दिल्ली

delhi

बिहार सरकार आरक्षण बढ़ाकर 65% करने के मामले में SC पहुंची, हाईकोर्ट के फैसले को बताया हकीकत से परे - Bihar Quota Hike Case

By Sumit Saxena

Published : Jul 2, 2024, 10:27 PM IST

Bihar Quota Hike Case: पटना हाईकोर्ट ने 20 जून को अपने एक फैसले में कहा था कि बिहार सरकार के उन संशोधित आरक्षण कानूनों को रद्द कर दिया, जिसमें दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण कोटा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किया गया था. अब राज्य सरकार ने हाइकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

Bihar moves SC against verdict striking down quota hike
सुप्रीम कोर्ट (ANI)

नई दिल्ली: बिहार सरकार ने राज्य के संशोधित आरक्षण कानूनों को रद्द करने के पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. राज्य सरकार ने आरक्षण कानूनों में संशोधन कर दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण कोटा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया था. बिहार सरकार ने अपनी विशेष अनुमति याचिका में दलील दी है कि मराठा आरक्षण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सहित राज्यों की उस मांग को खारिज कर दिया था, जिसमें इंद्रा साहनी फैसले में निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा के मद्देनजर मामले को बड़ी पीठ को भेजने की मांग की गई थी.

याचिका को इस आधार पर खारिज किया गया कि इंद्रा साहनी मामले में दिए गए फैसले में यह प्रावधान है कि अगर राज्य पिछड़ेपन की सामाजिक कसौटी को पूरा करने में सक्षम हैं तो 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन किया जा सकता है. याचिका में कहा गया है कि बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने यह प्रयोग किया और पूरी आबादी की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर अपनी जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रकाशित की. राज्य ने सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी निर्णयों का अनुपालन किया है और फिर आरक्षण अधिनियमों में संशोधन किया है.

राज्य सरकार ने कहा कि हाईकोर्ट ने यह मानकर गंभीर गलती की है कि पिछड़े वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व केवल इसलिए है क्योंकि पिछड़े समुदाय कुल सरकार का 68.52 प्रतिशत हिस्सा हैं और कहा कि आरक्षण बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है.

पटना हाईकोर्ट ने अपने 20 जून के फैसले में कहा था कि पिछले साल नवंबर में बिहार विधानमंडल द्वारा सर्वसम्मति से पारित संशोधन संविधान के 'अधिकार से बाहर', 'कानून में खराब' और 'समानता खंड का उल्लंघन' थे.

अपनी विशेष अनुमति याचिका में राज्य सरकार ने तर्क दिया कि उसने शीर्ष अदालत के पिछले निर्णयों का पालन किया और बाद में इस डाटा के आधार पर अपने आरक्षण कानूनों में संशोधन किया. राज्य ने कहा कि जाति सर्वेक्षण से पता चलता है कि बिहार में पिछड़े वर्ग के लोग भूमिहीनता, शिक्षा, बेघर होने और आय असुरक्षा जैसे अधिकांश सामाजिक-आर्थिक मानदंडों में पिछड़ रहे हैं, इसलिए इन समुदायों को अतिरिक्त सहायता और प्रतिनिधित्व प्रदान करने की सख्त जरूरत है.

याचिका में कहा गया है कि संशोधन अधिनियम अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी), अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) और पिछड़ा वर्ग (बीसी) के लिए मौजूदा आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से 65 प्रतिशत तक बढ़ाकर पिछड़े वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्रदान करने का प्रयास करते हैं.

अधिवक्ता मनीष कुमार के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि संशोधन अधिनियम बिहार जाति सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसरण में पारित किए गए थे, जो स्पष्ट रूप से आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा का उल्लंघन करने के लिए इस माननीय न्यायालय द्वारा पुष्टि किए गए सामाजिक परीक्षण मापदंडों को पूरा करते हैं.

यह भी पढ़ें-SC के न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा- आश्चर्यजनक, HC के कुछ जज समय पर नहीं बैठते

ABOUT THE AUTHOR

...view details