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शिंखलेश्वर धाम: जहां से दिखता है पूरे नगर का नजारा, 33 करोड़ देवी-देवताओं का रहता है वास

कहते हैं कि इस वारुणी यात्रा को करने से 33 करोड़ देवी देवताओं के दर्शनों का लाभ प्राप्त होता है. वरुणावत पर 2500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बांज-बुरांश के पेड़ों के बीच  शिंखलेश्वर धाम और व्यास कुंड मौजूद हैं. जहां से उत्तरकाशी नगर की खूबसूरती को नंगी आंखों से देखा जा सकता है.

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Published : Feb 20, 2019, 11:23 AM IST

uttarkashi

उत्तरकाशी: देवभूमि में स्थित बाबा काशी विश्वनाथ की नगरी उत्तरकाशी के कण-कण में शिव का वास है. यहां वरुणावत पर्वत पर 2500 मीटर की ऊंचाई पर शिंखलेश्वर धाम मौजूद है. जहां से उत्तरकाशी नगर की खूबसूरती को देखा जा सकता है. जिसके पास ही महाभारत काल से जुड़ा व्यास कुंड भी है. धार्मिक ग्रंथों में इन दोनों पौराणिक स्थलों का उल्लेख मिलता है.

वरुणावत पर्वत पर स्थित है शिंखलेश्वर मंदिर.

हर साल मार्च और अप्रैल माह के मध्य में वारुणी यात्रा होती है. जो कि वरुणावत पर्वत पर स्थित 2500 मीटर की ऊंचाई पर बसे शिंखलेश्वर और व्यास कुंड धाम से होते हुए 20 किमी की यात्रा पूरी करती है. इस पर्वत पर स्थित शिंखलेश्वर धाम और व्यास कुंड का अलग-अलग धार्मिक पुराणों और केदारखंड में उल्लेख मिलता है. कहते हैं कि इस वारुणी यात्रा को करने से 33 करोड़ देवी देवताओं के दर्शनों का लाभ प्राप्त होता है.
वरुणावत पर 2500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बांज-बुरांश के पेड़ों के बीच शिंखलेश्वर धाम और व्यास कुंड मौजूद हैं. जहां से उत्तरकाशी नगर की खूबसूरती को नंगी आंखों से देखा जा सकता है.

पढ़ें-पुलवामा अटैक: कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ ने फूंका पाकिस्तान का पुतला, शहीदों को किया नमन

मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पांडवों के वनवास के दौरान कुंती ने शिंखलेश्वर धाम में भगवान शिव की आराधना की थी. इस दौरान एक दिन जब कुंती को प्यास लगी, तो उन्होंने अपने भतीजे भगवान कृष्ण को याद किया. जिसके बाद बताते हैं कि भगवान कृष्ण ने तीर मारकर पानी का व्यास कुंड बनाया. जो आज भी वहां मौजूद है. बताते हैं कि इस कुंड में जल हमेशा एक समान बना हुआ है. बताते हैं कि यह पानी न कभी बढ़ता है और न ही घटता है. हर साल वारुणी यात्रा के दौरान श्रद्धालु इस जल को ग्रहण करते पुण्य लाभ कमाते हैं.

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वहीं शिव पुराण के अनुसार बताया जाता है कि जब भगवान कार्तिक कैलाश से नाराज होकर चले गए थे, तो वे कुछ समय के लिए यहां पहुंचे थे. केदारखंड में शिंखलेश्वर धाम के बारे में कहा गया है कि यहां पर 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास है.

उत्तरकाशी: देवभूमि में स्थित बाबा काशी विश्वनाथ की नगरी उत्तरकाशी के कण-कण में शिव का वास है. यहां वरुणावत पर्वत पर 2500 मीटर की ऊंचाई पर शिंखलेश्वर धाम मौजूद है. जहां से उत्तरकाशी नगर की खूबसूरती को देखा जा सकता है. जिसके पास ही महाभारत काल से जुड़ा व्यास कुंड भी है. धार्मिक ग्रंथों में इन दोनों पौराणिक स्थलों का उल्लेख मिलता है.

वरुणावत पर्वत पर स्थित है शिंखलेश्वर मंदिर.

हर साल मार्च और अप्रैल माह के मध्य में वारुणी यात्रा होती है. जो कि वरुणावत पर्वत पर स्थित 2500 मीटर की ऊंचाई पर बसे शिंखलेश्वर और व्यास कुंड धाम से होते हुए 20 किमी की यात्रा पूरी करती है. इस पर्वत पर स्थित शिंखलेश्वर धाम और व्यास कुंड का अलग-अलग धार्मिक पुराणों और केदारखंड में उल्लेख मिलता है. कहते हैं कि इस वारुणी यात्रा को करने से 33 करोड़ देवी देवताओं के दर्शनों का लाभ प्राप्त होता है.
वरुणावत पर 2500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बांज-बुरांश के पेड़ों के बीच शिंखलेश्वर धाम और व्यास कुंड मौजूद हैं. जहां से उत्तरकाशी नगर की खूबसूरती को नंगी आंखों से देखा जा सकता है.

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मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पांडवों के वनवास के दौरान कुंती ने शिंखलेश्वर धाम में भगवान शिव की आराधना की थी. इस दौरान एक दिन जब कुंती को प्यास लगी, तो उन्होंने अपने भतीजे भगवान कृष्ण को याद किया. जिसके बाद बताते हैं कि भगवान कृष्ण ने तीर मारकर पानी का व्यास कुंड बनाया. जो आज भी वहां मौजूद है. बताते हैं कि इस कुंड में जल हमेशा एक समान बना हुआ है. बताते हैं कि यह पानी न कभी बढ़ता है और न ही घटता है. हर साल वारुणी यात्रा के दौरान श्रद्धालु इस जल को ग्रहण करते पुण्य लाभ कमाते हैं.

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वहीं शिव पुराण के अनुसार बताया जाता है कि जब भगवान कार्तिक कैलाश से नाराज होकर चले गए थे, तो वे कुछ समय के लिए यहां पहुंचे थे. केदारखंड में शिंखलेश्वर धाम के बारे में कहा गया है कि यहां पर 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास है.

Intro:उत्तरकाशी। कहते हैं कि बाबा काशी विश्वनाथ की नगरी उत्तरकाशी में कण-कण में शिव का वास है। ऐसा ही धाम जो कि जनपद से मात्र 10 किमी की दूरी पर बसा हुआ है। शिंखलेश्वर धाम और व्यास कुंड। जहां पर हर वर्ष मार्च और अप्रैल माह के मध्य में वारुणी यात्रा होती है। जो कि वरुणावत पर्वत पर स्थित 2500 मीटर की ऊंचाई पर बसे शिंखलेश्वर और व्यास कुंड धाम की पाँच कोष की यात्रा होती है। शिंखलेश्वर धाम और व्यास कुंड का अलग-अलग धार्मिक पुराणों और केदारखंड में उल्लेख है। वहीं शिंखलेश्वर धाम की वारुणी यात्रा के दौरान कहा जाता है कि 33 करोड़ देवी देवताओं के दर्शनों का लाभ मिलता है।


Body:वीओ-1, बांज बुरांश के बीच 2500 मीटर की ऊंचाई पर वरुणावत पर ज्ञानजा गांव में बसे शिंखलेश्वर धाम और व्यास कुंड में प्रकृति की अलग छटा है। जहां से पूरी बाबा काशी विश्वनाथ की नगरी उत्तरकाशी का विहंगम दर्शन होते हैं। वहीं धार्मिक महत्व की बात करें,तो कहते हैं कि महाभारत काल में पांडवो के बनवास के दौरान माँ कुंती ने शिंखलेश्वर धाम में भगवान शिव की आराधना की थी। स्तुति के दौरान एक दिन कुंती को प्यास लगी। तो उन्होंने अपने भतीजे भगवान कृष्ण को याद किया। तो भगवान कृष्ण ने तीर मारकर पानी का व्यास कुंड बनाया। जिसमे आज भी जल एक समान बना हुआ है। यह पानी कभी न बढ़ता है और न ही घटता है। हर वर्ष वारुणी यात्रा के दौरान श्रद्धालु इस जल को ग्रहण करते हैं।


Conclusion:वीओ-2, वहीं कहा जाता है कि केदारखंड में शिंखलेश्वर धाम का उल्लेख है कि यहां पर 33 करोड़ देवी देवताओं का वास है और पांच कोष की बारुनी यात्रा में श्रद्धालु 33 करोड़ देवी देवताओं का आशीर्वाद लेते हैं। वहीं शिव पुराण में उल्लेख है कि जब भगवान कार्तिक कैलाश से नाराज होकर चले गए थे। तो जब भगवान शिव उन्हें ढूंढ रहे थे। तो शिंखलेश्वर धाम में पहुंच कर उनकी नजर भगवान कार्तिक पर पड़ी थी और नागनी धाम से माँ पार्वती की। वहीं यह जनपद के सबसे नजदीक पर्यटन स्थल के रूप मव विकसित हो सकता है। क्योंकि यहां से पूरे उत्तरकाशी का अदभुत विहंगम दृश्य दिखता है। तो साथ ही ट्रैकिंग और प्रकृति का आनंद भी मिल सकता है। ग्रामीणों का कहना है कि इसको लेकर शासन प्रशासन से मांग की गई है। बाईट- आनन्द पंवार,ग्रामीण ज्ञानजा। पीटीसी- विपिन नेगी।
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