नई दिल्ली:भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली मोदी सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' बिल पेश कर सकती है. ऐसे में कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत कर रही है और बिल के खिलाफ समर्थन जुटा रही है.
कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार सत्तारूढ़ एनडीए के पास लोकसभा में आवश्यक संख्या नहीं है, जहां उसे वन नेशन, वन इलेक्शन योजना को मंजूरी देने के लिए आवश्यक संवैधानिक संशोधन को आगे बढ़ाने के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी. बता दें कि 543 सदस्यीय सदन में एनडीए के पास केवल 293 सदस्य हैं, लेकिन संविधान में संशोधन कराने के लिए उसे 362 सदस्यों की आवश्यकता होगी.
एनडीए के पास पर्याप्त संख्या नहीं
इस संबंध में लोकसभा सांसद प्रणति शिंदे ने ईटीवी भारत से कहा, "यह स्पष्ट है कि एनडीए के पास लोकसभा में पर्याप्त संख्या नहीं है. इसलिए, अगर सरकार शीतकालीन सत्र में ऐसा कोई विधेयक लाती है तो उसे कड़े विरोध का सामना करना पड़ेगा. हम इस मुद्दे पर सदन में इंडिया ब्लॉक का समर्थन भी जुटाएंगे. हमारा मानना है कि यह एक अव्यावहारिक विचार है."
गौरतलब है कि वन नेशन, वन इलेक्शन बिल को हाल ही में कैबिनेट ने मंजूरी दी है और इसे कानून बनने के लिए संसद के किसी भी सदन में दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी, क्योंकि इसके लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है. कांग्रेस के रणनीतिकार इस बात से उत्साहित हैं कि न केवल सबसे पुरानी पार्टी बल्कि इसके कई सहयोगी और अन्य क्षेत्रीय दल भी केंद्र की योजना के खिलाफ हैं.
AAP और टीएमसी ने भी साधा निशाना
पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस के सहयोगी दल समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल सार्वजनिक रूप से एक राष्ट्र, एक चुनाव के खिलाफ सामने आए और कहा कि यह भाजपा की साजिश है. AAP ने देश में एक साथ चुनाव कराने के केंद्र के कदम की आलोचना करते हुए कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी जिम्मेदारी से बचना चाहती है, जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इसे संघीय ढांचे पर हमला करार दिया.
संघीय ढांचे पर हमला
जानकारी के मुताबिक विपक्ष लोगों को यह भी बताएगा कि 1952 में पूरे देश में एक साथ चुनाव हुए थे, लेकिन बाद में ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि राज्य सरकारें गिर गईं और राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. ऐसे में इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा. इसी तरह विपक्षी समूह एक राष्ट्र, एक चुनाव के विचार को संघीय ढांचे पर हमला भी करार देगा.
'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के विचार के खिलाफ दूसरा मुद्दा यह है कि इससे पैसे की बचत नहीं होगी और नीति निर्माण में बाधा नहीं आएगी, जैसा कि भाजपा द्वारा पेश किया जा रहा है. कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, अगर सरकार पैसे बचाने के लिए इतनी उत्सुक है, तो वह बड़े कॉरपोरेट्स पर हजारों करोड़ रुपये का टैक्स माफ करने से पहले दो बार क्यों नहीं सोचती. इसके अलावा, विपक्ष तर्क देगा कि किसी भी सरकार को नीतियां बनाने के लिए पूरे पांच साल का कार्यकाल मिलता है, जो पर्याप्त है.
एआईसीसी पदाधिकारी अजय कुमार ने ईटीवी भारत से कहा, "जब भी चुनाव आते हैं, वे कुछ आकर्षक विचार पेश करते हैं. हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव पहले एक साथ क्यों नहीं कराए जा सकते थे? यह सब नौकरियों और ऊंची कीमतों के मुद्दे से जनता का ध्यान हटाने के लिए है."
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