दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

ट्रंप की प्रोटेक्शनिस्ट टेंडेंसी अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक है: अशोक लाहिड़ी

पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अशोक लाहिड़ी ने ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी से बात करते हुए कहा कि ट्रंप की संरक्षणवादी प्रवृत्ति अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक है.

डोनाल्ड ट्रंप
डोनाल्ड ट्रंप (ANI)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 11, 2024, 7:43 PM IST

नई दिल्ली:डोनाल्ड ट्रंप की चुनावी जीत व्हाइट हाउस के लिए एक शानदार पुनरुत्थान का प्रतीक है. यह एक असाधारण राजनीतिक रिवाइवल का प्रतिनिधित्व करता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था सहित ग्लोबल इकोनॉमी पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने के लिए तैयार है.

ईटीवी भारत को दिए एक इंटरव्यू में भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अशोक लाहिड़ी ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की ओवल ऑल स्थिति परेशान करने वाली है, विशेष रूप से टैक्स को कम करने के ट्रंप के इरादों को देखते हुए. हालांकि इस तरह के टैक्स कटौती से अमीर व्यक्ति खुश हो सकते हैं, लेकिन ये संभवतः अमेरिकी राजकोषीय घाटे को बढ़ा देंगे.

लाहिड़ी ने आगे कहा कि राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी आगे चलकर मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है, जिससे फेडरल रिजर्व को ब्याज दरें बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.

सवाल: अब जब डोनाल्ड ट्रंप व्हाइट हाउस वापस आ गए हैं, ऐसे में आपको क्या लगता है कि प्रमुख आर्थिक नीतिगत बदलाव क्या होंगे?
जवाब: डोनाल्ड ट्रंप ने अपने अभियान के दौरान कई नीतिगत वादे किए थे. उनकी प्राथमिक प्रतिबद्धताओं में से एक फाइनेंशियल डिरेगूलेशन को आगे बढ़ाना था. यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वह क्रिप्टोकरेंसी के प्रति अनुकूल रुख अपनाएंगे, जिससे बिटकॉइन और इसी तरह की डिजिटल मुद्राओं सहित उनकी लोकप्रियता में वृद्धि हो सकती है.

क्रिप्टोकरेंसी का प्रचलन बढ़ने की भी उम्मीद है. उनके एजेंडे का एक और महत्वपूर्ण पहलू डिरेगूलेशन है, विशेष रूप से एनवायर्नमेंटल डिरेगूलेशन से संबंधित. इसके अलावा ट्रंप ने तेल ड्रिलिंग और कोयला खनन से संबंधित कुछ प्रतिबंधों को समाप्त करने का भी वादा किया है.

इसके अतिरिक्त, उन्होंने इलेक्ट्रिक वाहन, सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा जैसी ग्रीन टेक्नोलॉजी के लिए सब्सिडी वापस लेने की योजना का संकेत दिया. इन कार्रवाइयों के निहितार्थ अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक हो सकते हैं, क्योंकि वे देश के भीतर तकनीकी प्रगति में बाधा डाल सकते हैं. हालांकि, लागत के आधार पर पारंपरिक एनर्जी सोर्स का समर्थन करने वाले तर्क हैं, लेकिन टेक्नोलॉजी में प्रगति रिन्यूएबल एनर्जी ऑप्शन्स को आर्थिक रूप सेज्यादा व्यवहार्य बना सकती है.

तीसरा बिंदु ट्रंप की प्रोटेक्शनिस्ट टेंडेंसी है. उन्होंने अमेरिका से आयात होने वाले सभी सामान पर 20 फीसदी टैरिफ लगाने और चीन से आयात पर 60 प्रतिशत टैरिफ लगाने की इच्छा व्यक्त की है. इसके अतिरिक्त, उनका इरादा चीन को सबसे पसंदीदा देशों की सूची से हटाने का है. हालांकि, इस प्रोटेक्शनिस्ट अप्रोच से कुछ अमेरिकी उद्योगों को लाभ होने की संभावना है, जो वर्तमान में संघर्ष कर रहे हैं. फिर भी, अधिकांश अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि ऐसी नीतियां अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक हैं.

ट्रंप के राष्ट्रपति पद पर होने, अमेरिकी कांग्रेस और सीनेट दोनों पर रिपब्लिकन का नियंत्रण होने के कारण, वे रिपब्लिकन पार्टी के भीतर प्रमुख व्यक्ति बन गए हैं. उनके मजबूत जनादेश को देखते हुए इस बात की चिंता है कि वे अपने कुछ चुनावी वादों को वास्तविक नीतियों के रूप में लागू कर सकते हैं. इससे लाभार्थियों और परिणामस्वरूप पीड़ित दोनों को नुकसान हो सकता है. हालांकि, वैश्विक अर्थव्यवस्था की समग्र स्थिति चिंताजनक है, विशेष रूप से टैक्स को कम करने के उनके इरादों को देखते हुए.

वहीं, इस तरह की टैक्स कटौती से अमीर व्यक्ति खुश हो सकते हैं, लेकिन वे संभवतः अमेरिकी राजकोषीय घाटे को बढ़ाएंगे. राजकोषीय घाटे में इजाफा होने के बाद मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, जिससे फेडरल रिजर्व को ब्याज दरें बढ़ाने पड़ सकती हैं. यह एक प्रतिकूल दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है.

सवाल: ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी का ग्लोबल सप्लाई चेन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है और इसका अन्य अर्थव्यवस्थाओं पर क्या असर होगा?
जवाब: ग्लोबल सप्लाई चेन तेजी से इंटिग्रेट हो गई है और यह प्रवृत्ति जारी रहने वाली है. कोविड-19 महामारी के दौरान इस सिस्टम में व्यवधान विशेष रूप से स्पष्ट हुए हैं. इससे अर्थ व्यवस्थाएं नेगेटिवली प्रभावित हो सकती है. हालांकि, इन चुनौतियों के बीच अवसर भी हैं. उदाहरण के लिए अगर संयुक्त राज्य अमेरिका, जो चीनी सब्सिडी और व्यापार नीतियों का कड़ा विरोध करता है, जो व्यापार को डिस्टोर्ट करती हैं, चीन पर हाई टैरिफ लगाते हैं, तो भारत जैसे विकासशील देश अपनी उत्पादन क्षमता का विस्तार करने के इस अवसर का लाभ उठा सकते हैं.

सवाल: ट्रंप 2.0 में भारतीय अर्थव्यवस्था पर तत्काल और दीर्घकालिक प्रभाव क्या होंगे?
जवाब:ट्रंप 2.0 प्रशासन के तहत भारतीय अर्थव्यवस्था पर तत्काल और दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में परिणाम अलग-अलग हो सकते हैं. शॉर्ट टर्म में, इनका प्रभाव उतना गंभीर नहीं हो सकता है, क्योंकि शेयर बाजार ध्वस्त नहीं हुए हैं. निवेशक सतर्क हैं, लेकिन स्थिति भयावह नहीं है. हालांकि, लॉन्ग टर्म के प्रभाव अनिश्चित हैं. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते, अमेरिकी इकोनॉमी वैश्विक वृहद आर्थिक स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था चुनौतियों का सामना करती है, तो इसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए, भारत की अर्थव्यवस्था पर तत्काल प्रभाव अमेरिका के साथ उसके संबंधों की मजबूती पर निर्भर करता है, खासकर व्यापार और टेक्नोलॉजी ट्ंरासफर के मामले में.

सवाल: ट्रंप 2.0 का अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है. क्या ऐसे स्पेसिफिक क्षेत्र हैं जहां हम सकारात्मक या नकारात्मक बड़े बदलाव देख सकते हैं?
जवाब: ट्रंप ओबामाकेयर के सख्त खिलाफ हैं. अगर ओबामाकेयर को हटा दिया जाता है, तो अमेरिकी दवा उद्योग को लाभ हो सकता है. हालांकि, भारत की जेनेरिक दवाओं को नुकसान हो सकता है. इसके बावजूद अमेरिकी उद्योग मजबूत है, नई दवाओं और फॉर्मूलेशन का विकास किया जा रहा है. यह अनिश्चित है कि भारतीय दवा उद्योग इस स्थिति से कैसे प्रभावित होगा, लेकिन यह माना जाता है कि सबसे अच्छा होगा.उम्मीद है कि उद्योग परिपक्व होगा और चुनौतियों से निपटेगा.

दूसरा पॉइंट टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर है, जिसने अमेरिका के साथ प्रगति देखी है और अमेरिका-चीन संबंधों के आधार पर चीन से भारत में निवेश में बदलाव के साथ संभावित रूप से बढ़ सकता है. अमेरिका और चीन के बीच व्यापार संबंध आम तौर पर अच्छे हैं, हालांकि यह उम्मीद की जाती है कि वे भारत पर चीन की तरह कठोर नहीं होंगे.

सवाल: ट्रंप व्यापार घाटे को कम करने के लिए जोर देते रहे हैं. क्या आपको लगता है कि इससे भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ वृद्धि या व्यापार प्रतिबंध लग सकते हैं. भारत को कैसे तैयारी करनी चाहिए?

जवाब: निश्चित रूप से हमारे सामने चुनौतियां हैं. हालांकि, हम हमेशा द्विपक्षीय समझौतों की वकालत कर सकते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका से आग्रह कर सकते हैं कि वह हमारे साथ असमान व्यवहार न करे. साथ ही हमें वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने की अपनी क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. यह पहचानना आवश्यक है कि किसी देश का दूसरे देश से सामान खरीदने का फैसला मुख्य रूप से आर्थिक विचारों से प्रेरित होता है.

सवाल: ट्रंप के टैक्स सुधार और बुनियादी ढांचे की नीतियां उनके पहले कार्यकाल में लोकप्रिय थीं. अगर ऐसी ही नीतियां फिर से लागू की जाती हैं, तो भारतीय कंपनियों और निवेशों पर उनका क्या प्रभाव पड़ सकता है.

जवाब: मेरा मानना है कि हमारी कई बुनियादी ढांचा कंपनियां परिपक्वता के स्तर पर पहुंच गई हैं और अब दुनिया की सबसे बेहतरीन कंपनियों के बराबर हैं. इसलिए, यदि ट्रंप बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता देते हैं, तो इन कंपनियों के लिए जुड़ने और लाभ प्राप्त करने के अवसर होंगे. इसके अतिरिक्त, बुनियादी ढांचे पर इस फोकस के परिणामस्वरूप भारत पर कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है. हालांकि, इस प्रभाव की सीमा अनिश्चित बनी हुई है और एक निश्चित उत्तर देना मुश्किल है.

सवाल: ताइवान के मौजूदा मुद्दे ने अमेरिका-चीन संबंधों को कैसे प्रभावित किया है और इस विवाद के भविष्य के बारे में आप क्या प्रीडिक्शन करते हैं?
जवाब: अमेरिका-चीन संबंधों में हमने क्रियाएं और प्रतिक्रियाएं देखी हैं. एक पक्ष एक कदम उठाता है, और दूसरा जवाब देता है. हालांकि, इसमें धोखा देना भी शामिल है, क्योंकि अंततः, एक पक्ष तनाव कम करने का विकल्प चुनता है, जिससे सामान्य स्थिति वापस आ जाती है. क्या यह जल्दी होगा? यह कहना असंभव है. समय के साथ, हम केवल परिणामों के बारे में अनुमान लगा सकते हैं, खासकर जब कई फैक्टर मैदान में हैं. सबसे पहले, हमें यह विचार करने की आवश्यकता है कि यूक्रेन-रूस संघर्ष कैसे सामने आएगा. इसके बाद, मध्य पूर्व में स्थिति, विशेष रूप से इजराइल और गाजा के संबंध में, महत्वपूर्ण है. इसके अतिरिक्त, इजराइल और ईरान के बीच गतिशीलता महत्वपूर्ण है.

अंत में, हमें चीन-ताइवान संबंधों में संभावित सरप्राइज को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. वर्तमान में चीन-ताइवान की स्थिति स्थिर प्रतीत होती है, लेकिन चीजें अप्रत्याशित रूप से बदल सकती हैं. मैं अंतरराष्ट्रीय संबंधों का विशेषज्ञ नहीं हूं, लेकिन मेरा मानना है कि चीन-अमेरिका संबंध तभी बेहतर होंगे जब दोनों देश यह पहचानेंगे कि वे एक-दूसरे को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं. समझौता करने से दोनों देशों और दुनिया को फ़ायदा हो सकता है. हालांकि, महाशक्ति का उदय या पतन अक्सर चुनौतियों के साथ आता है.

यह भी पढ़ें- कौन थे जस्टिस हंस राज खन्ना? जिनसे CJI संजीव खन्ना ने ली प्रेरणा, एक असहमित की वजह से नहीं बन सके मुख्य न्यायाधीश

ABOUT THE AUTHOR

...view details