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धूमधाम से मनाया गया सेलकु मेला, तांदी नृत्य रहा आकर्षण का केंद्र

सोमेश्वर देवता के सेलकु मेले का आयोजन धूमधाम से किया गया. सेलकु के अर्थ के अनुसार देर रात तक ग्रामीणों ने भेला घुमाकर रासो तांदी नृत्य का आयोजन किया. साथ ही सोमेश्वर देवता की डोली को भी कंधों पर नचाया गया.

धूमधाम से किया गया सोमेश्वर देवता के सेलकु मेले का आयोजन .
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Published : Sep 18, 2019, 7:10 PM IST

उत्तरकाशी: मां गंगा के मायके मुखबा गांव में सोमेश्वर देवता के सेलकु मेले का आयोजन धूमधाम से किया गया. ससुराल गई बेटियां अपनी भेंट लेकर भाई सोमेश्वर देवता के पास पहुंची तो सोमेश्वर देवता ने भी बहनों को रक्षा का वचन दिया.

धूमधाम से किया गया सोमेश्वर देवता के सेलकु मेले का आयोजन .

वहीं, इस मौके पर देवता के पश्वा अवतरित हुए और डांगरियों पर चलकर सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने का आशीर्वाद दिया.
देर रात तक ग्रामीणों ने भेला घुमाकर रासो तांदी नृत्य का आयोजन किया. साथ ही सोमेश्वर देवता की डोली को भी कंधों पर नचाया. टकनौर और उपला टकनौर क्षेत्र में मनाए जाने वाले सेलकु मेले का समापन अंतिम मुखबा गांव में होता है.

हिमालय का राजा माने जाने वाले सोमेश्वर देवता के सेलकु मेले का आयोजन भटवाड़ी ब्लॉक के टकनौर और उपला टकनौर क्षेत्र में किया जाता है. वहीं, सोमेश्वर देवता का अंतिम आसन मां गंगा के मायके मुखबा गांव में लगता है. देवता का पश्वा अवतरित होता है और उसके बाद डांगरियों पर देवता का आसन लगता है. साथ ही देवता को भेंट चढ़ाने आई बहनों की मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद देते हैं.

यह भी पढे़-उत्तरकाशी आपदाः धीरे-धीरे पटरी पर लौटती जिंदगी, मंडी में सेब की आवक शुरू

स्थानीय बोली में 'सेलकु' का अर्थ होता है कि 'सोएगा कौन'. इसलिए ग्रामीण पहले पूरी रात लोकनृत्यों का आयोजन करते हैं.

पंडित सुधांशु सेमवाल ने बताया कि सोमेश्वर देवता कश्मीर से आये थे. सोमेश्वर देवता को हिमाचल प्रदेश के कुल्लू सहित शिमला के कई गांव और उत्तरकाशी में आराकोट, मोरी, खरसाली सहित गंगा घाटी के उपरिकोट, भराण गांव सहित रैथल और उसके बाद सोमेश्वर देवता अंतिम मां गंगा का मायका मुखबा गांव में विराजमान हुए थे.

उत्तरकाशी: मां गंगा के मायके मुखबा गांव में सोमेश्वर देवता के सेलकु मेले का आयोजन धूमधाम से किया गया. ससुराल गई बेटियां अपनी भेंट लेकर भाई सोमेश्वर देवता के पास पहुंची तो सोमेश्वर देवता ने भी बहनों को रक्षा का वचन दिया.

धूमधाम से किया गया सोमेश्वर देवता के सेलकु मेले का आयोजन .

वहीं, इस मौके पर देवता के पश्वा अवतरित हुए और डांगरियों पर चलकर सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने का आशीर्वाद दिया.
देर रात तक ग्रामीणों ने भेला घुमाकर रासो तांदी नृत्य का आयोजन किया. साथ ही सोमेश्वर देवता की डोली को भी कंधों पर नचाया. टकनौर और उपला टकनौर क्षेत्र में मनाए जाने वाले सेलकु मेले का समापन अंतिम मुखबा गांव में होता है.

हिमालय का राजा माने जाने वाले सोमेश्वर देवता के सेलकु मेले का आयोजन भटवाड़ी ब्लॉक के टकनौर और उपला टकनौर क्षेत्र में किया जाता है. वहीं, सोमेश्वर देवता का अंतिम आसन मां गंगा के मायके मुखबा गांव में लगता है. देवता का पश्वा अवतरित होता है और उसके बाद डांगरियों पर देवता का आसन लगता है. साथ ही देवता को भेंट चढ़ाने आई बहनों की मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद देते हैं.

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स्थानीय बोली में 'सेलकु' का अर्थ होता है कि 'सोएगा कौन'. इसलिए ग्रामीण पहले पूरी रात लोकनृत्यों का आयोजन करते हैं.

पंडित सुधांशु सेमवाल ने बताया कि सोमेश्वर देवता कश्मीर से आये थे. सोमेश्वर देवता को हिमाचल प्रदेश के कुल्लू सहित शिमला के कई गांव और उत्तरकाशी में आराकोट, मोरी, खरसाली सहित गंगा घाटी के उपरिकोट, भराण गांव सहित रैथल और उसके बाद सोमेश्वर देवता अंतिम मां गंगा का मायका मुखबा गांव में विराजमान हुए थे.

Intro:उत्तरकाशी। मां गंगा के मायके मुखबा गांव में सोमेश्वर देवता के सेलकु मेले का आयोजन धूमधाम से किया गया। ससुराल गई बेटियां अपनी भेंट लेकर भाई सोमेश्वर देवता के पास पहुंची। तो सोमेश्वर देवता ने भी बहनों को रक्षा का वचन दिया। वहीं इस मौके पर देवता के पश्वा अवतरित हुए और डांगरियो पर चल सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने का आशीर्वाद दिया। साथ ही सेलकु के अर्थ के अनुसार देर रात तक ग्रामीणों ने भेला घुमाकर रासो तांदी नृत्य का आयोजन किया। साथ ही सोमेश्वर देवता की डोली को भी कन्धों पर नचाया गया। टकनौर और उपला टकनौर क्षेत्र में मनाए जाने वाले सेलकु मेले का समापन अंतिम मुखबा गांव में होता है।Body:वीओ-1, हिमालय का राजा माने जाने वाले सोमेश्वर देवता के सेलकु मेले का आयोजन भटवाड़ी ब्लॉक के टकनौर और उपला टकनौर क्षेत्र में किया जाता है। वहीं सोमेश्वर देवता का अंतिम आसन माँ गंगा के मायके मुखबा गांव में लगता है। देवता का पश्वा अवतरित होता है और उसके बाद डांगरियो पर देवता का आसन लगता है। साथ ही देवता भेंट चढ़ाने आई बहनों की मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद देते हैं। इससे पूर्व सोमवार रात को ग्रामीण देर रात तक भेला घुमाते रहे और साथ ही रासो तांदी का आयोजन करते हैं। क्योंकि कहा जाता है कि स्थानीय बोली में सेलकु का अर्थ होता है कि सोएगा कौन। इसलिए ग्रामीण पहले पूरी रात लोकनृत्यों का आयोजन करते हैं।Conclusion:वीओ-2, पण्डित सुधांशु सेमवाल ने बताया कि सोमेश्वर देवता कश्मीर से आये थे। सोमेश्वर देवता को हिमांचल प्रदेश के कुल्लू सहित शिमला के कई गांव और उत्तरकाशी में आराकोट,मोरी,खरसाली सहित गंगा घाटी के उपरिकोट,भराण गांव सहित रैथल औऱ उसके बाद सोमेश्वर देवता अंतिम माँ गंगे के मायके मुखबा गांव में विराजमान हुए थे। हर वर्ष सोमेश्वर देवता का अंतिम आसन मुखबा गांव में ही लगता है। साथ ही ससुराल गई बेटियों की हर मनोकामना को सोमेश्वर देवता पूर्ण करते हैं। बाईट- सुधांशू सेमवाल।
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