कोरबा:हसदेव अरण्य क्षेत्र का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में पेड़ों की कटाई पर रिपोर्ट मांगी थी. साय सरकार ने रिपोर्ट एनजीटी को सौंपी है. रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में 98 हजार पेड़ काटे गए हैं. जबकि आंदोलनकारी एक्टिविस्ट इससे इत्तेफाक नहीं रखते.
आंदोलनकारियों के मुताबिक पहली बार 2012 में हसदेव में पेड़ों के कटाई शुरू हुई थी. तब यहां अकूत कोयले के भंडार होने की जानकारी मिली थी. तब से लेकर अब तक लगभग साढ़े 3 लाख लाख पेड़ काटे जा चुके हैं. जंगल की कटाई का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारें जंगल के काटे जाने के लिए जिम्मेदार हैं. लेकिन भाजपा की सरकार आते ही पेड़ों की कटाई तेज गति से की जा रही है.
इसलिए खास है हसदेव का जंगल:मध्य भारत का फेफड़ा होने के साथ ही हसदेव अरण्य तीन राज्यों के जंगलों को जोड़ता है. एक छोर मध्य प्रदेश के कान्हा जंगल से जुड़ा है तो दूसरा छोर झारखंड के पलामू तक फैला है. छत्तीसगढ़ में यह जंगल कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिलों में फैला हुआ है. इसी क्षेत्र में हसदेव नदी बहती है. हसदेव के जंगल हसदेव नदी का कैचमेंट एरिया है. हसदेव नदी पर बने मिनी माता बांगो बांध से बिलासपुर, जांजगीर चांपा और कोरबा के खेतों और लोगों को पानी मिलता है.
एक ओर सैकड़ों एकड़ खेत संचित होते हैं. तो दूसरी तरफ कोरबा में संचालित दर्जन भर पावर प्लांट को यहीं से पानी मिलता है, जिससे बिजली पैदा होती है. इससे न सिर्फ प्रदेश बल्कि देश के कई अन्य राज्यों को भी रोशनी मिलती है. इतना ही नहीं हसदेव के जंगल में हाथी समेत 25 वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवागमन का क्षेत्र है. करीब 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैला यह जंगल अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है. यहां गोंड, लोहार और ओरांव, पहाड़ी कोरवा जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार लोगों का घर है. 82 तरह के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां और 167 प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं.
यहां प्रस्तावित है लेमरु हाथी रिजर्व:केंद्र सरकार की तरफ से 2018 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में देश के केवल एक प्रतिशत हाथी हैं. लेकिन इसी जंगली सीमा में ओडिशा, झारखंड और मध्य प्रदेश लगा हुआ है. इस वजह से हसदेव का जंगल हाथियों की आवाजाही का रास्ता है. वनों की कटाई के कारण प्रदेश में हाथी मानव द्वंद्व की घटनाएं बढ़ गई हैं. स्थानीय लोगों की मांग और हाथियों के संरक्षण के लिए वन क्षेत्र के करीब 2 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को हाथी रिजर्व घोषित किया गया है. इस रिजर्व को लेमरु हाथी रिजर्व नाम दिया गया है. जो अधर में लटका हुआ है. कुछ काम हुए भी हैं. लेकिन अंतिम नोटिफिकेशन फिलहाल जारी नहीं हुआ है.
ये है विरोध की असली वजह:हसदेव अरण्य का पूरा क्षेत्र पांचवीं अनूसूची में आता है. ऐसे में वहां खनन के लिए ग्राम सभा की मंजूरी जरुरी है. आंदोलन कर रहे लोगों का कहना है कि ग्राम सभा ने मंजूरी नहीं दी है. वजह यह है कि परसा ईस्ट केते बासेन खदान के लिए कुल 1136 हेक्टेयर जंगल काटा जाना है, जिसमें से 137 हेक्टेयर काटा जा चुका है. इसके साथ ही परसा कोल ब्लॉक के 1267 हेक्टेयर भविष्य में काटा जाएगा. लगभग 9 लाख पेड़ काटे जाएंगे. इससे वन्य जीवों और वनस्पति के साथ हसदेव नदी का केचमेंट भी प्रभावित होगा. केंद्र सरकार द्वारा किये गए सर्वे में हसदेव अरण्य क्षेत्र में कुल 22 कॉल ब्लॉक के मौजूद होने के प्रमाण मिले हैं.
कांग्रेस के कार्यकाल में ही दी गई थी पेड़ काटने की अनुमति:छत्तीसगढ़ शासन में कैबिनेट मंत्री लखन लाल देवांगन का कहना है कि, "हसदेव अरण्य क्षेत्र में पेड़ों को काटने की अनुमति पूर्ववर्ती कांग्रेस के सरकार में ही दी गई थी. उसी अनुमति के आधार पर पेड़ों की कटाई की जा रही है. सरकार ने जनहित को ध्यान में रखते हुए जरूरी कदम उठाए हैं. आगे भी जो जनहित में होगा, उसी तरह से कार्रवाई किए जाएंगे."
उद्योगों को फायदा पहुंचाना भाजपा की राजनीति:जिला कांग्रेस कमेटी कोरबा के ग्रामीण अध्यक्ष सुरेंद्र जायसवाल का इस विषय में कहना है कि, "भाजपा की उद्योग परस्ती जग जाहिर है. शीर्ष नेतृत्व उद्योगों को फायदा पहुंचाने के लिए ही कार्य करते हैं. इसलिए हसदेव में जो जंगलों की कटाई हुई है. वह भाजपा की सरकार आते ही और तेज हो गई है. वह चाहते तो पेड़ों की कटाई पर रोक लगा सकते थे, लेकिन चूंकि उद्योग संचालित करने वाले मालिकों से इनकी दोस्ती है. इसलिए वह उद्योगों को फायदा पहुंचाने के लिए ही सारे काम करते हैं. इन्हें जनहित के काम से या जंगलों को नष्ट किए जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता. नए पेड़ लगाने के भी जो दावे किए जा रहे हैं. वह भी किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता. जो पेड़ काटे गए हैं. वह सैकड़ो वर्ष पुराने हैं, जिनकी भरपाई नए पेड़ लगाकर कभी भी नहीं हो सकती."
NGT ने हसदेव मामले में लिया तुरंत संज्ञान:परसा पूर्वी केते बासन कोयला क्षेत्र और हसदेव में पेड़ों की कटाई को लेकर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने स्वत: संज्ञान लिया. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राज्य के वन विभाग से एक रिपोर्ट मांगी. जिसका राज्य सरकार ने जवाब दिया. इस जवाब में राज्य सरकार ने कहा कि पेड़ों की कटाई "केंद्र और राज्य सरकार दोनों द्वारा दी गई मंजूरी और अनुमतियों का सख्ती से पालन करते हुए की जा रही है. पीईकेबी कोयला ब्लॉक 1,898 हेक्टेयर वन भूमि में फैला हुआ है. चरण 1 का खनन 762 हेक्टेयर पर पूरा हो चुका है जबकि चरण 2 शेष 1,136 हेक्टेयर पर चल रहा है. साल 2012 और 2022 के बीच खनन के पहले चरण में कुल 81, 866 पेड़ काटे गए. चरण 2 के तहत 113 हेक्टेयर पर लगभग 17,460 पेड़ काटे गए हैं. पेड़ों के नुकसान की भरपाई के लिए 53 लाख से अधिक पौधे लगाए गए हैं.
सरकार ने पेश किए गलत आंकड़े:इस पूरे मामले में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन संस्था के लोगों ने सवाल खड़े किए हैं. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि हसदेव अरण्य में प्रति हेक्टेयर 400 पेड़ हैं. इसका मतलब है कि 2012 से अब तक 3.5 लाख से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं. राज्य सरकार ने संख्या को बहुत कम बताया है. हसदेव अरण्य में कुल 22 कोयला ब्लॉकों की पहचान की गई है, जिनमें से सात जिनका कुल क्षेत्रफल लगभग 8,500 हेक्टेयर है. विभिन्न राज्य सरकार की कंपनियों को आवंटित किए गए हैं. उन्होंने दावा किया कि इन कोयला ब्लॉकों में खनन से 32 लाख से अधिक पेड़ नष्ट हो जायेंगे. सरकार गलत आंकड़े पेश कर रही है. उद्योगों को फायदा पहुंचाने के लिए ऐसा किया जा रहा है.