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उत्तराखंड: गोर्खाली समाज का छलका दर्द, कहा- क्या हमें नहीं है जीने का हक?

पीढ़ी दर पीढ़ी उत्तरकाशी में रहने वाले गोर्खाली समाज के लोगों ने प्रशासन पर अनदेखी का आरोप लगाया है. इनका कहना है कि महामारी के इस संकट में जब इन पर रोजी-रोटी पर संकट मंडरा रहा है तो प्रशासन भी हमारे साथ भेदभाव कर रहा है.

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गोर्खाली समाज का छल्का दर्द
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Published : Apr 10, 2020, 5:25 PM IST

Updated : Apr 10, 2020, 9:00 PM IST

उत्तरकाशी: पीढ़ी दर पीढ़ी पूरा जीवन यहां कट रहा है, आधार कार्ड भी बन गया, वोटर कार्ड भी बना, लेकिन आज भी हर सुविधाओं से हम वंचित हैं. विदेशी बोलकर कोई भी सहायता नहीं की जा रही है. ये हम नहीं बल्कि उत्तरकाशी जनपद में रहने वाले वह नेपाली मूल के गोर्खाली समुदाय के मजदूर कह रहे हैं. जिन पर कोरोना महामारी के चलते आज रोजी-रोटी पर भारी संकट मंडरा रहा है.

नेपाली मूल के मजदूरों का कहना है कि यह भेदभाव आज ही नहीं बल्कि वर्षों से उनके साथ हो रहा है. जनपद में आई आपदाओं और विषम परिस्थितियों में हमेशा ही उनकी अनदेखी की गई है. जबकि वह वर्षों से स्थानीय लोगों के सुख-दुख के भागीदार रहे हैं. वहीं इन गोर्खाली लोगों का कहना है कि क्या हम इंसान नहीं हैं, क्या हमें जीने का हक नहीं है?

गोर्खाली समाज का छल्का दर्द

वर्षों से गंगोरी में रह रहे नेपाली मूल के बुजुर्ग नन्दराम जोशी का कहना है कि 1991 का भूकम्प हो या वर्ष 2012-13 की बाढ़. दुसरे लोगों की तरह हमने भी हर तरह की आपदा झेली. लेकिन, हर बार विदेशी बोलकर उनकी अनदेखी की गई. जबकि पीढ़ी दर पीढ़ी काटने के बाद आज उनके पास भारत का आधार कार्ड से लेकर वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड भी बना हुआ है. लेकिन कोई भी हमे भारतीय मानने को तैयार नही. जोशी का कहना है कि कोरोना की महामारी ने उनका रोजगार छीन लिया. अब ऐसी स्थिति में अपने बेबस परिवार को लेकर जाएं भी तो जाएं कहां?

ये भी पढ़े: लॉकडाउन में प्रकृति का बदल रहा स्वरूप, हैरान कर देने वाले आंकड़े आये सामने

गंगोरी में ही रह रही नेपाली मूल की महिला मजदूर सपना कहती है कि आज उन्हें कहीं भी मजदूरी करने को नहीं मिल प् रही है. ऐसे में घर में न तो राशन है ना तो बच्चो को खिलाने और पढ़ाने के लिए कोई साधन. वे यहां वर्षों से रह रही है. तब भी उन्हें विदेशी कहा जा रहा है.

नेपाली मूल के इन मजदूरों का आरोप है कि उन्हें आज हर प्रकार की मदद से दूर रखा जा रहा है. साथ ही प्रशासन की मजदूरों की सूची से भी इन्हें बाहर रखा जा रहा है.

उत्तरकाशी: पीढ़ी दर पीढ़ी पूरा जीवन यहां कट रहा है, आधार कार्ड भी बन गया, वोटर कार्ड भी बना, लेकिन आज भी हर सुविधाओं से हम वंचित हैं. विदेशी बोलकर कोई भी सहायता नहीं की जा रही है. ये हम नहीं बल्कि उत्तरकाशी जनपद में रहने वाले वह नेपाली मूल के गोर्खाली समुदाय के मजदूर कह रहे हैं. जिन पर कोरोना महामारी के चलते आज रोजी-रोटी पर भारी संकट मंडरा रहा है.

नेपाली मूल के मजदूरों का कहना है कि यह भेदभाव आज ही नहीं बल्कि वर्षों से उनके साथ हो रहा है. जनपद में आई आपदाओं और विषम परिस्थितियों में हमेशा ही उनकी अनदेखी की गई है. जबकि वह वर्षों से स्थानीय लोगों के सुख-दुख के भागीदार रहे हैं. वहीं इन गोर्खाली लोगों का कहना है कि क्या हम इंसान नहीं हैं, क्या हमें जीने का हक नहीं है?

गोर्खाली समाज का छल्का दर्द

वर्षों से गंगोरी में रह रहे नेपाली मूल के बुजुर्ग नन्दराम जोशी का कहना है कि 1991 का भूकम्प हो या वर्ष 2012-13 की बाढ़. दुसरे लोगों की तरह हमने भी हर तरह की आपदा झेली. लेकिन, हर बार विदेशी बोलकर उनकी अनदेखी की गई. जबकि पीढ़ी दर पीढ़ी काटने के बाद आज उनके पास भारत का आधार कार्ड से लेकर वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड भी बना हुआ है. लेकिन कोई भी हमे भारतीय मानने को तैयार नही. जोशी का कहना है कि कोरोना की महामारी ने उनका रोजगार छीन लिया. अब ऐसी स्थिति में अपने बेबस परिवार को लेकर जाएं भी तो जाएं कहां?

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गंगोरी में ही रह रही नेपाली मूल की महिला मजदूर सपना कहती है कि आज उन्हें कहीं भी मजदूरी करने को नहीं मिल प् रही है. ऐसे में घर में न तो राशन है ना तो बच्चो को खिलाने और पढ़ाने के लिए कोई साधन. वे यहां वर्षों से रह रही है. तब भी उन्हें विदेशी कहा जा रहा है.

नेपाली मूल के इन मजदूरों का आरोप है कि उन्हें आज हर प्रकार की मदद से दूर रखा जा रहा है. साथ ही प्रशासन की मजदूरों की सूची से भी इन्हें बाहर रखा जा रहा है.

Last Updated : Apr 10, 2020, 9:00 PM IST
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