ETV Bharat / state

उत्तरकाशी एवलॉन्च: बच सकती थी 29 पर्वतारोहियों की जान, बड़े 'सिग्नल' को किया गया नजरअंदाज!

उत्तरकाशी जनपद के द्रौपदी का डांडा 2 (Draupadi ka Danda II) में हुए एवलॉन्च त्रासदी में मारे गए सभी 29 गए पर्वतारोहियों के परिजनों ने NIM को इस हादसे के लिए जिम्मेदार ठहराया है. परिजनों का आरोप है कि जब केदारनाथ सहित कई स्थानों पर एवलॉन्च आने की जानकारी थी तो भूकंप आने के दो दिन बाद शुरू होने वाले इस अभियान को क्यों नहीं रोका गया? जानें पूरी खबर...

Uttarkashi Avalanche
उत्तरकाशी
author img

By

Published : Oct 11, 2022, 5:09 PM IST

Updated : Oct 12, 2022, 1:44 PM IST

उत्तरकाशी: द्रौपदी का डांडा 2 (Draupadi ka Danda II) एवलॉन्च की चपेट में आने से मृत 29 पर्वतारोहियों के परिजनों ने घटना के लिए नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (Nehru Institute of Mountaineering) को जिम्मेदार ठहराया है. परिजनों ने निम के समक्ष कड़ा आक्रोश जताया है. परिजनों का कहना है कि जब केदारनाथ सहित कई स्थानों पर एवलॉन्च आने की जानकारी थी और इसके साथ ही भूकंप जैसी मामूली गड़बड़ी भी बड़े पैमाने पर आपदाएं पैदा कर सकती हैं. इन सब की जानकारी होने के बाद भी अभियान को रोका क्यों नहीं गया?

इस हिमस्खलन हादसे ने कई परिवारों से उनके चिराग छीने हैं. हिमाचल प्रदेश के नारकंडा गांव का कैंथला परिवार भी इनमें से एक है. इस परिवार पर तो एक के बाद एक दुखों का पहाड़ टूटा है. हादसे में जान गंवाने वाले गांव के एक बेटे की चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि अगले दिन ही गांव के एक और बेटे का शव पहुंच गया. इसी परिवार के संतोष कैंथला का कहना है कि, उनका पूरा परिवार पीढ़ियों से साहसिक खेलों के क्षेत्र में है. इसलिए वो इनमें शामिल जोखिमों को अच्छी तरह से समझते हैं. हालांकि, यह NIM की लापरवाही को कम नहीं कर सकता. हिमालय बहुत नाजुक है और यहां तक ​​​​कि भूकंप जैसी मामूली गड़बड़ी भी बड़े पैमाने पर आपदाएं पैदा कर सकती है.
इसे भी पढ़ें- उत्तरकाशी एवलॉन्च: जिन पहाड़ों ने देश दुनिया में फैलाया नाम, उन्हीं ने ली सविता और नवमी की जान

दरअसल, अभियान से ठीक दो दिन पहले उत्तरकाशी क्षेत्र में 2.5 तीव्रता का भूकंप (Uttarkashi Earthquake) आया था. यह बहुत मामूली लग सकता है, लेकिन ताजा बर्फ की परत को तोड़ने के लिए पर्याप्त था. सुरक्षा उपायों के अनुसार, भूकंप के बाद पर्वतारोहण गतिविधियों को कुछ दिनों के लिए स्थगित करना चाहिए. लेकिन निम (Nehru Institute of Mountaineering) ने ऐसी कोई सावधानी नहीं बरती और बड़ी संख्या में पर्वतारोहियों के साथ पहाड़ों पर गए, जिससे पहले से ही ढीली बर्फ की सतह पर अतिरिक्त दबाव पड़ा.

Uttarkashi Avalanche
उत्तरकाशी में रेस्क्यू ऑपरेशन.

लापता पर्वतारोही अतनु धर के बचपन के दोस्त हिमांशु ने कहा कि उत्तरकाशी के स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि अभियान से दो दिन पहले 2 अक्टूबर को भूकंप आया था. इसके अलावा, द्रौपदी का डांडा में भी बर्फबारी हो रही थी. उन्होंने इस संबंध में कई पेशेवर पर्वतारोहियों से बात की. उन सभी ने बताया कि भूकंप की गतिविधियां पास की पर्वत श्रृंखलाओं की बर्फ की सतह पर प्रभाव डालती हैं, खासकर अगर ताजा बर्फ हो. लेकिन निम ने इन सभी संकेतों की अनदेखी की और अभियान चलाया, जो अंततः आपदा का कारण बना.
पढ़ें- उत्तरकाशी एवलॉन्च: पूरे देश को लगा झटका, बुझ गए कई घरों के चिराग, अपनों की लाशें थाम रहे थे कांपते हाथ

बता दें कि, द्रौपदी का डांडा सबसे सुरक्षित पर्वतों में से एक है. इस जगह पर हिमस्खलन का कोई इतिहास नहीं था, लेकिन भूकंप के ठीक दो दिन बाद ही इस जगह पर हिमस्खलन शुरू हो गया. एक आम आदमी भी समझ सकता है कि यह पर्वतारोहियों की भीड़ के कारण था, जिन्होंने बर्फ की सतह पर अतिरिक्त दबाव डाला, जो पहले से ही सदमे की लहरों के कारण ढीली हो गई थी.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक: वहीं, उत्तरकाशी में आए इस विनाशकारी हिमस्खलन के बाद उठे सवालों को लेकर ईटीवी भारत ने वैज्ञानिकों से बात की. देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट के पूर्व वैज्ञानिक और हिमालय पर लंबे समय तक शोध करने वाले डीपी डोभाल कहते हैं कि, उन्होंने देखा है कि बीते दिनों केदारनाथ हो या नेपाल, यहां के कई क्षेत्रों में इस तरह के हिमस्खलन हुए हैं. ऐसे में हिमालय क्षेत्रों में अगर हल्का सा भी भूकंप आएगा तो हिमस्खलन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

Uttarkashi Avalanche
हादसे के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन.

डोभाल कहते हैं, ऐसा नहीं है कि हिमस्खलन सिर्फ भूकंप की वजह से ही होता है, तापमान में आई तेजी भी इसकी वजह बनती है. पहाड़ों पर जैसे ही धूप अधिक होती है तो बर्फ के पहाड़ पिघलते हैं और ऐसे में या तो ये पानी के रूप में या फिर बर्फ की बर्फ नीचे की तरफ तेजी से आती है. उत्तरकाशी में क्या हुआ ये तो यही से सामने नहीं आ सका है लेकिन हिमस्खलन अगर हो रहे थे और इस बात की जानकारी थी कि इस क्षेत्र में भूकंप आए हैं तो संबंधित लोगों को इसमें सावधानी बरतनी चाहिए थी. वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने बताया कि एक महीने का डाटा भी कहता है कि लगभग इस क्षेत्र में 4 से 5 भूकंप के छोटे बड़े झटके इस क्षेत्र में आए हैं. वहीं, इस तरह से बर्फ के पहाड़ हों तो अत्यधिक रिस्क नहीं लेना चाहिए.

सिलसिलेवार जानिए घटनाक्रम

  1. 4 अक्टूबर को करीब पौने नौ बजे एवलॉन्च की चपेट में आए प्रशिक्षु पर्वतारोही और प्रशिक्षक.
  2. 4 अक्टूबर को ही फर्स्ट रिस्पांडर ने 4 शव बरामद किए.
  3. 5 अक्टूबर को 42 पर्वतारोहियों में से 13 को बचाया गया.
  4. 6 अक्टूबर को रेस्क्यू दल घटनास्थल पर पहुंचा और 15 शव बरामद किए.
  5. 7 अक्टूबर को रेस्क्यू दल ने 7 और शव बरामद किए. घटना के दिन बरामद चार शवों को उत्तरकाशी पहुंचाया गया.
  6. 8 अक्टूबर को 7 शवों को एडवांस बेस कैंप से मातली हेलीपैड पहुंचाया गया. वहीं, रेस्क्यू दल ने घटना स्थल से एक और शव बरामद किया.
  7. 9 अक्टूबर को 10 शव सेना के हेलीकॉप्टर से मातली लाए गए.
  8. अब तक 26 शव परिजनों को सौंप जा चुके हैं.
  9. मौसम खराब होने की वजह से एक शव एडवांस बेस कैंप (डोकरानी बामक ग्लेशियर क्षेत्र) में ही है.
  10. वहीं, 2 पर्वतारोही अभी भी लापता हैं.
  11. बर्फबारी और खराब मौसम की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन रोका गया है.

उत्तरकाशी: द्रौपदी का डांडा 2 (Draupadi ka Danda II) एवलॉन्च की चपेट में आने से मृत 29 पर्वतारोहियों के परिजनों ने घटना के लिए नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (Nehru Institute of Mountaineering) को जिम्मेदार ठहराया है. परिजनों ने निम के समक्ष कड़ा आक्रोश जताया है. परिजनों का कहना है कि जब केदारनाथ सहित कई स्थानों पर एवलॉन्च आने की जानकारी थी और इसके साथ ही भूकंप जैसी मामूली गड़बड़ी भी बड़े पैमाने पर आपदाएं पैदा कर सकती हैं. इन सब की जानकारी होने के बाद भी अभियान को रोका क्यों नहीं गया?

इस हिमस्खलन हादसे ने कई परिवारों से उनके चिराग छीने हैं. हिमाचल प्रदेश के नारकंडा गांव का कैंथला परिवार भी इनमें से एक है. इस परिवार पर तो एक के बाद एक दुखों का पहाड़ टूटा है. हादसे में जान गंवाने वाले गांव के एक बेटे की चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि अगले दिन ही गांव के एक और बेटे का शव पहुंच गया. इसी परिवार के संतोष कैंथला का कहना है कि, उनका पूरा परिवार पीढ़ियों से साहसिक खेलों के क्षेत्र में है. इसलिए वो इनमें शामिल जोखिमों को अच्छी तरह से समझते हैं. हालांकि, यह NIM की लापरवाही को कम नहीं कर सकता. हिमालय बहुत नाजुक है और यहां तक ​​​​कि भूकंप जैसी मामूली गड़बड़ी भी बड़े पैमाने पर आपदाएं पैदा कर सकती है.
इसे भी पढ़ें- उत्तरकाशी एवलॉन्च: जिन पहाड़ों ने देश दुनिया में फैलाया नाम, उन्हीं ने ली सविता और नवमी की जान

दरअसल, अभियान से ठीक दो दिन पहले उत्तरकाशी क्षेत्र में 2.5 तीव्रता का भूकंप (Uttarkashi Earthquake) आया था. यह बहुत मामूली लग सकता है, लेकिन ताजा बर्फ की परत को तोड़ने के लिए पर्याप्त था. सुरक्षा उपायों के अनुसार, भूकंप के बाद पर्वतारोहण गतिविधियों को कुछ दिनों के लिए स्थगित करना चाहिए. लेकिन निम (Nehru Institute of Mountaineering) ने ऐसी कोई सावधानी नहीं बरती और बड़ी संख्या में पर्वतारोहियों के साथ पहाड़ों पर गए, जिससे पहले से ही ढीली बर्फ की सतह पर अतिरिक्त दबाव पड़ा.

Uttarkashi Avalanche
उत्तरकाशी में रेस्क्यू ऑपरेशन.

लापता पर्वतारोही अतनु धर के बचपन के दोस्त हिमांशु ने कहा कि उत्तरकाशी के स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि अभियान से दो दिन पहले 2 अक्टूबर को भूकंप आया था. इसके अलावा, द्रौपदी का डांडा में भी बर्फबारी हो रही थी. उन्होंने इस संबंध में कई पेशेवर पर्वतारोहियों से बात की. उन सभी ने बताया कि भूकंप की गतिविधियां पास की पर्वत श्रृंखलाओं की बर्फ की सतह पर प्रभाव डालती हैं, खासकर अगर ताजा बर्फ हो. लेकिन निम ने इन सभी संकेतों की अनदेखी की और अभियान चलाया, जो अंततः आपदा का कारण बना.
पढ़ें- उत्तरकाशी एवलॉन्च: पूरे देश को लगा झटका, बुझ गए कई घरों के चिराग, अपनों की लाशें थाम रहे थे कांपते हाथ

बता दें कि, द्रौपदी का डांडा सबसे सुरक्षित पर्वतों में से एक है. इस जगह पर हिमस्खलन का कोई इतिहास नहीं था, लेकिन भूकंप के ठीक दो दिन बाद ही इस जगह पर हिमस्खलन शुरू हो गया. एक आम आदमी भी समझ सकता है कि यह पर्वतारोहियों की भीड़ के कारण था, जिन्होंने बर्फ की सतह पर अतिरिक्त दबाव डाला, जो पहले से ही सदमे की लहरों के कारण ढीली हो गई थी.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक: वहीं, उत्तरकाशी में आए इस विनाशकारी हिमस्खलन के बाद उठे सवालों को लेकर ईटीवी भारत ने वैज्ञानिकों से बात की. देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट के पूर्व वैज्ञानिक और हिमालय पर लंबे समय तक शोध करने वाले डीपी डोभाल कहते हैं कि, उन्होंने देखा है कि बीते दिनों केदारनाथ हो या नेपाल, यहां के कई क्षेत्रों में इस तरह के हिमस्खलन हुए हैं. ऐसे में हिमालय क्षेत्रों में अगर हल्का सा भी भूकंप आएगा तो हिमस्खलन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

Uttarkashi Avalanche
हादसे के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन.

डोभाल कहते हैं, ऐसा नहीं है कि हिमस्खलन सिर्फ भूकंप की वजह से ही होता है, तापमान में आई तेजी भी इसकी वजह बनती है. पहाड़ों पर जैसे ही धूप अधिक होती है तो बर्फ के पहाड़ पिघलते हैं और ऐसे में या तो ये पानी के रूप में या फिर बर्फ की बर्फ नीचे की तरफ तेजी से आती है. उत्तरकाशी में क्या हुआ ये तो यही से सामने नहीं आ सका है लेकिन हिमस्खलन अगर हो रहे थे और इस बात की जानकारी थी कि इस क्षेत्र में भूकंप आए हैं तो संबंधित लोगों को इसमें सावधानी बरतनी चाहिए थी. वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने बताया कि एक महीने का डाटा भी कहता है कि लगभग इस क्षेत्र में 4 से 5 भूकंप के छोटे बड़े झटके इस क्षेत्र में आए हैं. वहीं, इस तरह से बर्फ के पहाड़ हों तो अत्यधिक रिस्क नहीं लेना चाहिए.

सिलसिलेवार जानिए घटनाक्रम

  1. 4 अक्टूबर को करीब पौने नौ बजे एवलॉन्च की चपेट में आए प्रशिक्षु पर्वतारोही और प्रशिक्षक.
  2. 4 अक्टूबर को ही फर्स्ट रिस्पांडर ने 4 शव बरामद किए.
  3. 5 अक्टूबर को 42 पर्वतारोहियों में से 13 को बचाया गया.
  4. 6 अक्टूबर को रेस्क्यू दल घटनास्थल पर पहुंचा और 15 शव बरामद किए.
  5. 7 अक्टूबर को रेस्क्यू दल ने 7 और शव बरामद किए. घटना के दिन बरामद चार शवों को उत्तरकाशी पहुंचाया गया.
  6. 8 अक्टूबर को 7 शवों को एडवांस बेस कैंप से मातली हेलीपैड पहुंचाया गया. वहीं, रेस्क्यू दल ने घटना स्थल से एक और शव बरामद किया.
  7. 9 अक्टूबर को 10 शव सेना के हेलीकॉप्टर से मातली लाए गए.
  8. अब तक 26 शव परिजनों को सौंप जा चुके हैं.
  9. मौसम खराब होने की वजह से एक शव एडवांस बेस कैंप (डोकरानी बामक ग्लेशियर क्षेत्र) में ही है.
  10. वहीं, 2 पर्वतारोही अभी भी लापता हैं.
  11. बर्फबारी और खराब मौसम की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन रोका गया है.
Last Updated : Oct 12, 2022, 1:44 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.