नई दिल्ली: दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में एल्डरमैन (मनोनीत पार्षद) की नियुक्ति का अधिकार एलजी के पास ही रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुना दिया है. यह मामला पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. आम आदमी शासित एमसीडी में 10 मनोनीत पार्षद (एल्डरमैन) की उपराज्यपाल द्वारा नियुक्ति करने के विरोध में आम आदमी पार्टी सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी.
यह संसद द्वारा बनाया गया कानून:न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि एलजी स्वतंत्र रूप से एमसीडी में 10 एल्डरमैन को नामित कर सकते हैं. उन्हें निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह के अनुसार कार्य करने की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने कहा कि यह संसद द्वारा बनाया गया कानून है, जो एलजी द्वारा प्रयोग किए गए विवेक को संतुष्ट करता है. क्योंकि कानून के लिए उन्हें ऐसा करना आवश्यक है और यह अनुच्छेद 239 के अपवाद के अंतर्गत आता है. यह सन् 1993 का दिल्ली नगर निगम का अधिनियम था, जिसने सबसे पहले नामांकन की शक्ति एलजी को दी थी. कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना एमसीडी में एल्डरमैन को नामित करने के एलजी के फैसले को चुनौती दी गई थी. अदालत द्वारा मामले पर सुनवाई पूरी होने के लगभग 15 महीने बाद यह फैसला आया.
पहले कही थी यह बात: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने पिछले साल 17 मई को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने कहा था कि एलजी को एल्डरमैन को नामित करने की शक्ति देने का प्रभावी रूप से मतलब यह होगा कि वह लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित एमसीडी को अस्थिर कर सकते हैं, क्योंकि ये एल्डरमैन स्थायी समितियों में नियुक्त हो जाते हैं और उनके पास मतदान की शक्ति होती है.
सरकार के वकील ने दी ये दलील:वहीं दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एएम सिंघवी ने दलील दी थी कि उपराज्यपाल ने इस मुद्दे पर राज्य कैबिनेट की सहायता और सलाह को नजरअंदाज कर दिया है. राज्य सरकार ने तर्क दिया कि 1991 में संविधान के अनुच्छेद 239AA के लागू होने के बाद यह पहला मामला है, जहां उपराज्यपाल ने निर्वाचित सरकार से परामर्श किए बिना एमसीडी में एल्डरमैन को नामित किया है.