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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 9, 2024, 11:41 AM IST

Updated : Apr 9, 2024, 2:09 PM IST

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लंहगा चोली में थिरकता हूं तो भूल जाता हूं कि मैं धर्मेन्द्र हूं, गांव की चुनावी जनसभा में भीड़ जुटाने वाले डांसर की कहानी - Male dancer in female look

घंटों की मेहनत वाली इस परफॉर्मेंस के बदले ये कलाकार मेहनताना तक नहीं लेते. धर्मेंद्र कहते हैं कि वे ये सब पैसे के लिए नहीं करते बल्कि उन्हें इस काम में मजा आता है. जहां से जो भी इनाम मिलता है, उसे रख लेते हैं.

MALE DANCER IN FEMALE LOOK DHARMENDRA
गांव की चुनावी जन सभा में भीड़ जुटाने वाले डांसर की कहानी

गांव की चुनावी जन सभा में भीड़ जुटाने वाले डांसर की कहानी

भोपाल. वो किसी राजनीतिक दल का प्रचार नहीं करते. वो किसी पार्टी की शान में नारे नहीं लगाते और ना ही गाते. लेकिन भीड़ जुटाने के लाए जाते हैं, नाचते-गाते हैं. गांव में चुनाव प्रचार की तस्वीर शहरों से काफी अलग होती है. इन मंचों पर नेताओं के लंबे भाषणों से पहले ढोलक की ताल पर तान छेड़ी जाती है जिसपर स्त्री का भेस धरे थिरकते हैं नौजवान. उनकी थिरकन पर जुटाई गई भीड़ नेताओं की जनसभाओं को भी सफल बनाती है. मध्यप्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट के पिछ़ड़े आदिवासी गांव प्रतापगढ़ में हमारी मुलाकात हुई नरेन्द्र और धर्मेन्द्र से. घाघरा चोली में किसी नर्तकी से थिरकते ये लोक कलाकार दिन भर खेती किसानी के बाद शाम को सियासी मंच की शोभा बने थे.आखिर क्यों ये सभाओं में औरत के भेष में नाचते हैं? ये रिवायत है, शौक या गुजर का जरिया, आइए जानते हैं...

गांव की चुनावी जन सभा में भीड़ जुटाने वाले डांसर की कहानी

नेता जी से पहले इनकी अदाओं पर लुट जाता है मंच

चुनाव की बड़ी जनसभाओं में बड़े-बड़े कलाकार नेताओं के भाषण से पहले समां बांधने का काम करते हैं. गांव में ये जिम्मेदारी लोक कलाकारों की होती है. नेताजी के पहुंचने की खबर से बहुत पहले ये मंच पर चढ़ा दिए जाते हैं. ढोलक की थाप पर ठेठ देहाती लोक गीतों पर झूमते-घूमते अदाएं दिखाते ये नौजवान भीड़ को बांधे रखते हैं. विदिशा लोकसभा सीट के प्रतापगढ़ गांव में धर्मेन्द्र और नरेन्द्र से जब तक ईटीवी भारत की टीम ने बात नहीं कर ली तब तक अंदाजा भी नहीं था कि घाघरा चोली में झूम रहे घूम रहे ये पुरुष हैं.

गांव की चुनावी जन सभा में भीड़ जुटाने वाले डांसर की कहानी

महिलाओं की भीड़ को भी बांधे रखते हैं ये डांसर

नरेन्द्र बताते हैं कि पांच साल से वे इसी नाच में हैं. घऱ पर ही ये लोकनृत्य सीखा और फिर गांव में करने लगे. खास बात ये है कि जब तक स्त्री वेश में होते हैं नरेन्द्र की भाव भंगिमा सब बदली हुई रहती है, यहां तक कि घूंघट भी बना रहता है चेहरे पर. घूंघट लिए एक-एक ताल पर इनकी अदाएं सभा में बैठे पुरुषों को ही नहीं महिलाओं को भी बांधे रखती हैं.

गांव की चुनावी जन सभा में भीड़ जुटाने वाले डांसर की कहानी

नाचता हूं तो भूल जाता हूं कि मैं धर्मेन्द्र हूं

नरेन्द्र धर्मेन्द्र की ही संगत में नाचना सीखे हैं. दोनों एक ही गांव के हैं. कहते हैं, ' संगीत करने का शौक था. इसी के साथ सीखते रहे. फिर गांव में जाने लगे. दिन भर खेत में काम करते हैं और शाम को गांव के प्रोग्राम में नाचते हैं.' धर्मेंद्र से पूछा गया कि स्त्री का भेष धरने और ऐसे नाचने पर परिवार या गांव के लोग कुछ कहते नहीं? तो धर्मेन्द्र कहते हैं, ' कोई कुछ नहीं कहता, ये तो शौक है हमारा.' धर्मेन्द्र बेबाकी से कहते हैं, ' जब नाचने लगते हैं ना तो ये भूल जाते हें कि हम धर्मेन्द्र हैं. ये याद रहता है कि हम एक कलाकार हैं. हम तो पूरी तरह संगीत के हो जाते हैं.'

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पैसा नहीं लेते..ईनाम मिलता है ना

खास बात ये है कि कई घंटों की मेहनत वाली इस परफॉर्मेंस के बदले ये कलाकार मेहनताना भी नहीं लेते. धर्मेन्द्र और नरेन्द्र के लिए ये शौक है. शौक में नाचते गाते हैं. पैसे की जरुरत तो होती होगी. धर्मेन्द्र कहते हैं, ' ईनाम मिल जाता है. जहां भी करते हैं, वहां से ईनाम मिलता है. लेकिन सच में हम पैसे के लिए नहीं नाचते हम मजे के लिए नाचते हैं.'

बुंदेलखंड के गांवों में होती हैं लोकतर्नकों की टोलियां

बुंदेलखंड और उससे लगे गांवों में कलाकारों की टोलियां होती हैं. पहले ये केवल होली, दिवाली, शादी ब्याह जैसे त्योहार के मौके पर ही अपना हुनर दिखाया करते थे. लेकिन अब पांच साल में एक बार होने वाले लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार में भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं. गांव-गांव में होने वाली सियासी जनसभाओं में जनता को बांधे रखने का जरिया हैं ये लोकनर्तक और उनके दल.

Last Updated : Apr 9, 2024, 2:09 PM IST

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