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ہزاروں فٹ کی اونچائی پر ہے نوح شہر کا کوٹلہ قلعہ

قلعہ کے ٹھیک سامنے کئی سو فٹ کی اونچائی سے پانی کا جھرنا گرتا ہے، جو قدرت کا ایک شاہکار نمونہ ہے۔

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Published : Jun 17, 2019, 2:04 PM IST

Updated : Jun 17, 2019, 2:15 PM IST

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بھارتی ریاست ہریانہ کے نوح شہر میں واقع کوٹلہ گاوں کے اراولی پہاڑ کی چوٹی پر تاریخی عمارت 'کوٹلہ قلعہ' واقع ہے۔

نوح شہر کا تاریخی قلعہ

اس قلعہ کی تعمیر سنہ 1300 عیسوی میں نواب ناہر خان نے دشمنوں سے مقابلہ کرنے کے لیے ہزاروں فٹ کی اونچائی پر کرائی تھی۔

قلعہ کے چہار جانب نگرانی کی غرض سے مچانیں بنوائی گئی تھیں۔ سرنگ سے لے کر گھوڑسال اور تالاب بھی بنوائے گئے تھے۔

کوٹلہ گاوں کے اردگرد لمبی اور چوڑی دیوار کی تعمیر کی گئی تھی جس میں دو دروازے تھے جنہیں شام ہوتے ہی بند کر دیا جاتا تھا۔

صدیوں سے قلعہ کے ٹھیک سامنے کئی سو فٹ کی اونچائی سے پانی کا جھرنا گرتا ہے، جو قدرت کا ایک شاندار نمونہ ہے۔ آج کل مقامی باشندے اس جھرنے کے پانی سے اپنی ضروریات زندگی پوری کرتے ہیں۔

قلعہ میں ایک غار بھی ہے جس کی گہرائی کا اندازہ اب تک نہیں لگایا جا سکا ہے۔

مقامی لوگوں کا مطالبہ ہے کہ اس تاریخی قلعہ کی بازیابی کے لیے حکومت کو سنجیدگی سے کوشش کرنی چاہیے۔

تعجب اس بات کی ہے کہ اب تک مرکزی اور نہ ہی ریاستی حکومت نے اس تاریخی قلعہ کی حفاظت پر توجہ دی ہے، جس سے آئندہ نسلوں کو تاریخی عمارتوں سے واقف کرایا جا سکے۔

بھارتی ریاست ہریانہ کے نوح شہر میں واقع کوٹلہ گاوں کے اراولی پہاڑ کی چوٹی پر تاریخی عمارت 'کوٹلہ قلعہ' واقع ہے۔

نوح شہر کا تاریخی قلعہ

اس قلعہ کی تعمیر سنہ 1300 عیسوی میں نواب ناہر خان نے دشمنوں سے مقابلہ کرنے کے لیے ہزاروں فٹ کی اونچائی پر کرائی تھی۔

قلعہ کے چہار جانب نگرانی کی غرض سے مچانیں بنوائی گئی تھیں۔ سرنگ سے لے کر گھوڑسال اور تالاب بھی بنوائے گئے تھے۔

کوٹلہ گاوں کے اردگرد لمبی اور چوڑی دیوار کی تعمیر کی گئی تھی جس میں دو دروازے تھے جنہیں شام ہوتے ہی بند کر دیا جاتا تھا۔

صدیوں سے قلعہ کے ٹھیک سامنے کئی سو فٹ کی اونچائی سے پانی کا جھرنا گرتا ہے، جو قدرت کا ایک شاندار نمونہ ہے۔ آج کل مقامی باشندے اس جھرنے کے پانی سے اپنی ضروریات زندگی پوری کرتے ہیں۔

قلعہ میں ایک غار بھی ہے جس کی گہرائی کا اندازہ اب تک نہیں لگایا جا سکا ہے۔

مقامی لوگوں کا مطالبہ ہے کہ اس تاریخی قلعہ کی بازیابی کے لیے حکومت کو سنجیدگی سے کوشش کرنی چاہیے۔

تعجب اس بات کی ہے کہ اب تک مرکزی اور نہ ہی ریاستی حکومت نے اس تاریخی قلعہ کی حفاظت پر توجہ دی ہے، جس سے آئندہ نسلوں کو تاریخی عمارتوں سے واقف کرایا جا سکے۔

Intro:
संवाददाता नूंह मेवात।

स्टोरी ;- अरावली पर्वत की चोटी पर करीब 1300 ईसवीं में बना कोटला किला बदहाल।

जिले के कोटला गांव में अरावली पर्वत की चोटी पर करीब 1300 ईसवीं में नवाब नाहर खान ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए हजारों फुट ऊंचाई पर किले का निर्माण कराया। किले के चारों तरफ निगरानी के लिए मचाने बनवाई गई। सुरंग से लेकर घुड़साल और तालाब भी बनवाया गया था। घोड़ों को तिजारा राजस्थान की तरफ से किले तक पहुँचाया जाता था। कोटला गांव के चारों तरफ बड़ी चौड़ी और ऊँची दीवार थी। दुश्मनों से हिफाजत के लिए शाम ढलते ही दो दरवाजे थे, जिन्हें बंद कर दिया जाता था । किले के ठीक समीप से सदियों से पानी झरने बहते हैं। झरने के पानी से महिलाएं कपडे धोती हैं ,साथ ही पशुओं को भी लोग पानी पिलाते हैं। कई सौ फुट ऊंचाई से झरने का पानी गिरता है ,जो कुदरत का बेजोड़ नमूना है। इस मुकाम और ऊंचाई पर बने कोटला किले का जायजा लेने के लिए हमारी टीम ने जान जोखिम में डाल कर उबड़ -खाबड़ पहाड़ के रास्ते को पार करते हुए किले तक का सफर तय किया। बताया जाता है की कोटला की राजधानी को तहस -नहस करने के लिए राजाओं हमले , शायद उसी का नतीजा है की अरावली की चोटी पर इस किले का निर्माण नवाब नाहर खान ने किया। नाहर खान वंशज शहीद राजा हसन खान मेवाती थे ,जिनके नाम पर आज मेडिकल कालेज का नामकरण सूबे की सरकार कर चुकी है। हसन खान मेवाती ने राणा सांघा और बाबर के बीच जो युद्ध हुआ था ,उसमें हसन खान मेवाती ने बाबर का नहीं बल्कि राणा सांघा का साथ दिया था। उस वीर शहीद को आज भी लोग मेवात में याद करते हुए सीना चौड़ा कर लेते हैं। वतनपरस्ती के साथ -साथ हिन्दू -मुस्लिम भाई चारे को उस समय भी हसन खान मेवाती ने बढ़ाया था। इसके अलावा 1300 ईसवीं में ही फिरोजशाह तुगलक के वंशज ने बड़े विशालकाय पत्थरों से मस्जिद का निर्माण कराया। इस मस्जिद के निर्माण में गारे -मसाले का कम ही इस्तेमाल हुआ। हैरत इस बात की है की मेवात की इन ऐतिहासिक इमारतों की पुरात्तव विभाग लेकर केंद्र व सूबे सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया। किले का बदहाल होता जा रहा है। किले में एक गुफा है ,जिसकी गहराई आज तक कोई नहीं माप पाया। लोग बताते हैं की गुफा फिरोजपुर झिरका में जाकर निकली थी ,ऐसा भी तब हुआ जब गाय को ढूढ़ने के लिए लोग इस गुफा में उतरे थे। दिए के लिए सवा मन सरसों का तेल लेकर गए थे ,लेकिन गाय नहीं मिली। तक़रीबन 30 किलोमीटर दूर गाय ढूँढने वाले लोग फिरोजपुर झिरका में जाकर निकले। आज इस किले को जीर्णोद्धार की जरुरत है। ताकि इतिहास को जीवित रखने वाली इमारतों को आने वाली पीढ़ियां नजदीक से देख सकें।

बाइट ;- जाकिर कोटला ग्रमीण।
बाइट ;- शौकीन कोटला ग्रामीण।

संवाददाता कासिम खान नूंह मेवात। Body:
संवाददाता नूंह मेवात।

स्टोरी ;- अरावली पर्वत की चोटी पर करीब 1300 ईसवीं में बना कोटला किला बदहाल।

जिले के कोटला गांव में अरावली पर्वत की चोटी पर करीब 1300 ईसवीं में नवाब नाहर खान ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए हजारों फुट ऊंचाई पर किले का निर्माण कराया। किले के चारों तरफ निगरानी के लिए मचाने बनवाई गई। सुरंग से लेकर घुड़साल और तालाब भी बनवाया गया था। घोड़ों को तिजारा राजस्थान की तरफ से किले तक पहुँचाया जाता था। कोटला गांव के चारों तरफ बड़ी चौड़ी और ऊँची दीवार थी। दुश्मनों से हिफाजत के लिए शाम ढलते ही दो दरवाजे थे, जिन्हें बंद कर दिया जाता था । किले के ठीक समीप से सदियों से पानी झरने बहते हैं। झरने के पानी से महिलाएं कपडे धोती हैं ,साथ ही पशुओं को भी लोग पानी पिलाते हैं। कई सौ फुट ऊंचाई से झरने का पानी गिरता है ,जो कुदरत का बेजोड़ नमूना है। इस मुकाम और ऊंचाई पर बने कोटला किले का जायजा लेने के लिए हमारी टीम ने जान जोखिम में डाल कर उबड़ -खाबड़ पहाड़ के रास्ते को पार करते हुए किले तक का सफर तय किया। बताया जाता है की कोटला की राजधानी को तहस -नहस करने के लिए राजाओं हमले , शायद उसी का नतीजा है की अरावली की चोटी पर इस किले का निर्माण नवाब नाहर खान ने किया। नाहर खान वंशज शहीद राजा हसन खान मेवाती थे ,जिनके नाम पर आज मेडिकल कालेज का नामकरण सूबे की सरकार कर चुकी है। हसन खान मेवाती ने राणा सांघा और बाबर के बीच जो युद्ध हुआ था ,उसमें हसन खान मेवाती ने बाबर का नहीं बल्कि राणा सांघा का साथ दिया था। उस वीर शहीद को आज भी लोग मेवात में याद करते हुए सीना चौड़ा कर लेते हैं। वतनपरस्ती के साथ -साथ हिन्दू -मुस्लिम भाई चारे को उस समय भी हसन खान मेवाती ने बढ़ाया था। इसके अलावा 1300 ईसवीं में ही फिरोजशाह तुगलक के वंशज ने बड़े विशालकाय पत्थरों से मस्जिद का निर्माण कराया। इस मस्जिद के निर्माण में गारे -मसाले का कम ही इस्तेमाल हुआ। हैरत इस बात की है की मेवात की इन ऐतिहासिक इमारतों की पुरात्तव विभाग लेकर केंद्र व सूबे सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया। किले का बदहाल होता जा रहा है। किले में एक गुफा है ,जिसकी गहराई आज तक कोई नहीं माप पाया। लोग बताते हैं की गुफा फिरोजपुर झिरका में जाकर निकली थी ,ऐसा भी तब हुआ जब गाय को ढूढ़ने के लिए लोग इस गुफा में उतरे थे। दिए के लिए सवा मन सरसों का तेल लेकर गए थे ,लेकिन गाय नहीं मिली। तक़रीबन 30 किलोमीटर दूर गाय ढूँढने वाले लोग फिरोजपुर झिरका में जाकर निकले। आज इस किले को जीर्णोद्धार की जरुरत है। ताकि इतिहास को जीवित रखने वाली इमारतों को आने वाली पीढ़ियां नजदीक से देख सकें।

बाइट ;- जाकिर कोटला ग्रमीण।
बाइट ;- शौकीन कोटला ग्रामीण।

संवाददाता कासिम खान नूंह मेवात। Conclusion:
संवाददाता नूंह मेवात।

स्टोरी ;- अरावली पर्वत की चोटी पर करीब 1300 ईसवीं में बना कोटला किला बदहाल।

जिले के कोटला गांव में अरावली पर्वत की चोटी पर करीब 1300 ईसवीं में नवाब नाहर खान ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए हजारों फुट ऊंचाई पर किले का निर्माण कराया। किले के चारों तरफ निगरानी के लिए मचाने बनवाई गई। सुरंग से लेकर घुड़साल और तालाब भी बनवाया गया था। घोड़ों को तिजारा राजस्थान की तरफ से किले तक पहुँचाया जाता था। कोटला गांव के चारों तरफ बड़ी चौड़ी और ऊँची दीवार थी। दुश्मनों से हिफाजत के लिए शाम ढलते ही दो दरवाजे थे, जिन्हें बंद कर दिया जाता था । किले के ठीक समीप से सदियों से पानी झरने बहते हैं। झरने के पानी से महिलाएं कपडे धोती हैं ,साथ ही पशुओं को भी लोग पानी पिलाते हैं। कई सौ फुट ऊंचाई से झरने का पानी गिरता है ,जो कुदरत का बेजोड़ नमूना है। इस मुकाम और ऊंचाई पर बने कोटला किले का जायजा लेने के लिए हमारी टीम ने जान जोखिम में डाल कर उबड़ -खाबड़ पहाड़ के रास्ते को पार करते हुए किले तक का सफर तय किया। बताया जाता है की कोटला की राजधानी को तहस -नहस करने के लिए राजाओं हमले , शायद उसी का नतीजा है की अरावली की चोटी पर इस किले का निर्माण नवाब नाहर खान ने किया। नाहर खान वंशज शहीद राजा हसन खान मेवाती थे ,जिनके नाम पर आज मेडिकल कालेज का नामकरण सूबे की सरकार कर चुकी है। हसन खान मेवाती ने राणा सांघा और बाबर के बीच जो युद्ध हुआ था ,उसमें हसन खान मेवाती ने बाबर का नहीं बल्कि राणा सांघा का साथ दिया था। उस वीर शहीद को आज भी लोग मेवात में याद करते हुए सीना चौड़ा कर लेते हैं। वतनपरस्ती के साथ -साथ हिन्दू -मुस्लिम भाई चारे को उस समय भी हसन खान मेवाती ने बढ़ाया था। इसके अलावा 1300 ईसवीं में ही फिरोजशाह तुगलक के वंशज ने बड़े विशालकाय पत्थरों से मस्जिद का निर्माण कराया। इस मस्जिद के निर्माण में गारे -मसाले का कम ही इस्तेमाल हुआ। हैरत इस बात की है की मेवात की इन ऐतिहासिक इमारतों की पुरात्तव विभाग लेकर केंद्र व सूबे सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया। किले का बदहाल होता जा रहा है। किले में एक गुफा है ,जिसकी गहराई आज तक कोई नहीं माप पाया। लोग बताते हैं की गुफा फिरोजपुर झिरका में जाकर निकली थी ,ऐसा भी तब हुआ जब गाय को ढूढ़ने के लिए लोग इस गुफा में उतरे थे। दिए के लिए सवा मन सरसों का तेल लेकर गए थे ,लेकिन गाय नहीं मिली। तक़रीबन 30 किलोमीटर दूर गाय ढूँढने वाले लोग फिरोजपुर झिरका में जाकर निकले। आज इस किले को जीर्णोद्धार की जरुरत है। ताकि इतिहास को जीवित रखने वाली इमारतों को आने वाली पीढ़ियां नजदीक से देख सकें।

बाइट ;- जाकिर कोटला ग्रमीण।
बाइट ;- शौकीन कोटला ग्रामीण।

संवाददाता कासिम खान नूंह मेवात।
Last Updated : Jun 17, 2019, 2:15 PM IST
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