अजमेर: दरगाह वाद प्रकरण में शुक्रवार को दरगाह कमेटी की ओर से प्रकरण को खारिज करने के लिए दी गई अर्जी का जवाब परिवादी पक्ष की ओर से दिया गया है. वहीं, परिवादी पक्ष ने मामले में नए पक्षकार बनने की अर्जियों पर आपत्ति जताई है और कोर्ट से आग्रह किया है कि पहले प्रकरण को खारिज करने की अर्जी पर निर्णय हो. इसके बाद तय किया जाए कि प्रकरण में कौन पक्षकार बने रहेंगे.
हालांकि, शुक्रवार को प्रकरण में प्रतिवादी बनने के लिए पांच नई अर्जियां और कोर्ट में लगाई गई हैं. ऐसे में प्रकरण में कुल 11 प्रतिवादी हो गए हैं. इधर दरगाह कमेटी ने परिवादी के जवाब को पढ़ने के लिए कोर्ट से समय मांगा है. कोर्ट में मामले में अगली सुनवाई 1 मार्च को होगी. परिवादी पक्ष के वकील योगेंद्र ओझा ने बताया कि पूर्व में कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान दरगाह कमेटी की ओर से नियम 7 (11) के अंतर्गत प्रकरण को खारिज करने की अर्जी लगाई गई थी, जिसको लेकर परिवादी पक्ष की ओर से जवाब पेश किया गया है. वहीं, परिवादी पक्ष को 1(10) के अंतर्गत कोर्ट में प्रतिवादी बनने के लिए दी गई अर्जियों पर जवाब पेश करना था. इस पर परिवादी पक्ष की ओर से कोर्ट से समय मांगा गया है.
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वकील ओझा ने बताया कि कोर्ट में परिवादी पक्ष की ओर से दलील दी गई कि जब तक 7(11) के तहत दरगाह कमेटी की ओर से प्रकरण को खारिज करने के लिए लगाई गई अर्जी पर निर्णय नहीं होता, तब तक 1(10) के तहत प्रतिवादी बनने के लिए लगाई गई अर्जियां कोई औचित्य नहीं रखती हैं. उन्होंने बताया कि नियम 7 (11) में यदि खारिज होती है, तो 1(10) में प्रतिवादी बनने से क्या होगा. परिवादी पक्ष के वकील योगेंद्र ओझा ने बताया कि कोर्ट पहले दरगाह कमेटी की ओर से लगाई गई 7 (11) को लेकर सुनवाई करेगा. उसके बाद प्रतिवादी बनने के लिए लगाई गई 1(10) की अर्जी पर परिवादी पक्ष की ओर से जवाब पेश किया जाएगा. उन्होंने कहा कि अभी केवल 1(10) के अंतर्गत दी गई अर्जियां रिकॉर्ड पर आई है.
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दरगाह कमेटी की अर्जी पर परिवादी पक्ष ने यह दिया जवाब:परिवादी पक्ष के जवाब में कहा गया है कि प्रतिवादी दरगाह कमेटी की ओर से नियम 7(11) की अर्जी का अवलोकन से पता चलता है कि उत्तर के तहत आवेदन में बताए गए किसी भी आधार की पूर्ति नहीं होती है. गुप्ता ने बताया कि धारा सी के तहत प्रतिवादी को नोटिस दिए गए थे. जबकि प्रतिवादी की ओर से अर्जी में हवाला दिया गया है कि धारा 80 सीपीसी के तहत उन्हें कोई नोटिस नहीं मिला है. वहीं, धारा 80 (3) का अवलोकन से पता चलता है कि सरकार और किसी सार्वजनिक अधिकारी के खिलाफ कोई भी मुकदमा उप धारा एक में दिए गए नोटिस में किसी त्रुटि या दोष के आधार पर अर्जी को खारिज नहीं किया जाएगा. इसलिए दोषपूर्ण नोटिस के आधार पर मुकदमा खारिज नहीं किया जा सकता है.
मुकदमे की प्रकृति को देखते हुए धारा 80 (1) के तहत कोई नोटिस दिए जाने की आवश्यकता नहीं है. जवाब में परिवादी ने कहा कि भारत सरकार या सार्वजनिक अधिकारी के खिलाफ आधिकारिक क्षमता में कोई कार्रवाई किए जाने का कोई आप नहीं है. इसलिए मुकदमे में धारा 80 के तहत नोटिस की आवश्यकता नहीं है.
दरगाह कमेटी दरगाह ख्वाजा साहब एक धार्मिक स्थल नहीं है. इसलिए पूजा स्थल अधिनियम के प्रावधान यहां लागू नहीं होते हैं. इसलिए दरगाह कमेटी का यह दावा कि पूजा स्थल अधिनियम वर्जित है, गलत है. इस संबंध में दरगाह कमेटी अजमेर और अन्य बनाम सैयद हुसैन अली एवं अन्य, 1961 एफआईआर 1402 के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले का संदर्भ भी लिया जा सकता है. जवाब में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का वाला भी दिया गया है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि दरगाह ख्वाजा साहब चिश्ती को एक धार्मिक संप्रदाय और इसकी किसी भी धारा के रूप में नहीं माना जा सकता है. दरगाह कमेटी अजमेर और अन्य बनाम सैयद हुसैन अली के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले के मध्येनजर पूजा स्थल अधिनियम 1991 के परिवारों को लागू करना निरर्थक है. इसलिए दरगाह कमेटी की ओर से प्रकरण को खारिज करने के लिए लगाई गई अर्जी ही खारिज होनी चाहिए.
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परिवादी का यह कहना: हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष परिवादी विष्णु गुप्ता ने बताया कि कोर्ट ने 1(10) के तहत जितनी भी अर्जियां आई हैं, उन सबको सुना है. वहीं परिवादी पक्ष को उनकी प्रति भी मिल गई है. 1961 का सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय भी जवाब के साथ पेश किया है. सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय में साफ लिखा है की दरगाह पूजा पद्धति का स्थान नहीं है. साथ ही खादिमों का दरगाह पर कोई अधिकार नहीं है. चिश्ती वहां रहते हैं, उनकी वंशावली भी स्पष्ट नहीं है कि वे ख्वाजा गरीब नवाज के वंशज हैं.
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में साफ लिखा है कि ढाई सौ वर्षो तक वहां कोई नहीं था. दरगाह दीवान ने भी पूर्व में प्रेस वार्ता करके बताया था कि ढाई सौ तक वहां केवल जंगल था. ऐसे में वहां इतनी संख्या में लोग कहां से आ गए. परिवादी ने कहा कि प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का दरगाह से कोई लेना-देना नहीं है. एक्ट में साफ लिखा है कि मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरुद्वारा आते हैं. दरगाह और कब्रिस्तान एक्ट के अंतर्गत नहीं आते हैं.
दरगाह का पहला हो चुका सर्वे: अंजुमन कमेटी के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने बताया कि भारतीय पुरातत्व विभाग की 2023-24 की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि दरगाह और परिसर में मौजूद मस्जिदों का सर्वे हो चुका है. चिश्ती ने राज्यसभा की रिपोर्ट और पृथ्वीराज रासो पुस्तक का भी हवाला देते हुए कहा कि दरगाह का अस्तित्व 800 बरस पहले से है. उन्होंने कहा कि 10 वर्षों से देश में एक चलन चल रहा है कि हर मस्जिद और दरगाह में मंदिर तलाश किये जा रहे हैं. चिश्ती ने कहा कि प्रतिवादी बनने के लिए लगाई गई नियम 1(10) की अर्जी पर परिवादी पक्ष ने कोई जवाब नहीं दिया है. उन्होंने कहा की दरगाह में ऐसा कुछ नहीं है. 800 बरस से वहां दरगाह है.
प्रतिवादी वकील का आरोप, अज्ञात शख्स ने गोली मारने की दी धमकी: दरगाह दीवान जैनुअल आबेद्दीन ने बताया कि कोर्ट में दरगाह कमेटी की ओर से लगाई गई अर्जी पर परिवादी ने जवाब पेश किया है. प्रतिवादी बनने के लिए लगाई गई अर्जियों पर परिवादी ने कोई जवाब नहीं दिया है. कोर्ट ने अगली सुनवाई 1 मार्च को रखी है. इधर एक प्रतिवादी के वकील जे मोइन फारुक ने कोर्ट परिसर में उसे किसी अज्ञात शख्स की ओर से गोली मारने की धमकी देने का आरोप लगाया है. उन्होंने बताया कि अज्ञात शख्स ने गले में आई कार्ड लगा रखा था, जिसे उन्होंने मीडियाकर्मी समझा और उनसे जब बात की तो उसने कहा कि अगली बार पेशी पर आया तो उसे गोली मार दी जाएगी. वकील जे मोईन फारूक ने बताया कि पुलिस को वह मामले की शिकायत करेंगे. दरगाह वाद प्रकरण को लेकर अजमेर पुलिस भी अलर्ट रही. कोर्ट परिसर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम रहे. कोर्ट के सभी गेट पर पुलिसकर्मी तैनात रहे.