पटना: धर्म परिवर्तन करने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने को लेकर सरकार ने बालकृष्णन आयोग का गठन किया था. इसे दो साल का समय दिया गया था. आज पटना में केजी बालाकृष्णन जांच आयोग की टीम पहुंची थी. केजी बालाकृष्णन जांच आयोग की टीम पटना के ज्ञान भवन में लोगों से राय लिया. विभिन्न धर्मों के 500 से अधिक प्रतिनिधि इस जांच आयोग के सामने प्रस्तुत हुए. जांच आयोग से मिलने वालों में दलितों के अलावा बौद्ध, ईसाई एवं मुस्लिम पसमांदा समाज के प्रतिनिधि शामिल थे.
तीन सदस्यों की कमेटी का गठन : सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के जी बालकृष्णन की अध्यक्षता में तीन सदस्य कमेटी का गठन हुआ था. केजी बालाकृष्णन के अलावा तीन सदस्यीय आयोग में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी डॉ. रविंदर कुमार जैन और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सदस्य प्रोफेसर सुषमा यादव भी शामिल हैं. इस कमेटी का गठन अक्टूबर 2022 में किया गया था.
बता दें कि बालकृष्णन जांच आयोग पसमांदा महाज के लोगों को अनुसूचित जाति (SC) का दर्जा देने पर आकलन करेगा, जिनका किसी न किसी रूप से अनुसूचित जाति से ताल्लुक है, लेकिन उन्होंने दूसरा धर्म अपना लिया है. संविधान में कहा गया है कि हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है. इसी के आकलन के लिए इस कमेटी का गठन किया गया था.
मुस्लिम ‘दलित’ जातियों की SC में शामिल होने की मांग क्यों? : मुस्लिम में आने वाली पिछड़ी जातियों में भटियारा, नट, मुस्लिम, धोबी, हलालखोर, मेहतर, भंगी, बक्खो, मोची, भाट, डफाली, पमरिया, नालबंद, रंगरेज, हजाम, चीक, चूड़ीहार, पासी, मछुआरा है. पसमांदा समाज के अंदर आने वाले इन जातियों का कहना है कि, हमलोग बिल्कुल नीच हैं, तो हमें नीच श्रेणी का दर्जा दिया जाए. वे सामाजिक तौर पर बहिष्कार झेलते हैं और आर्थिक तथा शैक्षणिक तौर पर भी एकदम निचले पायदान पर खड़े हैं. इसलिए उन्हें अनुसूचित जाति में शामिल किया जाना चाहिए. बिहार सरकार ने 2023 में जाति आधारित गणना करवाया था. जिसमें मुसलमान के एक दर्जन जातियों के बारे में कहा गया था कि उनकी आर्थिक शैक्षणिक स्थिति बहुत ही खराब है.
क्या कहना है इन लोगों का: बिहार में अति पिछड़ा आयोग के सदस्य रह चुके उस्मान हलालखोर का कहना है कि उनके पूर्वज दलित हिंदू थे. हिंदुओं में छुआछूत के कारण उनके पूर्वजों ने धर्म परिवर्तन किया, लेकिन इस्लाम धर्म कबूल करने के बाद भी वहां ऐसी ही कुप्रथा देखने को मिली. उन लोगों के साथ अभी भी दोयम दर्जे का सुलूक किया जाता है. आज भी मुसलमानों में पसमांदा समाज को नीचे के तबके के लोगों जैसा सलूक होता है. 500 साल पहले मुसलमान में मोहब्बत और एकता को देखते हुए उनके पूर्वजों ने धर्म परिवर्तन किया था. लेकिन यहां भी सदियों से इसी तरीके की छुआछूत हो रही है.
'मुसलमान रखते हैं पसमांदा से दूरी': मेहतर, हलालखोर , भटियारा, धोबी दर्जन भर जातियां हैं, जिनके साथ यहां भी छुआछूत वाली व्यवस्था है. सदियों बिताने के बाद भी इन लोगों को मुसलमान ने अपना नहीं माना. "उस्मान हलालखोर" ने आयोग के सदस्यों से मिलकर मांग की है कि उन लोगों को भी अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल किया जाए. उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि आज भी मुसलमान में अनेक ऐसी जातियां हैं जिनके यहां मुसलमान न खान-पान रखता है ना शादी विवाह में शामिल होता है.
'मुस्लिमों में हिन्दुओं से ज्यादा जातिवाद': मेहतर समुदाय हलखोर समुदाय के लोगों को लोग अपने यहां बैठने तक नहीं देते हैं. सासाराम के रहने वाले "हसनैन गधेड़ी" का कहना है कि जिस तरीके का जातिवाद हिंदुओं में है उससे कहीं ज्यादा मुसलमानों में है. इन लोगों का परंपरागत पैसा मजदूरी था. घर बनाने में वह ईट और बालू उठाने के लिए गधों का प्रयोग करते थे. इसीलिए उन लोगों के पीछे गधेरी टाइटल लगा दिया गया. आज भी उन लोगों को कोई अच्छे कामों में अपने यहां नहीं बुलाता है. उन लोगों को भी वही हक मिलना चाहिए जो हिंदुओं में दलितों को मिलता है.