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'लोगों को प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का अधिकार', सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की आलोचना की

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बुधवार को वायु गुणवत्ता बहुत खराब कैटेगरी में दर्ज की गई, जबकि कई क्षेत्र गंभीर श्रेणी में आ गए.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (IANS)

By Sumit Saxena

Published : Oct 23, 2024, 5:42 PM IST

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के पड़ोसी राज्यों में बड़े पैमाने पर पराली जलाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र और राज्य सरकारों को नागरिकों के सम्मान के साथ और प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के अधिकार की याद दिलाई और संशोधनों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम को "टूथलेस" बनाने के लिए केंद्र की खिंचाई की.

कोर्ट ने कहा कि धारा 15 के प्रावधान, जिसमें गलत काम करने वालों के खिलाफ मुकदमा चलाने की आवश्यकता थी, उसको जुर्माना वसूलने के प्रावधान से बदल दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में एयक क्वालिटी मैनेजमेंट कमीशन अधिनियम 2021 (CAQM अधिनियम) को वायु प्रदूषण को रोकने के प्रावधान को लागू करने के लिए आवश्यक मशीनरी बनाए बिना लागू किया गया था.

प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का मौलिक अधिकार
जस्टिस अभय एस ओका की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ, जिसमें जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं, ने कहा कि भारत सरकार और राज्य सरकारों को यह स्वीकार करना चाहिए कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक नागरिक को प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का मौलिक अधिकार है.

बता दें कि राष्ट्रीय राजधानी में बुधवार को वायु गुणवत्ता बहुत खराब कैटेगरी में दर्ज की गई, जबकि कई क्षेत्र गंभीर श्रेणी में आ गए. जस्टिस ओका ने आदेश सुनाते हुए कहा कि यह केवल मौजूदा कानूनों को लागू करने का मामला नहीं है, यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकार के खुलेआम उल्लंघन का मामला है.

पर्यावरण से संबंधित कानूनों का सख्ती से पालन किया जाए
जस्टिस ओका ने जोर देकर कहा कि सरकारों को इस सवाल का समाधान करना होगा कि वे नागरिकों के सम्मान के साथ जीने और प्रदूषण मुक्त वातावरण के अधिकार की रक्षा कैसे करें. इसलिए, यह सही समय है कि सरकारें और सभी अधिकारी इस बात पर ध्यान दें कि यह मुकदमा कोई विरोधात्मक मुकदमा नहीं है. यह मुकदमा केवल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि पर्यावरण से संबंधित कानूनों का सख्ती से पालन किया जाए, ताकि नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को बरकरार रखा जा सके.

पीठ ने कहा कि बड़ी संख्या में अधिकारियों द्वारा क्या सटीक कार्रवाई की गई है, यह स्पष्ट रूप से रिकॉर्ड में नहीं रखा गया है. हरियाणा के मुख्य सचिव ने कहा कि पराली जलाने की घटनाओं में काफी कमी आई है.

इस पर न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि हरियाणा और पंजाब दोनों सरकारों के मामले में, हम पाते हैं कि चुनिंदा कार्रवाई की गई है और कुछ मामलों में सरकारें दावा कर रही हैं कि उन्होंने मुआवजा वसूल कर लिया है और कुछ मामलों में वे दावा कर रही हैं कि उन्होंने एफआईआर दर्ज की है, और वसूला जाने वाला पर्यावरण मुआवजा न्यूनतम है. पीठ ने आगे कहा कि अब धारा 15 के प्रावधान, जिसके तहत गलत काम करने वालों के खिलाफ मुकदमा चलाने की आवश्यकता थी उनको जुर्माना वसूलने के प्रावधान द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है.

न्यायमूर्ति ओका ने कहा, "भारत सरकार की निष्क्रियता के कारण यह प्रावधान पूरी तरह से अप्रभावी हो गया है." उन्होंने कहा कि 6 महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद न्यायनिर्णयन अधिकारी की नियुक्ति नहीं की गई है और कानून लागू करने वाली मशीनरी धारा 15 के तहत जुर्माना नहीं लगा सकती.

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