पटना: सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) कोकोटे के भीतर कोटा देने और क्रीमी लेयर का आरक्षण समाप्त करने का सुझाव दिया है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सभी अनुसूचित जातियां और जनजातियां एक समान वर्ग नहीं है. इसके अंदर एक जाति दूसरे से ज्यादा पिछड़ी हो सकती है. इसलिए उनके उत्थान के लिए राज्य सरकार सब-क्लासिफिकेशन कर अलग से आरक्षण दे सकती है. इसके साथ ही अदालत ने एससी, एसटी वर्ग के आरक्षण से क्रीमीलेयर को चिह्नित कर बाहर करने की जरूरत पर भी जोर दिया है.
आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ किसे मिला: बिहार में एससी कैटेगरी में 22 जाति शामिल हैं. जिसमें राजनीतिक रूप से देखा जाए तो पासवान, रविदास यानी चमार, मांझी, धोबी एवं चौपाल अन्य जातियों की अपेक्षा मजबूत स्थिति में है. आर्थिक रूप हो या राजनीतिक क्षेत्र सबों में इनका प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है, लेकिन इसके अलावे अन्य जातियों को जितना लाभ मिलना चाहिए उतना लाभ नहीं मिला है. जहां तक ST की बात है इसमें कुल 23 जाति शामिल है. लेकिन आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से मात्र कुछ जातियों का विकास हो पाया है. जिसमें बरायिक, खरवार एवं गोंड शामिल है. इसके अलावा अन्य जातियों को जितना लाभ मिलना चाहिए उनका लाभ नहीं मिल सका है.
बिहार में SC की जातियां: बिहार की 22 अनुसूचित जाति है. राज्य की अनुसूचित जाति में बंतार, बौरी, भोगता, भुईया, चमार, मोची, चौपाल, दबगर, धोबी, डोम, धनगड, (पासवान) दुसाध, कंजर, कुररियार, धारी, धारही, घासी, हलालखोर, हरि, मेहतर, भंगी और लालबेगी शामिल हैं.
बिहार में ST की जातियां: बिहार की अनुसूचित जनजाति ST में असुर, अगरिया, बैगा, करमाली, खरिया, धेलकी खरिया, दूध खरिया, बेदिया, बिनझिया, बिरहोर, बिरजिया, चेरो, चिक, बराइक, बरैक, गोंड, गोरेत, हो, हिल खरिया, खरवार, खोंड और नगेसिया शामिल हैं.
बिहार में जाति आधारित कैटेगरी : बिहार सरकार ने पिछले साल जातिगत जनगणना करवाई थी. बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की 13 करोड़ से ज्यादा आबादी में 27% पिछड़ा वर्ग, 36% अति पिछड़ा वर्ग, 19% अनुसूचित जाति और 1.68 % अनुसूचित जनजाति है. रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद बिहार में आरक्षण के दायरा बढ़ाने की मांग को लेकर सियासत शुरू हुई. जातिगत जनगणना के बाद बनी नई ईबीसी कैटेगरी यानी अति पिछड़ा वर्ग की राजनीति तेज हो गई थी.
बिहार सरकार ने आरक्षण बढ़ाया: बिहार सरकार ने बिहार में आरक्षण का कोटा 65% तक बढ़ा दिया, जिस पर पटना हाई कोर्ट ने रोक लगा दी. यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट के अधीन चल रहा है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने एससी-एसटी को लेकर जो निर्णय दिया है, उस पर एक बार फिर से बिहार में सियासत शुरू हो गई है.
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद सियासत : सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के द्वारा दिए गए निर्णय के बाद नेताओं की प्रतिक्रिया सामने आई है. एससी-एसटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के द्वारा दिए गए निर्णय के बाद इस पर सियासत शुरू हो गई है. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से सहमत नहीं है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान खुलकर कोर्ट केस निर्णय पर अपना आपत्ति जाता दिया है. इसे लेकर पुनर्विचार याचिका दायर करने की घोषणा चिराग की ओर से की गई है.
''पार्टी के संस्थापक पद्म भूषण रामविलास पासवान भी इस बात की मांग करते आए हैं कि जब तक समझ में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के खिलाफ छुआछूत जैसी प्रथा है, तब तक एससी एसटी श्रेणियां को सब कैटिगरी में आरक्षण एवं क्रीमीलेयर जैसे प्रावधान न हो. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह करती है कि फैसले का पुनर्विचार किया जाए ताकि एससी एसटी समाज में भेदभाव न उत्पन्न हो और समाज को कमजोर न किया जा सके.''- चिराग पासवान, अध्यक्ष, लोक जनशक्ति पार्टी
राजद भी इस निर्णय से असहमत : सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिए गए निर्णय का आरजेडी के नेता भी विरोध कर रहे हैं. आरजेडी विधायक सतीश दास ने ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय किसी डेटा के आधार पर नहीं दिया गया है. यह आरक्षण की मूल धारणा के खिलाफ दिया हुआ फैसला है. आरक्षण का मूल धारणा था कि उसे सामाजिक रूप से उचित प्रतिनिधित्व मिल सके.
''यदि वर्गीकरण को ही आधार माना जाए तो सवर्णों में भी यह लागू हो कि किस जाति की कितनी आबादी है और उनका किंतना प्रतिनिधित्व है. सुप्रीम कोर्ट को यह कहना चाहिए था कि एससी-एसटी के वैसे वर्गों को जिनका विकास अभी तक नहीं हो पाया है, उसके लिए सरकार को अलग से व्यवस्था करनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की परिकल्पना के विपरीत है.''- सतीश दास, विधायक, आरजेडी
आरक्षण व्यवस्था गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं: सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय पर बिहार सरकार के डेडीकेटेड कमीशन के पूर्व सदस्य और जदयू नेता अरविंद निषाद का कहना है कि जिस काम की पहल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति सर्वेक्षण करवा के कहा आज सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण में कोटा की बात कही है, उसमें जाति सर्वेक्षण का अहम रोल है. देश में किस जाति का कितना विकास हुआ है, जिसका डेटा नहीं रहेगा तो कैसे पता चलेगा कि कि किसका कितना विकास हुआ. देश में जाति एक सच्चाई है, जिसे जानने की आवश्यकता है.