उत्तरकाशीः मोरी ब्लॉक के आराकोट बंगाण क्षेत्र में आई आपदा को तीन साल होने जा रहे हैं. इसके बावजूद आपदाग्रस्त क्षेत्र में अभी तक सड़क, पुल समेत अन्य व्यवस्थाएं पटरी पर नहीं आ पाई हैं. इस घाटी से एक वीडियो सामने आया है. वीडियो में एक युवक आपदा में ध्वस्त झूला पुल के अवशेष तारों के ऊपर रेंगकर उफनती नदी को पार कर रहा है. जिसे देख लोगों के रौंगटे खड़े हो रहे हैं. स्थानीय लोगों ने शासन प्रशासन पर अनदेखी का आरोप लगाया है.
साल 2019 की आपदा में बंगाण क्षेत्र में भारी नुकसान हुआ था. जिसमें कई पुल, पैदल रास्ते ध्वस्त होने के बाद स्थानीय प्रशासन ने वैकल्पिक इंतजाम किए थे. टिकोची के सामने खड्ड (बरसाती नदी) के पार करीब सात परिवार रहते हैं. आपदा में झूला पुल टूटने के बाद इन परिवारों के लिए खड्ड पर ट्रॉली लगाई गई थी, लेकिन यह कामयाब नहीं हो पाई. यह परिवार खड्ड में झूल रहे टूटे पुल के तारों पर चढ़कर नदी पार करते हैं.
ये भी पढ़ेंः उत्तरकाशी आपदाः 'मौत' के चुंगल से कैसे बच निकले थे राजेंद्र चौहान, सुनिए आपबीती...
सामाजिक कार्यकर्ता मनमोहन चौहान (Social Worker Manmohan Singh Chauhan) ने बताया कि टिकोची खड्ड पर लगाई गई ट्रॉली इतनी भारी है कि उसे खींचने के लिए कम से कम पांच लोगों की जरूरत होती है. बंगाण क्षेत्र में आपदा के तीन साल बाद भी लोगों की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. खंयाडू खड्ड पर बने दुचाणु किराणू मोटर मार्ग का पुल बहने के बाद वहां कॉजवे का निर्माण किया गया था.
उन्होंने बताया कि बरसात में खड्ड के उफान पर होने के कारण दुचाणू किराणू क्षेत्र के लोगों की आवाजाही बंद हो गई है. ऐसे में काश्तकार सेब की फसल को मंडियों तक नहीं पहुंचा पाते हैं. जबकि, पूरे प्रखंड में बंगाण क्षेत्र में सबसे अधिक सेब का उत्पादन होता है. अब सेब का सीजन सिर पर है, लेकिन सड़कों और पुलों का पुनर्निर्माण नहीं हो पाया है.
साल 2019 में आई थी भीषण आपदा: गौर हो कि 18 अगस्त 2019 को आराकोट बंगाण के कोठीगाड़ क्षेत्र में बादल फटने से भारी तबाही मची थी. जिसमें 20 लोग काल के गाल में समा गए थे. जबकि, कई घर जमींदोज हो गए थे. चिंवा, टिकोची, आराकोट और सनैल कस्बों में भारी मात्रा में मलबा आ गया था. इस आपदा में कोठीगाड़ पट्टी के माकुड़ी, डगोली, बरनाली, मलाना, गोकुल, धारा, झोटाड़ी, किराणू, जागटा, चिंवा, मौंडा, ब्लावट आदि गांवों में कृषि बागवानी तबाह हो गई थी. काश्तकारों की कई हेक्टेयर कृषि भूमि और सेब की फसल आपदा की भेंट चढ़ गई थी. कई मोटर मार्ग, पेयजल योजनाएं, पुल, अस्पताल, स्कूल आदि बह गए थे.
रेस्क्यू में दो हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त: इस दौरान संचार सुविधा की काफी कमी महसूस हुई थी. ग्रामीणों ने आपदा की जानकारी हिमाचल के नेटवर्क के जरिए दी थी. रेस्क्यू के दौरान कई हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त घाटी में राहत और बचाव कार्य में जुटे थे. वहीं, दो हेलीकॉप्टर भी हादसे का शिकार हो गए थे. 21 अगस्त को पहले हेलीकॉप्टर हादसे में पायलट समेत तीन लोगों की जान गई थी. जबकि, 23 अगस्त को दूसरे हेलीकॉप्टर की आपात लैंडिंग करानी पड़ी थी. हालांकि, इस आपात लैंडिंग में कोई जनहानि नहीं हुई थी, लेकिन हेलीकॉप्टर को नुकसान पहुंचा था.
ये भी पढ़ेंः चिट्ठी-पत्री का नहीं आया जवाब, सीमांत गांवों को बस हिमाचल का 'सहारा'
सेब उत्पादन में विशेष पहचान: उत्तरकाशी जिले में 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. जिसमें सबसे ज्यादा आराकोट बंगाण में होता है. यह घाटी फल पट्टी के रूप में जानी जाती है. यहां रॉयल डिलीसियस, रेड चीफ, स्पर, रेड गोल्डन, गोल्डन, हाईडेंसिटी के रूट स्टॉक आदि वैरायटी के सेब की पैदावार होती है. इसके अलावा नाशपाती, आड़ू, पूलम, खुबानी की खेती भी होती है. वहीं, तब तत्कालीन जिलाधिकारी आशीष चौहान ने एक महीने तक आराकोट में कैंप कर युद्धस्तर पर क्षेत्र में कार्य कर वैकल्पिक व्यवस्था सुचारू की थी. इस आपदा को तीन साल होने जा रहे हैं, लेकिन अभी भी व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं हो पाई हैं.