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आधुनिकता की दौड़ में दम तोड़ रहा हस्तशिल्प का व्यवसाय, नहीं मिल रहे कला के कद्रदान

पुरोला विकासखंड में आज भी कई गांव के शिल्पकार पत्थरों की नक्काशी कर अपनी आजीविका चलाते हैं. लेकिन सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया, जिससे नई पीढ़ी का इस अमूल्य कला से मोह भंग होता जा रहा है.

stone artists
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Published : Nov 17, 2021, 9:27 AM IST

Updated : Nov 17, 2021, 10:58 AM IST

उत्तरकाशी: रवाईं घाटी का उत्तराखंड के इतिहास में अपनी सांस्कृतिक परंपरा और विरासत का एक विशेष स्थान है. ऐसी ही पुरोला विकासखंड में आज भी कई गांव के शिल्पी पत्थरों की नक्काशी कर अपनी आजीविका चलाते हैं. लेकिन आज आधुनिकता और प्रचार-प्रसार की कमी के कारण यह समृद्ध आजीविका का स्रोत दम तोड़ रहा है. वहीं हस्त शिल्पियों का कहना है कि समय के साथ भवनों के बदलते स्वरूप ने भी पुरोला के इस व्यवसाय को काफी हद तक प्रभावित किया है.

आधुनिकता की मार: उत्तरकाशी के पुरोला विकासखंड के मुख्यत श्रीकोट, चपटाड़ी, बड़ाई गांव, धामपुर, सरनोल, बजलाडी, आदि गांव में पूरा गांव पत्थरों की नक्काशी काष्ठकला का कार्य करते हैं.यह शिल्पकार जांदरे (हथचक्की), सिलबट्टे, छोटे-छोटे पत्थर की मूर्तियां सहित मंदिरों और भवनों पर पत्थर की नक्काशी का कार्य करते हैं.

आधुनिकता की दौड़ में दम तोड़ रहा हस्तशिल्प का व्यवसाय.

गहराया आर्थिकी का संकट: श्रीकोट गांव के 75 वर्षीय शिल्पकार का कहना है कि एक समय पर जब पहाड़ों में हर स्थान पर पत्थरों और मिट्टी के भवन बनते थे, उस समय उनके गांव और आसपास के गांव के शिल्पकारों की बहुत मांग होती थी. साथ ही जांदरों और सिलबट्टे का भी क्षेत्रीय बाजार था. लेकिन आज अगर मंदिरों में कहीं काम मिल गया तो ठीक, लेकिन उसके अलावा कहीं भी अब इन काष्ठकला के शिल्पकारों के लिए बाजार उपलब्ध नहीं रह गया है. जिससे उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है.

पढ़ें: बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू, आज बंद होंगे केदारेश्वर मंदिर के द्वार

विरासत को संजोए रखने की जरूरत: श्रीकोट गांव के दिनेश खत्री का कहना है कि उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इस कार्य को कर रहा है. रोजगार के नाम पर कभी-कभार एक मूर्ति और सिलबट्टे बिक जाते हैं. लेकिन आज तक सरकार ने इस समृद्ध विरासत को संजोए रखने के लिए कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया है. जिससे अब नई पीढ़ी का इस अमूल्य कला से मोह भंग होता जा रहा है.

उत्तरकाशी: रवाईं घाटी का उत्तराखंड के इतिहास में अपनी सांस्कृतिक परंपरा और विरासत का एक विशेष स्थान है. ऐसी ही पुरोला विकासखंड में आज भी कई गांव के शिल्पी पत्थरों की नक्काशी कर अपनी आजीविका चलाते हैं. लेकिन आज आधुनिकता और प्रचार-प्रसार की कमी के कारण यह समृद्ध आजीविका का स्रोत दम तोड़ रहा है. वहीं हस्त शिल्पियों का कहना है कि समय के साथ भवनों के बदलते स्वरूप ने भी पुरोला के इस व्यवसाय को काफी हद तक प्रभावित किया है.

आधुनिकता की मार: उत्तरकाशी के पुरोला विकासखंड के मुख्यत श्रीकोट, चपटाड़ी, बड़ाई गांव, धामपुर, सरनोल, बजलाडी, आदि गांव में पूरा गांव पत्थरों की नक्काशी काष्ठकला का कार्य करते हैं.यह शिल्पकार जांदरे (हथचक्की), सिलबट्टे, छोटे-छोटे पत्थर की मूर्तियां सहित मंदिरों और भवनों पर पत्थर की नक्काशी का कार्य करते हैं.

आधुनिकता की दौड़ में दम तोड़ रहा हस्तशिल्प का व्यवसाय.

गहराया आर्थिकी का संकट: श्रीकोट गांव के 75 वर्षीय शिल्पकार का कहना है कि एक समय पर जब पहाड़ों में हर स्थान पर पत्थरों और मिट्टी के भवन बनते थे, उस समय उनके गांव और आसपास के गांव के शिल्पकारों की बहुत मांग होती थी. साथ ही जांदरों और सिलबट्टे का भी क्षेत्रीय बाजार था. लेकिन आज अगर मंदिरों में कहीं काम मिल गया तो ठीक, लेकिन उसके अलावा कहीं भी अब इन काष्ठकला के शिल्पकारों के लिए बाजार उपलब्ध नहीं रह गया है. जिससे उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है.

पढ़ें: बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू, आज बंद होंगे केदारेश्वर मंदिर के द्वार

विरासत को संजोए रखने की जरूरत: श्रीकोट गांव के दिनेश खत्री का कहना है कि उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इस कार्य को कर रहा है. रोजगार के नाम पर कभी-कभार एक मूर्ति और सिलबट्टे बिक जाते हैं. लेकिन आज तक सरकार ने इस समृद्ध विरासत को संजोए रखने के लिए कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया है. जिससे अब नई पीढ़ी का इस अमूल्य कला से मोह भंग होता जा रहा है.

Last Updated : Nov 17, 2021, 10:58 AM IST
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