पटना: लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण के लिए 19 अप्रैल को मतदान होना है. पहले चरण में बिहार की चार लोकसभा सीटों पर वोट डाले जाएंगे. ये चार सीट हैं-गया, नवादा, जमुई और औरंगाबाद. चारों सीटों पर कुल 39 उम्मीदवार मैदान में डटे हैं. तीन सीटों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार कर चुके हैं. दो सीटों पर दलित नेता जीतन राम मांझी और चिराग पासवान की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.
हॉट सीट है गया लोकसभा सीटः यहां से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी मैदान में हैं. वे एनडीए के उम्मीदवार हैं और हम के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. यहां से कुल मिलाकर 15 उम्मीदवार मैदान में हैं. मुख्य मुकाबला जीतन राम मांझी और महागठबंधन के उम्मीदवार पूर्व कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत के बीच है. 2019 में जीतन राम मांझी महागठबंधन के टिकट पर चुनाव लड़े थे. तब एनडीए के जदयू उम्मीदवार विजय मांझी ने उन्हें शिकस्त दी थी. इस बार जीतन राम मांझी एनडीए के उम्मीदवार हैं. जदयू कोटे से इस सीट को लेकर हम को दिया गया है. निर्वतमान सांसद विजय मांझी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.
पासवान वोट में सेंधमारी का प्लानः लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो जीतन राम मांझी को 3,14,000 से अधिक वोट हासिल हुए थे. आपको बता दें कि गया लोकसभा क्षेत्र में कुल 6 विधानसभा है. इनमें से तीन पर महागठबंधन के विधायक हैं. तीन विधानसभा सीट पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का कब्जा है. इस बार लालू प्रसाद यादव ने पासवान जाति के उम्मीदवार कुमार सर्वजीत पर यह सोचकर दांव लगाया है कि वे पासवान वोटों में सेंधमारी कर सकते हैं. राष्ट्रीय जनता दल मुस्लिम यादव और पासवान जाति के वोटों की बदौलत जीत हासिल करना चाहती है. तेजस्वी यादव ने गया कुल आठ सभाएं की हैं.
गया में क्या है जातीय समीकरणः खास बात यह है कि गया लोकसभा सीट पर पिछले 25 साल से मांझी जाति का कब्जा है. गया लोकसभा सीट मांझी आबादी के लिए भी जाना जाता है. ढाई लाख से अधिक मांझी वोटर गया लोकसभा क्षेत्र में है. इसके अलावा पासवान, धोबी और पासी की आबादी भी अच्छी खासी है. जातीय समीकरण की बात करें तो सबसे ज्यादा मतदाता यादव जाति के हैं. 15% के करीब यादव मतदाता हैं. वही मांझी मतदाता 14% के करीब हैं. मुस्लिम मतदाता 12.8% हैं. वैश्य मतदाता 13% के करीब हैं. चंद्रवंशी मतदाता 7%, राजपूत 6%, कुम्हार 6%, चौधरी 3%, शर्मा 2%, कुर्मी-कोईरी 8%, ब्राह्मण 6%, जैन, ईसाई सिख आदिवासी व अन्य मतदाता 5% से अधिक हैं.
चिराग पासवान के लिए प्रतिष्ठा का विषय बनाःजमुई सीट से एनडीए के लिए लोजपा आर प्रत्याशी अरुण भारती मैदान में हैं. 2019 में लोजपा आर प्रमुख चिराग पासवान यहां से चुनाव जीते थे. इस बार उन्होंने अपने बहनोई अरुण भारती को उम्मीदवार बनाया है. वे पिछले 7 दिनों से जमुई में कैंप किये हुए हैं. राष्ट्रीय जनता दल ने महिला उम्मीदवार अर्चना रविदास को मैदान में उतारा है. अर्चना रविदास के पति यादव जाति से आते हैं. ऐसे में राजद को उम्मीद है कि यादव और दलित वोटों की बदौलत वो चुनाव जीत सकता है. पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार यहां चुनावी सभा कर चुके हैं.
जमुई में जातीय समीकरणः जमुई लोकसभा सीट पर कुल सात उम्मीदवार मैदान में हैं. जमुई लोकसभा सीट पर जातिगत समीकरण की बात कर ले तो जमुई लोकसभा क्षेत्र में तीन लाख से ज्यादा यादव वोटर हैं. ढाई लाख से अधिक मुस्लिम वोटर हैं. दलित-महादलित की आबादी भी ढाई लाख के आसपास है. सवर्ण वोटरों की संख्या तकरीबन 2.5 लाख से ज्यादा है. अगड़ी जाति की आबादी में राजपूत सबसे अधिक हैं, जिनकी आबादी 2 लाख से अधिक बताई जाती है. जमुई के कद्दावर राजपूत नेता अजय सिंह को राष्ट्रीय जनता दल ने अपने खेमे में ले लिया है. अजय सिंह पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के पुत्र और बिहार सरकार के मंत्री सुमित सिंह के भाई हैं.
बिहार का चित्तौड़गढ़ है औरंगाबाद लोकसभा सीटः औरंगाबाद लोकसभा सीट से निवर्तमान सांसद और भाजपा नेता सुशील सिंह तीसरी बार भाग्य आजमा रहे हैं. औरंगाबाद सीट पर 1952 के बाद से राजपूत उम्मीदवार चुनाव जीतते आ रहे हैं. इस बार लालू प्रसाद यादव ने औरंगाबाद में प्रयोग किया है. कुशवाहा जाति के नेता अभय कुशवाहा को मैदान में उतारा है. लालू प्रसाद यादव को उम्मीद है कि कुशवाहा जाति में डेंट कर वह औरंगाबाद के चित्तौड़गढ़ के किले को ध्वस्त कर सकते हैं. लालू प्रसाद यादव की नजर 1,90,000 यादव वोटर के अलावा 1,25,000 मुस्लिम और 1,25,000 कुशवाहा जाति के वोटर पर है.
औरंगाबाद कांग्रेस खेमे में नाराजगीःऔरंगाबाद में ढाई लाख से अधिक आबादी राजपूत वोटरों की है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से सुशील सिंह के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चुनाव प्रचार किया तो अमित शाह ने भी औरंगाबाद में चुनावी सभा की. औरंगाबाद लोकसभा सीट को जीतने के लिए एनडीए नेताओं ने पूरी ताकत झोंक रखी है. नीतीश कुमार ने भी वहां चुनाव प्रचार किया है. वहीं महागठबंधन की एकता की बात करें तो कांग्रेस के नेता नाराज हैं. कांग्रेस इस सीट से चुनाव लड़ना चाहती थी. कांग्रेस के दिग्गज नेता निखिल कुमार को टिकट मिलने की उम्मीद थी, लेकिन राजद ने कांग्रेस से बिना बात किये यहां से अपने उम्मीदवार उतार दिये.
नवादा में त्रिकोणीय है मुकाबला: नवादा लोकसभा सीट राष्ट्रीय जनता दल के लिए गले की हड्डी बन गयी है. यहां त्रिकोणीय मुकाबला बताया जा रहा है. राष्ट्रीय जनता दल ने नवादा लोकसभा सीट पर प्रयोग किया है. कुशवाहा जाति के उम्मीदवार श्रवण कुशवाहा को मैदान में उतारा है. श्रवण कुशवाहा को भीतरघात का सामना करना पड़ रहा है. राष्ट्रीय जनता दल के तीन विधायक, दो विधान परिषद और जिला अध्यक्ष ने बगावत कर दी है. निर्दलीय उम्मीदवार विनोद यादव के लिए प्रचार कर रहे हैं. विनोद यादव नवादा के बाहुबली नेता राज बल्लभ यादव के भाई हैं. तेजस्वी यादव भी सिर्फ एक बार नवादा जाने की हिम्मत जुटा पाए हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए के टिकट पर लोजपा नेता चंदन सिंह चुनाव जीते थे. इस बार यह सीट भाजपा के खाते में चली गई.
भूमिहार डोमिनेंट क्षेत्र है नवादाः भाजपा ने यहां से राज्यसभा सांसद विवेक ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवादा में चुनावी सभा की है. नवादा लोकसभा सीट पर कुल आठ उम्मीदवार भाग्य आजमा रहे हैं. नवादा लोकसभा सीट भूमिहार डोमिनेंट माना जाता है. पिछले तीन चुनाव से भूमिहार जाति के उम्मीदवार ही चुनाव जीत रहे हैं. नवादा लोकसभा सीट पर 2019 में लोक जनशक्ति पार्टी उम्मीदवार चंदन सिंह को 4,95,000 वोट मिले थे. चंदन सिंह को लगभग डेढ़ लाख वोटों से जीत हासिल हुई थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में गिरिराज सिंह को 3,90,000 वोट हासिल हुए थे. उन्होंने राजबल्लभ प्रसाद को 1,40,000 वोटों से हराया था. गिरिराज सिंह को 52% वोट मिले थे.
पहले चरण की चारों सीटों पर कड़ा मुकाबलाः वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी का मानना है कि पहले चरण की चारों सीटों पर कड़ा मुकाबला है. एनडीए और महागठबंधन के बीच आमने-सामने की लड़ाई है. गया लोकसभा सीट पर लालू प्रसाद यादव ने पासवान जाति के उम्मीदवार कुमार सर्वजीत को मैदान में उतारा है. अगर सर्वजीत पासवान वोट हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं तो जीतन राम मांझी के लिए मुश्किल हो सकती है. औरंगाबाद लोकसभा सीट पर भी लालू प्रसाद ने प्रयोग किए हैं और कुशवाहा जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है. पिछले चुनाव में सुशील सिंह 64,000 मतों के अंतर से जीते थे. इसलिए वहां लड़ाई कठिन है.