उत्तरकाशी: देवभूमि उत्तराखंड वो धरा है जहां लोगों को धर्म और दर्शन से साक्षात्कार होते हैं, जो अतीत से ही लोगों की गहरी आस्था का केंद्र रहा है. बाबा बम बम भोले का संगीत जहां लोगों को मंत्रमुग्ध कर देता है तो वहीं मां गंगा पर लोगों की आस्था विश्व को हैरत में डाल देती है. मान्यता है कि मां गंगा भगवान शिव की जटा से निकलते ही सबसे पहले भू-लोक पर गोमुख में अवतरित हुईं थीं. इस वजह से गंगोत्री मां गंगा का धाम बन गया.
हिन्दू धर्म में गंगा नदी को मां का दर्जा दिया गया है. श्रद्धालुओं के लिए गंगा की जलधारा सिर्फ पानी नहीं बल्कि जीवन-मरण से मुक्ति देनी वाली है. कहा जाता है आस्था को प्रमाण की जरूरत नहीं होती जो देवभूमि में देखने को मिलती है.
पढ़ें- जगमग हुआ बदरीनाथ धाम, बीडी सिंह को मिला बदरी-केदार यात्रा का जिम्मा
पुराणों में मां गंगा को सर्वोच्च दर्जा दिया गया है इसलिए देश-विदेश के सैलानी यहां बड़ी संख्या शीष नवाने आते हैं और इस देवत्व के एहसास को महसूस करने के लिए वैदिक धर्म को नजदीकी से साक्षात्कार करते हैं.
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता है कि गंगोत्री धाम की शिला पर बैठकर ही राजा सगर के वंशज राजा भगीरथ ने अपने पुरखों के उद्धार के लिए 5500 वर्षों तक गंगा को धरती पर लाने के लिए तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा धरती पर अवतरित हुई थी.
राजा भगीरथ को ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद मां गंगा मृत्युलोक में आने को तैयार हो गईं. मां गंगा भगवान शिव की जटाओं से होते हुए राजा भगीरथ के पीछे-पीछे उनके पुरखों के उद्धार के लिए चल पड़ी. जब मां गंगा हरिद्वार पहुंची तो सगर पौत्रों के भस्म अवशेष को स्पर्श करते ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो गयी. मान्यता है कि गंगा स्नान से मनुष्य के सारे पाप और अस्थि विसर्जन से मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए धर्मनगरी हरिद्वार और तीर्थनगरी ऋषिकेश में रोजाना देश-विदेश से सैकड़ों सैलानी पहुंचते हैं.