हैदराबाद: एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल मतदाताओं के झुकाव को समझने और चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी करने के लिए अहम माने जाते हैं. ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल दोनों ही मतदाताओं की पसंद को जानने के लिए किए जाते हैं, लेकिन दोनों अलग-अलग होते हैं. एग्जिट पोल चुनाव के अंतिम चरण के बाद जारी किए जा सकते हैं. विभिन्न मीडिया संगठन और पोल एजेंसियां चुनाव के दौरान एग्जिट पोल कराती हैं और नतीजों को लेकर भविष्यवाणी करती हैं. लेकिन अनुमान कितने सटीक होंगे, इसका पता मतगणना के दिन ही चलता है.
ओपिनियन पोल चुनाव से पहले या मतदाता के वोट डालने से पहले किया जाता है. इसमें आम लोगों से पूछा जाता है कि वे इस बार किस पार्टी या उम्मीदवार का समर्थन या उनके लिए वोट करेंगे. जबकि एग्जिट पोल वोटिंग के दिन मतदाता के वोट डालने के बाद पोलिंग बूथ से बाहर निकलने के तुरंत बाद किए जाते हैं. हालांकि, ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल दोनों के अनुमान या आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा चुके हैं.
ओपिनियन पोल: ओपिनियन पोल को चुनाव पूर्व या मतदान पूर्व पोल भी कहा जाता है. चुनाव से कुछ दिन पहले या हफ्तों या महीनों पहले किए जाते हैं. ऐसे सर्वे का उद्देश्य आम जनता या कुछ मतदाता से राजनीतिक विकल्पों पर उनकी प्रतिक्रिया जाना है.
समय:चुनाव से बहुत पहले मतदाताओं को अपने विचार और धारणा व्यक्त करने का मौका देने के लिए जनमत सर्वेक्षण किए जाते हैं. इससे राजनीतिक माहौल के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है.
नमूना चयन: ओपिनियन पोल में अक्सर मतदाताओं की प्राथमिकताओं का अंदाजा लगाने के लिए रजिस्टर्ड वोटर्स के रैंडम सैंपल लिया जाता है.
प्रश्न: सर्वे में शामिल लोगों की मतदान योजना, पसंदीदा राजनीतिक दल और कभी-कभी नीतिगत विषयों को लेकर सवाल पूछे जाते हैं. सर्वे के आंकड़ों से आम जनता और चुनाव परिणामों पर इसके संभावित प्रभाव का आकलन किया जाता है.
त्रुटि की गुंजाइश:ओपिनियन पोल में त्रुटि की गुंजाइश (Margin of Error) यह दर्शाती है कि निष्कर्ष पर कितना संदेह हो सकता है. त्रुटि का मार्जिन लोगों की नुमाइंदगी और नमूने के आकार द्वारा निर्धारित किया जाता है.
पूर्वानुमान का महत्व: ओपिनियन पोल सूचना का उपयोगी स्रोत हो सकते हैं, लेकिन वे चुनाव परिणामों का सटीक अनुमान नहीं हो सकते हैं. ओपिनियन पोल के निष्कर्ष मतदाता भागीदारी और जनमत में अंतिम समय में होने वाले बदलावों सहित कई चर (Variables) से प्रभावित हो सकते हैं.
पूर्व में, लोकसभा चुनावों के लिए जनमत सर्वेक्षणों की सटीकता अनिश्चित रही है. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) ने कहा है कि जनमत सर्वेक्षण और सीटों के पूर्वानुमान सफलताओं और असफलताओं का मिलाजुला समूह रहे हैं. विश्लेषण के अनुसार, 1998 के लोकसभा चुनाव परिणाम पूर्व जनमत सर्वेक्षण के अनुमान के लगभग करीब थे, लेकिन 1999 के चुनाव के अनुमानों ने भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के प्रदर्शन को थोड़ा अधिक आंका. 2004 के लोकसभा चुनाव परिणाम बहुत से जनमत समीक्षकों के लिए चौंकाने वाले थे. उस चुनाव में ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल दोनों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) को बहुत कम करके आंका गया था.
पांच साल बाद, 2009 के लोकसभा चुनावों में, ओपिनियन पोल एक बार फिर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए की जीत का पूर्वानुमान लगाने में विफल रहे. उस समय भी अनुमनों में कांग्रेस को कम आंका गया था. जबकि 2004 में 222 सीटों से बढ़कर 2009 में यूपीए की कुल सीटें 262 हो गई थीं.