नई दिल्ली:देश की राजधानी दिल्ली यूं तो सिर्फ 1483 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है, लेकिन विधानसभा चुनाव की चर्चा पूरे देश में है. पिछले साल संपन्न हुए आम चुनाव में दो बार से लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुर्खियों में थे, कुछ इसी तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव में केंद्र बिंदु अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी है. दिल्ली को अभी पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला है. अन्य राज्यों की विधानसभा सीटों के लिहाज से दिल्ली की राजनीति कुछ भी नहीं है. मगर यहां होने वाले चुनाव प्रचार में देशभर के लोगों की दिलचस्पी है. आंदोलन से बनी आम आदमी पार्टी जो एक दशक में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर ली, इसका मुकाबला देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा से है.
वर्ष 2011 में केंद्र की कांग्रेस सरकार के खिलाफ देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन काफी तेज हो चुका था. इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए बुद्धिजीवियों जिसमें शांति भूषण, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, संतोष हेगड़े, कुमार विश्वास जैसे कई नाम थे, उसमें से एक नाम अरविंद केजरीवाल भी था. जिन्होंने इंडिया अगेंस्ट करप्शन का गठन किया और इसमें मुख्य चेहरा महाराष्ट्र के समाजसेवी अन्ना हजारे को बनाया.
इंडिया अगेंस्ट करप्शन को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार संतोष कुमार ने ईटीवी भारत को बताया, इन सभी ने कांग्रेस की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन शुरू करने का फैसला लिया. तय हुआ लोकपाल बिल लाने का और इस जिद से सभी जंतर-मंतर पर से आंदोलन की शुरुआत की. धीरे-धीरे आंदोलन देश के अलग-अलग शहरों में हुआ और अगस्त 2011 में दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में आंदोलन शुरू हुआ. जिसमें अन्ना हज़ारे समेत अन्य ने अनशन किया. जन लोकपाल को लेकर समाजसेवी अन्ना हजारे के अनशन में तब गैर सरकारी संस्था चलाने वाले अरविंद केजरीवाल और उनके साथी शामिल हुए थे. इस आंदोलन में अन्ना समेत टीम केजरीवाल ने मौजूदा केंद्र की कांग्रेस सरकार पर हमला बोला था. उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. जिससे लोगों में आक्रोश भरा.
''अन्ना आंदोलन समाप्त होने के बाद इससे जुड़े अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण अन्य नेताओं ने व्यवस्था परिवर्तन के लिए 2 अक्टूबर 2012 को आम आदमी पार्टी के नाम से गठन करने का निर्णय लिया. और, 26 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आई. पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया. इस पार्टी के विधिवत रूप से इसके संयोजक अरविंद केजरीवाल को बनाया गया.''-संतोष कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
दिसंबर 2013 में चुनाव मैदान में उतरी थी आप:दिल्ली सरकार की वर्षों से कवरेज करने वाले विजय कुमार ने बताया, आम आदमी पार्टी के गठन के बाद दिल्ली में तत्कालीन शीला दीक्षित सरकार का कार्यकाल पूरा होने वाला था. दिसंबर 2013 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने सभी सीटों पर लड़ने का फैसला लिया. चुनाव नतीजे आए लेकिन किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिला. तब कांग्रेस के खिलाफ राजनीति में आए आम आदमी पार्टी ने फिर कांग्रेस के जीते हुए आठ विधायकों के समर्थन से दिल्ली में पहली बार सत्ता में आई थी. अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने, मगर यह सरकार सिर्फ 49 दिनों तक ही चल सकी. उन्होंने बताया लोगों से किए चुनावी वादे के तहत आम आदमी पार्टी सरकार दिल्ली में जन लोकपाल बिल लाना चाहती थी. मगर इसमें कांग्रेस का समर्थन नहीं दिया और स्थिति ऐसी बनी की मुख्यमंत्री केजरीवाल को इस्तीफा देना पड़ा.
49 दिनों तक चली थी आप सरकार:दिल्ली में पहली बार बनी आम आदमी पार्टी सरकार 49 दिनों तक चली फिर दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा. राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा तेजी से हुई कि अरविंद केजरीवाल ने एक बड़ी भूल कर दी. नतीजा रहा राष्ट्रपति शासन के बाद वर्ष 2015 में जब विधानसभा चुनाव हुए. यह दूसरा मौका था आम आदमी पार्टी दिल्ली की जनता से एक बार फिर विश्वास कर वोट देने के लिए समर्थन मांगने का. तब आम आदमी पार्टी के तमाम नेता ने यह स्वीकार की इस्तीफा देना भूल थी, एक बार फिर अवसर देने, आम आदमी पार्टी को वोट देने की अपील की. परिणाम चौंकाने वाला आया. आम आदमी पार्टी को सभी 70 सीटों में से 67 सीटों पर जीत हासिल हुई. यह देश के इतिहास में पहली बार हुआ कि किसी राजनीतिक दल को ऐसा प्रचंड बहुमत मिला हो. कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया और भाजपा मात्र तीन सीटों पर ही सिमट गई.
2015 के चुनाव में पूर्ण बहुमत से पहली बार दिल्ली में बनी थी आप सरकार:तब आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की जनता से किए वादे बिजली बिल, हाफ पानी बिल माफ समेत अन्य वादे किए थे, उसे धीरे-धीरे कर पूरा करना शुरू किया. नतीजा रहा 5 साल तक सरकार चलाने में आम आदमी पार्टी को किसी तरह की परेशानी नहीं हुई. इतना ही नहीं आत्मविश्वास से लवरेज आम आदमी पार्टी देश के अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया. हालांकि आशा के अनुरूप वहां पर परिणाम नहीं मिले. मगर पार्टी का विस्तार होता ही गया. इसी बीच वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी 4 सीटें जीतने में सफल हुई.