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कहीं समुद्र था, कहीं जमीन थी, कहीं पे लाशें थी तो कहीं पे माफिया था...अमेरिका से डिपोर्ट हुए रॉबिन की आपबीती - ROBIN HANDA DEPORTED FROM AMERICA

अमेरिका से डिपोर्ट हुए रॉबिन हांडा बुधवार को अपने घर पहुंचे. उनसे ईटीवी भारत ने बातचीत की. उन्होंने ईटीवी भारत से अपनी आपबीती बताई.

ROBIN HANDA DEPORTED FROM AMERICA
अमेरिका से डिपोर्ट हुए रॉबिन हांडा (ETV Bharat)

By ETV Bharat Haryana Team

Published : Feb 6, 2025, 2:25 PM IST

कुरुक्षेत्र: अमेरिका से डिपोर्ट होकर 104 भारतीय बुधवार को भारत पहुंचे. इनमें हरियाणा के करीब 33 लोग शामिल हैं. करनाल और कुरुक्षेत्र के भी कई लोग इनमें शामिल हैं. अमेरिका से डिपोर्ट हुए इस्माईलाबाद कुरुक्षेत्र के रॉबिन हांडा बुधवार अपने घर पहुंचे. रॉबिन जमीन बेचकर अमेरिका गए थे. वहां रॉबिन को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा.

रॉबिन ने बताई आपबीती:ईटीवी भारत की टीम रॉबिन हांडा के घर पहुंची और उनसे बातचीत की. रॉबिन ने कहा, " मैं 45 लाख रुपया लगाकर अमेरिका गया था. मेरे पिता ने अपनी पुश्तैनी जमीन, खेत बेच दी थी. अमेरिका भेजने के दौरान एजेंट ने एक महीने का समय दिया था और कहा था कि वह एक महीने में अमेरिका पहुंच जाएगा, लेकिन वह 7 महीने में अमरीका पहुंचा. मुझे जंगल, समुद्र, कई दुर्गम जगहों से होकर डोंकी के रास्ते अमेरिका भेजा गया था. जब मैं डोंकी रूट पर था, तब हमारे साथ काफी बुरा व्यवहार किया जाता था. हमको प्रताड़ित किया जाता था. परिवार से पैसे मंगवाने के लिए बोला जाता था. कई-कई दिनों तक भूखा रखा जाता था. इतना ही नहीं बिजली के झटके भी दिए जाते थे."

अमेरिका से डिपोर्ट हुए रॉबिन हांडा की आपबीती (ETV Bharat)

"24 जुलाई को मुंम्बई एयरपोर्ट से अमेरिका के लिए हम निकले. एजेंट ने हमसे कहा कि हम एक माह में अमेरिका पहुंचा देंगे. हालांकि एक माह नहीं बल्कि हमें 7 माह में पहुंचाया गया. हम 22 जनवरी को अमेरिका पहुंचे. वहां हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई. हमें वहां पुलिस ने पकड़ लिया. हमें अपनी सफाई में कुछ भी कहने का मौका नहीं दिया गया.-रॉबिन हांडा, अमेरिका से डिपोर्ट हुए

जंजीरों से जकड़कर भारत भेजा गया:आगे रॉबिन ने कहा, जब हम जंगल से होते हुए डोंकी रूट से अमेरिका जा रहे थे, तब माफिया द्वारा हमें प्रताड़ित किया जाता था. कई लोग तो रास्ते में ही मर गए. अमेरिका पहुंचने पर हमारी नहीं सुनी गई. कोई लीगल टीम हमसे बात करने नहीं पहुंची. हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई. अब मुझे वापस भारत भेजा गया है. मेरा जो एजेंट था, मेरी कोशिश रहेगी कि मैं उससे अपने पैसे मांगू. उससे आगे मैं कुछ कर सकता हूं. मेरे पिता ने जमीन बेचकर उसे पैसे दिए थे. वहां हमारी कोई सुनवाई नहीं होती थी. हमें जानवरों की तरह जंजीरों में जकड़कर भारत भेजा गया. मेरे अलावा भी कई लोग थे. सभी को जंजीरों से जकड़ कर बस में बिठा कर भेजा गया. यहां तक कि महिला और बच्चों को भी बांधकर भेजा गया. "

दादी के छलके आंसू:वहीं, रॉबिन की दादी प्यार कौर से जब बात करने की कोशिश की गई तो उनके आंसू छलक पड़े. उन्होंने कहा कि, "मेरा पोता लौट आया बस. मेरा जमीन बेचना बेकार हो गया. मेरे पोते को बहुत प्रताड़ित किया गया. 15 दिनों से कोई बात ही नहीं हुई थी. जमीन बेचकर उसे विदेश भेजा था मेरे बेटे ने. ऊपर वाले की मेहर है, कि वो लौट आया."

जमीन बेचकर भेजा अमेरिका:रॉबिन हांडा के पिता मनजीत सिंह भी ईटीवी से बातचीत के दौरान रोने लगे. उन्होंने कहा, " जमीन बेचकर 45 लाख रुपया हमने उसे अमेरिका भेजने में लगाया था. हमें लगा था कि मेरा बेटा वहां अच्छे से रहेगा. हालांकि एजेंट सारे पैसे खा गया. मेरे बेटे को साढ़े सात माह तक टॉर्चर किया. उसे भूखा रखा. वहां के माफिया को कई बार हमने पैसा भेजा है. वो कहते थे कि अगर पैसा नहीं दिया तो तुम्हारे बेटे को मार दूंगा. वे लोग मेरे बेटे को बिजली के झटके देते थे. मैं बिजली का काम करता हूं. मैं जमीन बेचकर उसे भेजा था. हालांकि मेरे बेटे को वहां टॉर्चर किया गया. सारा पैसा एजेंट खा गया."

रॉबिन के परिजनों के छलके आंसू (ETV Bharat)

परिवार वाले देखकर रह गए सन्न: दरअसल, रोबिन हांडा ने बीते साल बारहवीं कक्षा पास की थी. 18 जुलाई साल 2024 को रॉबिन विदेश के लिए रवाना हुआ. 22 जुलाई को उसे दिल्ली से मुंबई पहुंचाया गया. 24 जुलाई को मुंम्बई से गुयाना, ब्राजील, पेरू, एक्वागेर भेजा गया. इसके बाद समुद्र रास्ते से ब्राजील से ले जाया गया. इस बीच कई दिनों तक रॉबिन ने अपने परिवार वालों से बातचीत तक नहीं की. जैसे ही बुधवार को सैन्य विमान रॉबिन को लेकर अमृतसर हवाई अड्डे पर पहुंचा, उसके परिवार वाले सन्न रह गए. परिवार वालों को विश्वास नहीं हुआ.

बता दें कि ये कहानी अकेले रॉबिन की नहीं बल्कि भारत लौटे कई युवाओं की कहानी है, जो अपनी जमीन और घर बेचकर अमेरिका गए थे, जिनको डिपोर्ट करके वापस उनके घर भेज दिया गया है.

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