शिमला समझौते से ज्यादा बेनजीर भुट्टो के थे चर्चे, अब्बा को मिली थी सलाह, बेटी को बना दो भारत में पाक की राजदूत - Benazir Bhutto
By ETV Bharat Himachal Pradesh Team
Published : Jul 3, 2024, 12:26 PM IST
Benazir Bhutto Shimla Visit: 2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच हुए शिमला समझौते की जब भी बात होती है, तो उस समय के पाक राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो का जिक्र भी जरूर होता है. बेनजीर उस समय हार्वर्ड में पढ़ रही थी और महज 19 साल की थी. जानें क्यों शिमला समझौते से ज्यादा बेनजीर भुट्टो में दिलचस्पी ले रहे थे मीडियाकर्मी...
![शिमला समझौते से ज्यादा बेनजीर भुट्टो के थे चर्चे, अब्बा को मिली थी सलाह, बेटी को बना दो भारत में पाक की राजदूत - Benazir Bhutto Shimla Agreement](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/03-07-2024/1200-675-21856145-thumbnail-16x9-benazir-bhutto.jpg)
शिमला: राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब भी भारत और पाकिस्तान के संबंधों की चर्चा होती है, सभी का ध्यान शिमला समझौते की तरफ जरूर जाता है. वर्ष 1971 में भारत ने पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांट दिया. करीब 93 हजार युद्धबंदियों सहित अन्य मसलों पर बातचीत के लिए जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ जून 1972 में शिमला आए थे. उस समय दुनिया भर के मीडिया कर्मी शिमला में जुटे थे. शिमला समझौते को लेकर तरह-तरह की रिपोर्टिंग तो जारी थी ही, लेकिन उससे भी अधिक चर्चे बेनजीर भुट्टो को लेकर थे.
जिस समय बेनजीर अपने अब्बा जुल्फिकार भुट्टो के साथ शिमला आई, वे महज 19 साल की थी. यानी अभी बेनजीर ने टीनएज की सीमा नहीं लांघी थी और वे एक किशोरी ही कही जाएंगी. बेनजीर उस समय हार्वर्ड में पढ़ रही थी. पहले उनकी अम्मी नुसरत ने अपने खाविंद के साथ आना था, लेकिन बीमारी के कारण जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी दुख्तर (बेटी) को साथ लाए.
बेटी को भारत में पाक की राजदूत बनाने की मिली थी सलाह
शिमला प्रवास के दौरान बेनजीर भुट्टो ने यहां के माल रोड की सैर करने के साथ ही जमकर शॉपिंग की थी. शिमला की विख्यात फर्म गेंदामल हेमराज में बेनजीर ने कुछ शॉपिंग की थी. मीडियाकर्मी शिमला समझौते से अधिक दिलचस्पी बेनजीर भुट्टो में ले रहे थे. बेनजीर के चर्चे इस कदर हुए कि उनके पिता जुल्फिकार अली भुट्टो को किसी ने यहां तक सलाह दे दी कि बेटी को भारत में पाकिस्तान का राजदूत बना दो. इन सभी बातों के गवाह शिमला के उस समय के मीडिया कर्मी तो थे ही, साथ ही बेनजीर भुट्टो ने अपनी आत्मकथा डॉटर ऑफ ईस्ट में इसकी चर्चा की है. आगे की पंक्तियों में शिमला समझौते से इतर बेनजीर भुट्टो की अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चर्चा के साथ-साथ उनके शिमला प्रवास के अन्य अनुभवों पर बात करेंगे.
मीडिया की सुर्खियों में रही बेनजीर और उनकी ड्रेस
बेनजीर के अब्बा जुल्फिकार अली भुट्टो इस चिंता में थे कि कोई सम्मानजनक समझौता हो जाए और वे अपनी अवाम को मुंह दिखाने लायक होकर पाकिस्तान लौटें. उधर, अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में बेनजीर और उनका पहनावा था. अपनी आत्मकथा में बेनजीर ने लिखा है-जब भी मैं हिमाचल भवन (बार्न्स कोर्ट यानी राजभवन) से आती-जाती, लोगों को भीड़ लग जाती. जब मैं माल रोड पर टहलने निकलती तो लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती. पत्रकारों और फीचर लेखकों ने मुझे घेर लिया. मेरे इंटरव्यू लिए गए. मुझे ऑल इंडिया रेडियो में वार्ता के लिए बुलाया गया. मैं खीझ उठी कि मेरे कपड़े जैसे राष्ट्रीय फैशन का विषय हो गए. मैं खुद को हार्वर्ड की एक प्रबुद्ध लड़की ज्यादा समझती थी, जिसका दिमाग दुनिया की बड़ी युद्ध व शांति समस्याओं से जूझता रहता था, लेकिन मीडिया मुझसे बार-बार कपड़ों के बारे में ही पूछता रहता था.
जब बिना समझौते के लौटने को तैयार हो गए थे भुट्टो
भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 की रात 12 बजकर 40 मिनट पर हुआ था, लेकिन उससे पहले एक अप्रत्याशित घटनाक्रम हुआ. जुल्फिकार अली भुट्टो ने समझौते से पहले शिमला से अपना तामझाम समेटने की सोच ली थी. बेनजीर लिखती हैं-दो जुलाई को मेरे पिता ने कहा, चलो, हम कल घर जा रहे हैं.
बिना किसी समझौते के...? मैंने पूछा
उन्होंने कहा-हां, बिना किसी समझौते के
आगे बेनजीर ने जो लिखा है, उसके अनुसार जुल्फिकार अली भुट्टो ने कहा था कि वे हिंदोस्तान का कोई भी लादा हुआ फैसला नहीं मानेंगे, लेकिन बाद में अचानक से समझौते की दिशा में प्रगति हुई. देर रात राजभवन में हलचल मची. बाद में देर रात 12 बजकर चालीस मिनट पर समझौते पर हस्ताक्षर हुए. शिमला स्थित राजभवन में वो टेबल अभी भी आगंतुकों के आकर्षण का केंद्र है. समझौता आनन-फानन में हुआ था. उस समय हस्ताक्षर के लिए पेन भी एक मीडिया कर्मी का लेना पड़ा था.
जंग में पाक की एक चौथाई वायुसेना हो गई थी साफ
वैसे तो दुश्मन देश कभी भी अपनी शर्मनाक हार को तथ्यों के साथ स्वीकार नहीं करता है, लेकिन बेनजीर ने अपनी आत्मकथा में कुछ तथ्यों को स्वीकार करने का साहस दिखाया था. बेनजीर अपनी आत्मकथा के पेज नंबर 72 पर लिखती हैं-अब तक हार्वर्ड में मुझे पिंकी नाम से कोई नहीं जानता था, लेकिन पिंकी भुट्टो पाकिस्तान के राष्ट्रपति की बेटी है, ये सब जान गए थे. मेरा गौरव, जो मेरे पिता की उपलब्धि से बढ़ा था, जरा सा धूमिल भी था. इसका कारण हिंदोस्तान से हमारी हार और उस कीमत पर असर भी, जो पाक को चुकानी पड़ी थी. दो हफ्तों की लड़ाई में हमारी एक चौथाई वायुसेना साफ हो गई थी और आधी नौसेना डूब गई थी. हमारा खजाना खाली हो गया था. केवल पूर्वी पाकिस्तान ही नहीं गया था, हिंदुस्तानी फौज ने हमारा 5000 वर्ग मील इलाका भी हड़प लिया था. वह संयुक्त पाकिस्तान, जो 1947 में जिन्ना ने स्थापित किया था, बांग्लादेश जाने के साथ ही मर गया था. खैर, शिमला समझौते की प्रासंगिकता और टेबल पर कौन हारा, कौन जीता, इस पर बहस होती आई है और होती रहेगी, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि उस दौरान सुर्खियों में बेनजीर ही अधिक थी.
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