उत्तरकाशी: कश्मीर के केसर के बाद अब हर्षिल घाटी और टकनौर क्षेत्र में कश्मीर के लैवेंडर के फूलों की खुशबू से भी महकने लगी है. कृषि विभाग ने हर्षिल घाटी के तीन गांव सहित निचला टकनौर पट्टी के दो गांवों में काश्तकारों को ट्रायल के तौर पर कश्मीर के लैवेंडर के पौध बांटे थे. जिससे सात महीने में ही करीब 8 किलो लैवेंडर के फूलों का उत्पादन हुआ है.
लैवेंडर की खेती का ट्रायल: पिछले साल दिसंबर माह में कृषि विभाग ने जिला योजना से लैवेंडर की खेती के ट्रायल की योजना बनाई थी. जिसके तहत हर्षिल घाटी के मुखबा, झाला व सुक्की तथा निचला टकनौर के नटीण व गोरशाली गांव में ट्रायल के लिए 70 काश्तकारों को कश्मीर से मंगाए गए लैवेंडर के 32 हजार पौध बांटे गए थे. सात महीने के अंदर ही यहां लैवेंडर की खेती के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं.
काश्तकारों ने की खेती: जिससे काश्तकारों के साथ कृषि विभाग उत्साहित है. लैवेंडर की खेती करने वाले नटीण गांव प्रधान महेंद्र पोखरियाल ने बताया कि उन्होंने करीब ट्रायल के दौर पर उन्होंने 2 से 3 नाली जमीन पर लैवेंडर की खेती की थी, जिसमें अभी 50 प्रतिशत तक अच्छी फ्लावरिंग हो गई है. बता दें कि पिछले वर्ष हर्षिल घाटी में कश्मीर के केसर की खेती का ट्रायल भी सफल रहा था.
1400 रुपए प्रति किलो है लैवेंडर के फूल: लैवेंडर के फूलों का इस्तेमाल विशेष रूप से परफ्यूम और रूम फ्रेशनर के निर्माण में होता है. साथ ही बाम, औषधि, सौंदर्य प्रसाधन सामग्री में भी इसका इस्तेमाल होता है. इसके फूल 700 से 1400 रुपए प्रति किलो तक बिकते हैं. जबकि इसका तेल 2350 रुपए प्रति किलो तक बिकता है.
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बायो फेंसिंग का भी करेगी काम: मुख्य कृषि अधिकारी जेपी तिवारी ने बताया कि लैवेंडर की पौध बायो फेंसिंग का भी काम करेगी. जिससे खेती को नुकसान पहुंचाने वाले जंगली जानवर भी दूर रहेंगे. वहीं काश्तकारों बाढ़ के रूप में भी इसकी खेती कर कमाई कर सकेंगे. कहा कि हर्षिल व टकनौर क्षेत्र में लैवेंडर की खेती का ट्रायल सफल हुआ है. सात महीने में करीब 7 से 8 किलो तक लैवेंडर के फूलों का उत्पादन हुआ है. इससे काश्तकारों को खेती का विकल्प मिलने के साथ क्षेत्र में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा.