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30 मार्च को होगी पंचकोसी वारुणी यात्रा, श्रद्धालु करेंगे वरुणावत पर्वत की परिक्रमा

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Published : Mar 12, 2022, 3:15 PM IST

उत्तरकाशी में इस बार 30 मार्च को वारुणी यात्रा का आयोजन होगा. चैत्र मास की त्रयोदशी को यहां पंचकोसी वारुणी यात्रा के तहत वरुणावत पर्वत की पैदल परिक्रमा की जाती है.

Panchkoshi Varuni Yatra
30 मार्च को होगी पंचकोशी वारुणी यात्रा

उत्तरकाशी: पंचकोसी वारुणी यात्रा उत्तरकाशी की एक ऐसी यात्रा है, जिसमें पग-पग चलने पर श्रद्धालुओं को अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य लाभ मिलता है. 15 किमी पैदल दूरी वाले यात्रा मार्ग पर 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास है. सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार हर साल चैत्र मास की त्रयोदशी को यहां पंचकोसी वारुणी यात्रा के तहत वरुणावत पर्वत की पैदल परिक्रमा की जाती है.

इस बार 30 मार्च को वारुणी यात्रा का आयोजन होगा. अस्सी गंगा, वरुण गंगा और गंगा भागीरथी से घिरे वरुणावत पर्वत की तलहटी में उत्तरकाशी नगर बसा हुआ है. यहां हर साल चैत्र मास की त्रयोदशी को वारुणी यात्रा का आयोजन किया जाता है, जिसमें श्रद्धालु पौराणिक मणिकर्णिका घाट एवं बड़ेथी चुंगी में वरुण गंगा और गंगा भागीरथी के संगम पर स्नान कर पदयात्रा शुरू करते हैं.

यह यात्रा बसूंगा, साल्ड, ज्ञाणजा, वरुणावत के शीर्ष, संग्राली, पाटा होते हुए गंगोरी में अस्सी गंगा और गंगा भागीरथी के संगम पर पहुंचती है. यहां संगम पर स्नान कर श्रद्धालु उत्तरकाशी नगर स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर समेत तमाम मंदिरों में पूजा-अर्चना कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं. इस यात्रा में श्रद्धालुओं को करीब 15 किमी की दूरी पैदल तय करनी होती है.

ये भी पढ़ें: कार्यकारी CM धामी से मिले BJP के नव निर्वाचित MLA, मुख्यमंत्री ने दी बधाई

वरुणावत पर्वत की परिक्रमा का ट्रैक चीड़, देवदार, बांज, बुरांश के घने जंगलों के बीच से होकर गुजरता है. वरुणावत शीर्ष से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों का विहंगम दृश्य देखने लायक होता है. बीते सालों में इस यात्रा के प्रति लोगों का आकर्षण बहुत बढ़ गया है. यही कारण है कि वारुणी यात्रा में हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं. इस दौरान यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले गांवों में श्रद्धालुओं की विशेष आवभगत एवं जलपान की व्यवस्था की जाती है.

वारुणी यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले प्राचीन मंदिर पंचकोसी वारुणी यात्रा मार्ग पर बड़ेथी संगम पर वरुणेश्वर महादेव, बसूंगा में बासू कंडार, साल्ड में जगन्नाथ एवं अष्टभुजा ज्वाला देवी, ज्ञाणजा में ज्ञानेश्वर महादेव एवं व्यास कुंड, वरुणावत शीर्ष पर शिखरेश्वर, राजराजेश्वरी एवं विमलेश्वर महादेव, संग्राली में कंडार देवता, पाटा में नर्मदेश्वर महादेव, गंगोरी त्रिवेणी घाट पर गंगेश्वर, लक्षेश्वर, उज्ज्वला देवी, महिषासुर मर्दिनी, कंडार देवता, परशुराम, अन्नपूर्णा, भैरव, गोपेश्वर महादेव, शक्ति मंदिर, हनुमान मंदिर, कीर्तेश्वर महादेव, काशी विश्वनाथ एवं मणिकर्णिका घाट स्थित गंगा मंदिर पड़ते हैं.

संग्राली गांव के दिवाकर नौथानी ने बताया कि यात्रा का उल्लेख स्कंदपुराण के केदारखंड में भी है. उन्होंने बताया कि पहले इस यात्रा पर साधु-संत जाते थे. धीरे-धीरे पुराणों के अध्ययन के बाद आम लोग भी यात्रा पर जाने लगे हैं. अब हर साल यात्रा भव्य रूप लेती जा रही है.

उत्तरकाशी: पंचकोसी वारुणी यात्रा उत्तरकाशी की एक ऐसी यात्रा है, जिसमें पग-पग चलने पर श्रद्धालुओं को अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य लाभ मिलता है. 15 किमी पैदल दूरी वाले यात्रा मार्ग पर 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास है. सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार हर साल चैत्र मास की त्रयोदशी को यहां पंचकोसी वारुणी यात्रा के तहत वरुणावत पर्वत की पैदल परिक्रमा की जाती है.

इस बार 30 मार्च को वारुणी यात्रा का आयोजन होगा. अस्सी गंगा, वरुण गंगा और गंगा भागीरथी से घिरे वरुणावत पर्वत की तलहटी में उत्तरकाशी नगर बसा हुआ है. यहां हर साल चैत्र मास की त्रयोदशी को वारुणी यात्रा का आयोजन किया जाता है, जिसमें श्रद्धालु पौराणिक मणिकर्णिका घाट एवं बड़ेथी चुंगी में वरुण गंगा और गंगा भागीरथी के संगम पर स्नान कर पदयात्रा शुरू करते हैं.

यह यात्रा बसूंगा, साल्ड, ज्ञाणजा, वरुणावत के शीर्ष, संग्राली, पाटा होते हुए गंगोरी में अस्सी गंगा और गंगा भागीरथी के संगम पर पहुंचती है. यहां संगम पर स्नान कर श्रद्धालु उत्तरकाशी नगर स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर समेत तमाम मंदिरों में पूजा-अर्चना कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं. इस यात्रा में श्रद्धालुओं को करीब 15 किमी की दूरी पैदल तय करनी होती है.

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वरुणावत पर्वत की परिक्रमा का ट्रैक चीड़, देवदार, बांज, बुरांश के घने जंगलों के बीच से होकर गुजरता है. वरुणावत शीर्ष से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों का विहंगम दृश्य देखने लायक होता है. बीते सालों में इस यात्रा के प्रति लोगों का आकर्षण बहुत बढ़ गया है. यही कारण है कि वारुणी यात्रा में हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं. इस दौरान यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले गांवों में श्रद्धालुओं की विशेष आवभगत एवं जलपान की व्यवस्था की जाती है.

वारुणी यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले प्राचीन मंदिर पंचकोसी वारुणी यात्रा मार्ग पर बड़ेथी संगम पर वरुणेश्वर महादेव, बसूंगा में बासू कंडार, साल्ड में जगन्नाथ एवं अष्टभुजा ज्वाला देवी, ज्ञाणजा में ज्ञानेश्वर महादेव एवं व्यास कुंड, वरुणावत शीर्ष पर शिखरेश्वर, राजराजेश्वरी एवं विमलेश्वर महादेव, संग्राली में कंडार देवता, पाटा में नर्मदेश्वर महादेव, गंगोरी त्रिवेणी घाट पर गंगेश्वर, लक्षेश्वर, उज्ज्वला देवी, महिषासुर मर्दिनी, कंडार देवता, परशुराम, अन्नपूर्णा, भैरव, गोपेश्वर महादेव, शक्ति मंदिर, हनुमान मंदिर, कीर्तेश्वर महादेव, काशी विश्वनाथ एवं मणिकर्णिका घाट स्थित गंगा मंदिर पड़ते हैं.

संग्राली गांव के दिवाकर नौथानी ने बताया कि यात्रा का उल्लेख स्कंदपुराण के केदारखंड में भी है. उन्होंने बताया कि पहले इस यात्रा पर साधु-संत जाते थे. धीरे-धीरे पुराणों के अध्ययन के बाद आम लोग भी यात्रा पर जाने लगे हैं. अब हर साल यात्रा भव्य रूप लेती जा रही है.

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