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خون کی کمی نہیں پھر بھی لوگ پریشان

وزارت عوامی فلاح و بہبود کے ذریعہ جاری کیے گئے اعداد و شمار کے مطابق سنہ 2016 میں دارالحکومت دہلی میں ڈبلیو ایچ او کے معیار کے مطابق 193 فیصد زیادہ خون جمع کیا گیا ہے۔

خون کی کمی
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Published : Jun 26, 2019, 2:35 PM IST

ملک کے دارالحکومت دہلی میں آج بھی لوگوں کو علاج کے دوران خون کی ضرورت پڑنے پر پریشان ہونا پڑتا ہے۔

خون کی کمی

لیکن یہاں حیران کن بات یہ ہے کہ دہلی میں ضرورت سے کہیں زیادہ خون جمع ہونے کے باوجود لوگوں کو یہ تکلیف اٹھانی پڑرہی ہے۔

وزارت عوامی فلاح و بہبود کے اعداد و شمار کے مطابق سنہ 2016 میں دہلی میں ڈبلیو ایچ او کے معیار کے حساب سے 193 فیصد خون زیادہ خون اکٹھا کیا گیا تھا۔

لیکن آج بھی دہلی کے کئی سرکاری اسپتالوں میں اس کی تعداد سے کہیں زیادہ خون کی مانگ ہوتی ہے جس کے سبب یہاں کئی مریضوں کو ںہ صرف خون کی پریشانی ہوتی ہے بلکہ کتنے مریض تو موت کا شکار ہوجاتے ہیں۔

دہلی کے رام منوہر اسپتال میں بلڈ بینک شعبے کی صدر ڈاکٹر کرن چودھری کا کہنا ہے کہ اس بات میں کوئی شک نہیں ہے کہ یہاں آنے والے مریضوں کو خون کے لیے کافی پریشان ہونا پڑتا ہے۔

ان کا مزید کہنا ہے کہ اس کے پیچھے متعدد وجوہات ہیں، جس میں ایک وجہ یہ بھی ہے کہ یہاں جمع ہونے والا خون وقت پر استعمال نہیں ہوپاتا ہے۔

ملک کے دارالحکومت دہلی میں آج بھی لوگوں کو علاج کے دوران خون کی ضرورت پڑنے پر پریشان ہونا پڑتا ہے۔

خون کی کمی

لیکن یہاں حیران کن بات یہ ہے کہ دہلی میں ضرورت سے کہیں زیادہ خون جمع ہونے کے باوجود لوگوں کو یہ تکلیف اٹھانی پڑرہی ہے۔

وزارت عوامی فلاح و بہبود کے اعداد و شمار کے مطابق سنہ 2016 میں دہلی میں ڈبلیو ایچ او کے معیار کے حساب سے 193 فیصد خون زیادہ خون اکٹھا کیا گیا تھا۔

لیکن آج بھی دہلی کے کئی سرکاری اسپتالوں میں اس کی تعداد سے کہیں زیادہ خون کی مانگ ہوتی ہے جس کے سبب یہاں کئی مریضوں کو ںہ صرف خون کی پریشانی ہوتی ہے بلکہ کتنے مریض تو موت کا شکار ہوجاتے ہیں۔

دہلی کے رام منوہر اسپتال میں بلڈ بینک شعبے کی صدر ڈاکٹر کرن چودھری کا کہنا ہے کہ اس بات میں کوئی شک نہیں ہے کہ یہاں آنے والے مریضوں کو خون کے لیے کافی پریشان ہونا پڑتا ہے۔

ان کا مزید کہنا ہے کہ اس کے پیچھے متعدد وجوہات ہیں، جس میں ایک وجہ یہ بھی ہے کہ یہاں جمع ہونے والا خون وقت پر استعمال نہیں ہوپاتا ہے۔

Intro:नई दिल्ली: दिल्ली में आज भी लोगों को इलाज के दौरान रक्त की जरूरत होने पर परेशान होना पड़ता है. ऐसा तब है जबकि देश की राजधानी में जरूरत से कही ज्यादा रक्त इकट्ठा होता है. आखिर क्या कारण है कि जरूरत से ज्यादा होने के बाद भी लोगों को आज भी रक्त की कमी जैसे हालात झेलने पड़ते हैं, क्या इसका समाधान है! आइए जानते हैं...


Body:स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों की माने तो साल 2016 में राजधानी दिल्ली में डब्ल्यूएचओ के 1% मानक के हिसाब से 193 फ़ीसदी ज़्यादा रक्त इकट्ठा किया गया था. दिल्ली के कई सरकारी अस्पतालों में इसकी मात्रा डिमांड से कहीं अधिक रहती है. बावजूद इसके यहां कई बार मरीजों को न सिर्फ रक्त के लिए परेशानियां झेलनी पड़ती हैं बल्कि कई बार मरीजों की मौत भी हो जाती है. *क्या है कारण* दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में रक्त बैंक की विभागाध्यक्ष डॉ किरण चौधरी बताती हैं कि ये बिल्कुल सही है कि मरीजों को रक्त के लिए परेशान होना पड़ता है. हालांकि इसके पीछे कोई एक वहज नहीं बल्कि कई कारण हैं. इसमें भी एक बड़ा कारण वो रक्त है जो इकट्ठा होने के बाद भी इस्तेमाल नहीं हो पाता. *कंपोनेंट्स की होती है एक निश्चित समयरेखा* डॉ किरण चौधरी बताती हैं कि एक यूनिट रक्त में तीन से चार कंपोनेंट्स निकाले जा सकते हैं. इसमें इन कंपोनेंट्स की एक निश्चित समयरेखा होती है जिसके बाद ये इस्तेमाल करने लायक नहीं रह जाते. वो बताती हैं कि प्लेटलेट्स की लाइफ महज 5 दिन की है. ऐसे में अगर एक दिन किसी व्यक्ति ने अपना रक्त दान किया है और छटे दिन किसी शख्स को प्लेटलेट की जरूरत है तो पहले दिन वाला का रक्त बेकार है. इसी तरह रेड ब्लड सेल और प्लाज़्मा को भी एक निश्चित समय के बाद इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. *हर साल हजारों यूनिट होती है वेस्टेज* जी सही है कि राजधानी में रक्त इकट्ठा होने की मात्रा उसकी जरूरत से कहीं ज्यादा है लेकिन इसकी वेस्टेज भी कम नहीं है. आरटीआई से मिले जवाबों की माने तो यहां के अस्पतालों में हर साल हजारों यूनिट ब्लड किसी एक या दूसरे कारण के चलते इस्तेमाल लायक नहीं रहता. खास बात है कि कई बार वेस्ट हुए यूनिट्स के कारण भी डॉक्टरों को नहीं पता होते जो लापरवाही की ओर भी इशारा करते हैं. वेस्टेज का अंदाजा इसी आंकड़े से लगाया जा सकता है कि लगभग 70 निजी और रक्त बैंकों में अकेले पश्चिमी दिल्ली के दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में साल 2016 में 2895 यूनिट रक्त खराब हुआ. इसी तरह यहां अगले साल 1852 यूनिट रक्त इस्तेमाल करने लायक ही नहीं बचा. खास बात है कि अस्पतालों में जिन कारणों से रक्त खराब हो जाता है उनमें टेंपरेचर फेलियर जैसे कारण लापरवाही के चलते ही होते हैं. *डॉक्टरों का अलग मत* वेस्टेज की बात पर हालांकि डॉक्टरों का मत अलग है. डॉ चौधरी कहती हैं कि रक्त को नामंजूर करने का कारण लापरवाही नहीं होता. वह कहती हैं कि सबसे पहले तो इस में इन्फेक्शन का खतरा सबसे ज्यादा रहता है. इंफेक्शन के बाद कंपोनेंट की लाइफ आती है और उसके भी बाद जरूरत के समय रक्त बैंक में प्रॉपर्टी के हिसाब से मिलान जरूरी होता है. एक डॉक्टर को सभी पहलुओं का ध्यान रखना होता है. ऐसे में इसको न तो वेस्टेजमाना जा सकता है और ना ही किसी तरह की लापरवाही. इसी बीच वो कहती हैं कि ये एक समस्या है और इसका समाधान जरूरी है.


Conclusion:*क्या है समाधान* ये सही है कि दिल्ली में जरूरत से ज्यादा रक्त इकट्ठा होता है लेकिन इसका आंकलन भी अगर जरूरत और यकायक आई परिस्थितियों के हिसाब से किया जाए तो ये कुछ भी नहीं. ऐसे में उम्मीद की जाती है कि अगर रक्त दान अपनाया भी जा रहा है तो उसे जीवन में एक बार या 10-20 सालों में एक बार कर नहीं छोड़ना चाहिए. चूंकि रक्त की अपनी एक समयसीमा होती है, इसका लगातार बने रहना बहुत जरूरी है. लोग जागरूक हैं लेकिन अभी और जागरूकता की जरूरत है.
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