल चीन में होनी है, दोनों ही बैठकों में पीएम शामिल नहीं होंगे.

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नहीं निकला कोई नतीजा
राजनयिक स्तर पर कई बैठकों के अलावा दोनों सेनाओं के बीच सीमा वार्ता के 21 दौर हो चुके हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. प्रत्येक बैठक के अंत में जारी किए गए बयान एक जैसे और अर्थहीन हैं. एकमात्र सकारात्मक बात यह है कि संचार के चैनल खुले हैं और दिसंबर 2022 में यांग्त्जी में हुई घटना के बाद से एलएसी पर कोई झड़प नहीं हुई है. सैनिकों की संख्या अधिक है, जबकि दोनों पक्ष भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार जारी रखे हुए हैं.

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भूटान पर क्या पड़ेगा असर
दोनों देशों के बीच बुनियादी अंतर यह है कि चीन अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति में तैनाती बहाल करने के लिए तैयार नहीं है, जबकि अन्य विषयों पर आगे बढ़ने की इच्छा रखता है, जबकि भारत इस बात पर दृढ़ है कि जब तक एलएसी पर स्थितियां सामान्य नहीं होती हैं, तब तक संबंध आगे नहीं बढ़ सकते हैं. भारत द्वारा चीन की स्थिति को स्वीकार करने से इनकार करने का मतलब है कि इससे उनकी 'सलामी स्लाइसिंग' नीति को उचित ठहराया जा सकेगा. इसका असर भूटान पर भी पड़ सकता है, जो चीन के साथ इसी तरह के विवाद का सामना कर रहा है. यह अंतर सुनिश्चित करेगा कि संबंधों में गतिरोध बना रहेगा. हालांकि, तनाव को नियंत्रित रखने के उद्देश्य से कूटनीतिक और सैन्य स्तरों पर बातचीत जारी रहेगी.

शी जिनपिंग और पीएम मोदी (फाइल) (ANI)

चीन पीछे हटने को तैयार नहीं
लद्दाख से संदेश यह है कि भविष्य में किसी भी तरह के उल्लंघन की स्थिति में चीनी पीछे हटने को तैयार नहीं होंगे. किसी भी तरह के दुस्साहस को रोकने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों को सतर्क रहना चाहिए. भारत को हर मंच पर चीन का मुकाबला करना जारी रखना चाहिए, साथ ही अमेरिका सहित चीन के विरोधियों के साथ अपने संबंध मजबूत करने चाहिए.

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