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आजादी के सात दशक बाद भी 'कालापानी' जैसी सजा काटने को मजबूर हैं इस गांव के लोग - उत्तरकाशी

प्रदेश में कई ऐसे गांव हैं जहां आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी विकास की चिंगारी नहीं पहुंची है.उत्तरकाशी के बडियार क्षेत्र के लोग शासन-प्रशासन की बेरुखी से कालापानी सा जीवन जीने को मजबूर हैं. वहीं क्षेत्र में बेहतर शिक्षा व्यवस्था ने होने से लोगों को बच्चों की शिक्षा के लिए शहरों का रुख करना पड़ रहा है.

पलायन के लिए मजबूर ग्रामीण
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Published : Jul 26, 2019, 4:27 PM IST

उत्तरकाशीः प्रदेश में कई ऐसे गांव हैं, जहां आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी विकास की चिंगारी नहीं पहुंची है. जिससे लोगों को बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीवन यापन करना पड़ता है. जिससे लोग मजबूर होकर पलायन को विवश हैं. वहीं सीमांत जिला मुख्यालय उत्तरकाशी के पुरोला विकासखंड के सुदूरवर्ती बडियार क्षेत्र के 8 गांवों के ग्रामीण आज भी सड़क,पानी, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं.

उत्तरकाशी के बडियार क्षेत्र के लोग शासन-प्रशासन की बेरुखी से कालापानी जैसा जीवन जीने को मजबूर हैं. वहीं क्षेत्र में बेहतर शिक्षा व्यवस्था ने होने से लोगों को बच्चों की शिक्षा के लिए शहरों का रुख करना पड़ रहा है. साथ ही चिकित्सा व्यवस्था की बात करें तो सड़क सुविधा से क्षेत्र महरुम होने से मरीजों को डोली में मीलों का सफर तय कर हॉस्पिटल पहुंचाया जाता है. कई बार गंभीर मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. गांवों तक पहुंचने के लिये सड़क मार्ग तो दूर पैदल रास्ते का हाल भी खस्ताहाल है. लोगों को रोजाना इन्हीं जर्जर मार्गों से होकर गुजरना पड़ता है.

पलायन के लिए रुख करते मजबूर ग्रामीण

पढ़े- गुजरात: बहुमंजिली इमारत में लगी भीषण आग, एक की मौत

वहीं जब बरसात के मौसम में नाले अपने उफान पर होते है तो जंगलो के बीच से गुजरने वाले रास्ते भी खतरनाक हो जाते हैं. ऐसे में भी ग्रामीण इस जगह से गुजरते हैं और किसी तरह से अपना मार्ग खोजते है, लेकिन फिर भी उनकी समस्या का समाधान नहीं हो पाता.

ग्रामीणों ने लिखित शिकायत शासन-प्रशासन से की, लेकिन प्रशासन द्वारा कोई जवाब नहीं मिला. ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार उन्हें मूलभूत सुविधा नहीं देती तो यहां से उन्हें विस्थापित करवा दे.

उत्तरकाशीः प्रदेश में कई ऐसे गांव हैं, जहां आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी विकास की चिंगारी नहीं पहुंची है. जिससे लोगों को बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीवन यापन करना पड़ता है. जिससे लोग मजबूर होकर पलायन को विवश हैं. वहीं सीमांत जिला मुख्यालय उत्तरकाशी के पुरोला विकासखंड के सुदूरवर्ती बडियार क्षेत्र के 8 गांवों के ग्रामीण आज भी सड़क,पानी, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं.

उत्तरकाशी के बडियार क्षेत्र के लोग शासन-प्रशासन की बेरुखी से कालापानी जैसा जीवन जीने को मजबूर हैं. वहीं क्षेत्र में बेहतर शिक्षा व्यवस्था ने होने से लोगों को बच्चों की शिक्षा के लिए शहरों का रुख करना पड़ रहा है. साथ ही चिकित्सा व्यवस्था की बात करें तो सड़क सुविधा से क्षेत्र महरुम होने से मरीजों को डोली में मीलों का सफर तय कर हॉस्पिटल पहुंचाया जाता है. कई बार गंभीर मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. गांवों तक पहुंचने के लिये सड़क मार्ग तो दूर पैदल रास्ते का हाल भी खस्ताहाल है. लोगों को रोजाना इन्हीं जर्जर मार्गों से होकर गुजरना पड़ता है.

पलायन के लिए रुख करते मजबूर ग्रामीण

पढ़े- गुजरात: बहुमंजिली इमारत में लगी भीषण आग, एक की मौत

वहीं जब बरसात के मौसम में नाले अपने उफान पर होते है तो जंगलो के बीच से गुजरने वाले रास्ते भी खतरनाक हो जाते हैं. ऐसे में भी ग्रामीण इस जगह से गुजरते हैं और किसी तरह से अपना मार्ग खोजते है, लेकिन फिर भी उनकी समस्या का समाधान नहीं हो पाता.

ग्रामीणों ने लिखित शिकायत शासन-प्रशासन से की, लेकिन प्रशासन द्वारा कोई जवाब नहीं मिला. ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार उन्हें मूलभूत सुविधा नहीं देती तो यहां से उन्हें विस्थापित करवा दे.

Intro:रिपोर्ट- अनिल असवाल,पुरोला उत्तरकाशी
-सडक के अभाव में होता विस्थापन
- आजाद भारत में काले पानी की सजा काटनें को विवश ग्रामिण

एंकर-राज्य सरकार पलायन रोकनें के नाम पर जहां करोडों रुपये खर्च कर रही है वहीं सत प्रतिशत रिहायशी आबाद ,आबादी वाले गांवों में सडक जैसी मुल भुत सुविधा से भी लोग वंचित हैं लोग अब बच्चों को अच्छी शिछा देनें के लिये पलायन करनें को मजबुर हैं ।
Body:विओ१- जनपद के पुरोला विकासखंड के सुदुर सर बडियाड छेत्र. के आठ गांव के लोग आज भी सडक जैसी मुलभुत सुविधा से वंचित हैं अब आलम यह है कि लोग बच्चों को पढानें के लिये गांवों से विस्थापन करनें लगे हैं
गांवों तक पहुंचनें के लिये सडक मार्ग तो दुर पैदल रास्ते भी महफूज नहीं हैं , बरसात के मैसम में जहां बरसाती नाले अपनें ऊफान पर होते हैं वहीं जंगल के बिच से गुजरनें वाले रास्तों पर जोंक तक पैदल चलनें वालों का खुन चूसनें को आतुर रहती है
बाईट- ग्रामिण
बाईट- ग्रामिण
बाईट- ग्रामिण बालक/ बालिक
विओ२- शासन प्रसासन को कई बार ग्रामिणों नें लिखित शिकायत देकर यह तक कह दिया की जब सरकार उनके लिये शिछा,स्वास्थय,सडक की सुविधा नहीं पहुंचा सकती तो उनका विस्थापन कर दिया जाय लेकिन सरकार और सरकारी नुमाइनेंदें गांव वालों की मजबुरी को भी नजरअंदाद कर जाते हैं
बाईट- ग्रामिणConclusion:विओ३- यदी सरकार वक्त रहते नहीं जागी तो ,वह दिन दुर नहीं जब इन आबाद गांवों से मुलभुत सुविधा के लिये लोग पलायन करनें लग जायें और ये गांव राज्य के अन्य गांवों की तरह खाली हो जायें ।
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