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नेलांग घाटी की खूबसूरती पर इनरलाइन बना 'धब्बा', आरोहण हो तो पर्यटन को लगेगा 'पंख'

उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी प्रकृति की हर सुंदरता को संजोए हुए हैं, लेकिन इनरलाइन की बाध्यताओं के कारण आज भी नेलांग घाटी की कई चोटियां ऐसी हैं. जो अभी तक आरोहण नहीं की गई है. वहीं, नेहरू पर्वतारोहण ने साहसिक पर्यटन के लिए इनरलाइन के गलियारे में दोबारा समीक्षा करने की बात की है.

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Published : Jul 22, 2019, 7:50 PM IST

उत्तरकाशीः भारत-तिब्बत बॉर्डर और गंगोत्री नेशनल पार्क के नेलांग घाटी की भौगोलिक संरचना काफी अद्भुत है. जो प्राकृतिक सौंदर्य और ऊंची-ऊंची चोटियों से भरी पड़ी है, लेकिन आज भी नेलांग घाटी की कई चोटियां ऐसी हैं, जिनका अभी तक आरोहण नहीं हो पाया है. इनरलाइन की वजह से ये खूबसूरत घाटी साहसिक पर्यटन से अछूता रह गया है. साथ ही पर्यटक भी इस घाटी की खूबसूरती का दीदार नहीं कर पा रहे हैं. वहीं, इस घाटी की मुम्बा पर्वत के आरोहण के बाद निम ने एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) से 30 से 40 किमी के इनरलाइन क्षेत्र में दोबारा समीक्षा करने का सुझाव दिया है.

भारत-तिब्बत बॉर्डर और गंगोत्री नेशनल पार्क के नेलांग घाटी में इनरलाइन से नहीं हो पा रहा साहसिक पर्यटन.

बता दें कि गंगोत्री नेशनल पार्क की नेलांग घाटी, भैरो घाटी से शुरू होकर भारत-तिब्बत अंतरराष्ट्रीय सीमा पर जाकर समाप्त होती है. इस घाटी में आज भी कई ऐसी चोटियां हैं, जो आम पर्वतारोही के आरोहण के लिए सुगम हैं, लेकिन आज भी इस घाटी की चोटियों का आरोहण नहीं हो पाया है. नेलांग घाटी में 5000 मीटर से लेकर 7000 मीटर की ऊंचाई की कई चोटियां हैं. जिनमें नागा पीक, जाडुंग पीक, त्रिमुखी पीक मुख्य है. इसमें से मात्र त्रिमुखी पीक का ही आरोहण हुआ है.

ये घाटी आज भी साहसिक पर्यटन से कोसो दूर है. इसकी सबसे बड़ी वजह है एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) से लेकर भैरो घाटी तक इनरलाइन की बाध्यताएं. जिसकी वजह से एक आम पर्वतारोही और ट्रैकर्स को इन पीक पर आरोहण के लिए सुरक्षा के दृष्टिकोण से अनुमति नहीं मिल पाती है. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए निम के अधिकारियों ने बताया कि इनरलाइन का गलियारा बड़ा होने के कारण आम पर्वतारोही को इनरलाइन की बाध्यताओं में जल्द छूट नहीं मिल पाती है.

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नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रधानाचार्य कर्नल अमित बिष्ट का कहना है कि नेलांग घाटी की चोटियों की ऊंचाई गंगोत्री घाटी की चोटियों से कम है. जिससे एक आम पर्वतारोही और ट्रैकर्स के लिए नेलांग घाटी की चोटियों का आरोहण काफी अनुकूल है. ऐसे में भारत-तिब्बत सीमा और इनरलाइन क्षेत्र के बीच का 30 से 40 किमी का एरिया है. उसे कम करने के लिए एक समीक्षा की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि नेलांग घाटी में साहसिक पर्यटन की अपार संभावनाएं है. जिससे उनके लिए एक नया आयाम सामने आ सके. बिष्ट का कहना है कि एक आम व्यक्ति जब नेलांग घाटी की चोटियों का आरोहण करेगा तो इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा.

उत्तरकाशीः भारत-तिब्बत बॉर्डर और गंगोत्री नेशनल पार्क के नेलांग घाटी की भौगोलिक संरचना काफी अद्भुत है. जो प्राकृतिक सौंदर्य और ऊंची-ऊंची चोटियों से भरी पड़ी है, लेकिन आज भी नेलांग घाटी की कई चोटियां ऐसी हैं, जिनका अभी तक आरोहण नहीं हो पाया है. इनरलाइन की वजह से ये खूबसूरत घाटी साहसिक पर्यटन से अछूता रह गया है. साथ ही पर्यटक भी इस घाटी की खूबसूरती का दीदार नहीं कर पा रहे हैं. वहीं, इस घाटी की मुम्बा पर्वत के आरोहण के बाद निम ने एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) से 30 से 40 किमी के इनरलाइन क्षेत्र में दोबारा समीक्षा करने का सुझाव दिया है.

भारत-तिब्बत बॉर्डर और गंगोत्री नेशनल पार्क के नेलांग घाटी में इनरलाइन से नहीं हो पा रहा साहसिक पर्यटन.

बता दें कि गंगोत्री नेशनल पार्क की नेलांग घाटी, भैरो घाटी से शुरू होकर भारत-तिब्बत अंतरराष्ट्रीय सीमा पर जाकर समाप्त होती है. इस घाटी में आज भी कई ऐसी चोटियां हैं, जो आम पर्वतारोही के आरोहण के लिए सुगम हैं, लेकिन आज भी इस घाटी की चोटियों का आरोहण नहीं हो पाया है. नेलांग घाटी में 5000 मीटर से लेकर 7000 मीटर की ऊंचाई की कई चोटियां हैं. जिनमें नागा पीक, जाडुंग पीक, त्रिमुखी पीक मुख्य है. इसमें से मात्र त्रिमुखी पीक का ही आरोहण हुआ है.

ये घाटी आज भी साहसिक पर्यटन से कोसो दूर है. इसकी सबसे बड़ी वजह है एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) से लेकर भैरो घाटी तक इनरलाइन की बाध्यताएं. जिसकी वजह से एक आम पर्वतारोही और ट्रैकर्स को इन पीक पर आरोहण के लिए सुरक्षा के दृष्टिकोण से अनुमति नहीं मिल पाती है. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए निम के अधिकारियों ने बताया कि इनरलाइन का गलियारा बड़ा होने के कारण आम पर्वतारोही को इनरलाइन की बाध्यताओं में जल्द छूट नहीं मिल पाती है.

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नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रधानाचार्य कर्नल अमित बिष्ट का कहना है कि नेलांग घाटी की चोटियों की ऊंचाई गंगोत्री घाटी की चोटियों से कम है. जिससे एक आम पर्वतारोही और ट्रैकर्स के लिए नेलांग घाटी की चोटियों का आरोहण काफी अनुकूल है. ऐसे में भारत-तिब्बत सीमा और इनरलाइन क्षेत्र के बीच का 30 से 40 किमी का एरिया है. उसे कम करने के लिए एक समीक्षा की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि नेलांग घाटी में साहसिक पर्यटन की अपार संभावनाएं है. जिससे उनके लिए एक नया आयाम सामने आ सके. बिष्ट का कहना है कि एक आम व्यक्ति जब नेलांग घाटी की चोटियों का आरोहण करेगा तो इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा.

Intro:उत्तरकाशी जनपद की नेलांग घाटी,जो प्रकृति की हर सुंदरता को अपने आप मे संजोए हुए है। लेकिन इनरलाइन की बाध्यताओं के कारण आज भी नेलांग घाटी की कई चोटियां ऐसी हैं। जो कि अभी आरोहण नहीं कि गई है। वहीं इसके लिए नेहरू पर्वतारोहण ने सुझाव दिया है कि साहसिक पर्यटन के लिए इनरलाइन के गलियारे में दोबारा समीक्षा होनी चाहिए। नोट- इस खबर के वीडियो मेल से भी भेजे गए हैं। उत्तरकाशी। गंगोत्री नेशनल पार्क का नेलांग घाटी का हिस्सा,जो कि भारत-तिब्बत बॉर्डर पर होने के कारण इसकी भौगोलिक सरचना अद्भुत है। यह अपने आप मे प्राकृतिक सौंदर्य और ऊंची-ऊंची चोटियों से भरा पड़ा है। लेकिन आज भी नेलांग घाटी की कई चोटियां ऐसी हैं। जिनका अभी तक आरोहण नहीं हो पाया है। उदाहरण के लिए घाटी की मुम्बा पर्वत,जिसका आरोहण शुक्रवार को नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की टीम ने पहली बार किया। निम का कहना है कि इनरलाइन का गलियारा बड़ा होने के कारण आम पर्वतारोही को जल्दी से इनरलाइन की बाध्यताओं में जल्दी से छूट नहीं मिल पाती। इसलिए नेलांग घाटी अभी भी साहसिक पर्यटन से अछूता है। निम ने एलएसी (लाइन ऑफ एकचुअल कंट्रोल) से 30 से 40 किमी के इनरलाइन क्षेत्र में दोबारा समीक्षा करने का सुझाव दिया है। etv bharat की स्पेशल रिपोर्ट।


Body:वीओ-1, गंगोत्री नेशनल पार्क की नेलांग घाटी, जो कि भैरो घाटी से शुरू होकर भारत तिब्बत अंतरराष्ट्रीय सीमा पर जाकर समाप्त होती है। इस घाटी में आज भी कई ऐसी चोटियां हैं। जो कि आम पर्वतारोही के आरोहण के लिए सुगम हैं। लेकिन आज भी इस घाटी की चोटियों का आरोहण नहीं हो पाया है। नेलांग घाटी में 5000 मीटर से लेकर 7000 मीटर की ऊंचाई की चोटियां है। जिनमे नागा पीक, जाडुंग पीक, त्रिमुखी पीक मुख्य है। इसमें से मात्र त्रिमुखी पीक का ही आरोहण हुआ है। यह घाटी में आज भी साहसिक पर्यटन से बहुत दूर है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि एलएसी से लेकर भैरो घाटी तक इनरलाइन की बाध्यताएं,जिस कारण एक आम पर्वतारोही या ट्रैकर्स को इन पीक पर आरोहण के लिए सुरक्षा के दृष्टिकोण से जल्दी से अनुमति नहीं मिलती है।


Conclusion:वीओ-2, नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रधानाचार्य कर्नल अमित बिष्ट का कहना है कि नेलांग घाटी की चोटियों की ऊंचाई गंगोत्री घाटी की चोटियों से कम होने पर एक आम पर्वतारोही या ट्रैकर्स के लिए नेलांग घाटी की चोटियों बहुत अनुकूल है। इसलिए भारत तिब्बत सीमा और इनरलाइन क्षेत्र के बीच का 30 से 40 किमी का एरिया है। उसको कम करने के लिए एक समीक्षा की आवश्यकता है। क्योंकि इससे नेलांग घाटी में साहसिक पर्यटन की अपार संभावनाएं है। उनके लिए एक नया आयाम सामने निकल कर आ सके। बिष्ट का कहना है कि एक आम भारतवासी जब नेलांग घाटी की चोटियों का आरोहण करेगा। तो इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। बाईट- कर्नल अमित बिष्ट,प्रधानाचार्य नेहरू पर्वतारोहण संस्थान।
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