उत्तरकाशी: गंगोत्री धाम के तपोवन कुटी के स्वामी सुंदरानंद महराज बुधवार देर रात अपना शरीर छोड़ ब्रह्मलीन हो गए हैं. गुरुवार देर रात तक उनका पार्थिव शरीर उत्तरकाशी पहुंचेगा. शुक्रवार को तपोवन कुटी के समीप ही उनको समाधि दी जाएगी. स्वामी सुंदरानंद महाराज के ब्रह्मलीन होने पर सूबे के सीएम त्रिवेंद्र रावत ने भी दुःख प्रकट करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी है.
बता दें कि, उच्च हिमालयी क्षेत्र को गंगोत्री ग्लेशियर से लेकर बदरीनाथ घाटी तक अगर करीब से किसी ने जाना है तो वह हैं गंगोत्री धाम के तपोवन कुटी के स्वामी सुंदरानंद जी. जिन्हें हिमालय का प्रसिद्ध फोटोग्राफर कहा जाता है. साथ ही भारत-चीन युद्ध 1962 के दौरान उन्होंने भारतीय सेना की भी उच्च हिमालयी क्षेत्रो में रेकी के दौरान गाइड बनकर देश की सेवा की.
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हिमालय के विशेषज्ञ फोटोग्राफर कहे जाने वाले गंगोत्री के प्रमुख संत स्वामी सुन्दरानन्द जी ने अपना शरीर त्याग दिया है। स्वामी जी के जीवन से भविष्य की पीढ़ियों को प्रकृति प्रेम की प्रेरणा मिलती रहेगी। ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दे।
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ॐ शांति। pic.twitter.com/LNnDmgL46F
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वहीं, तपोवन कुटी और स्वामी सुंदरानंद जी के शिष्य मुखबा निवासी अनिल नौटियाल ने बताया कि, स्वामी जी दो दिन पूर्व ही देहरादून में एक परिचित के घर पर रुके थे. जहां पर उन्होंने शरीर त्याग कर ब्रह्मलीन हुए. गुरुवार शाम को स्वामी सुंदरानंद का पार्थिव शरीर उत्तरकाशी पहुंचेगा, जहां पर उजेली स्थित तपोवन कुटी में उनके अंतिम दर्शन के बाद शुक्रवार को गंगोत्री धाम में उनकी कुटिया के समीप ही समाधि दी जाएगी.
स्वामी सुंदरानंद महाराज 1947 में गंगोत्री से आगे तपोवन पहुंचे, जहां पर उन्होंने आध्यत्मिक दीक्षा ली और उसके बाद निकल पड़े उच्च हिमालयी क्षेत्र को करीब से जानने. 25 रुपये के खरीदे कैमरे से उन्होंने हिमालय की फोटोग्राफी शुरू की और आज भी उनकी खींची गई हिमालय की विलक्षण फ़ोटो गंगोत्री स्तिथ तपोवन हिरण्यगर्भ कलादीर्घा में मौजूद हैं, जो शायद ही आज कहीं देखने को मिले.
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वहीं, गत वर्ष सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गंगोत्री धाम पहुंच कर स्वामी सुंदरानंद महाराज के हिमालय की दुर्लभ और विलक्षण फ़ोटो संग्रह केंद्र तपोवन हिरण्यगर्भ कलादीर्घा का लोकापर्ण किया था. स्वामी सुंदरानंद की विलक्षण फ़ोटो में हिमालय और उस विकट जीवन को देखकर महसूस किया जा सकता है. जिसकी परिकल्पना अकल्पनीय है. साथ ही वर्ष 1962 भारत-चीन युद्ध के समय भी स्वामी सुंदरानंद महाराज ने बदरीनाथ से भारतीय सेना के गाइड के रूप में सेना को उच्च हिमालय क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रेकी करवाई थी और सेना के जवानों को सुरक्षित लेकर वापस कैम्प में लौटे थे.