उत्तरकाशीः 9 नवंबर को उत्तराखंड राज्य को बने 19 साल हो जाएंगे. कई सालों के संघर्ष और आंदोलन के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर पहाड़ी प्रदेश का गठन हुआ था. जिन हक-हकूकों के लिए प्रदेश की मांग की गई थी. वो आज भी राज्यवासियों को नहीं मिल पाया है. इसकी बानगी जिला मुख्यालय से महज 4 किमी की दूरी पर स्थित स्युना गांव में देखने को मिल रही है. यहां पर सरकार एक अदद सड़क और पुल नहीं बना पाई है. लिहाजा, ग्रामीण भागीरथी के ऊपर बने अस्थायी पुलिया के जरिए आवाजाही करने को मजबूर हैं.
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद कई तरह की राजनीतिक उठापटक हुई. कई सरकारें बदलीं, लेकिन धरातल की तस्वीरें तस की तस बनी हुई है. इतना ही नहीं सियासी गलियारों में विकास को लेकर कई दावे किए गए. ऐसे में भोली भाली जनता भी यकीन कर बैठी कि सुदूरवर्ती गांवों के अंतिम व्यक्ति तक विकास की किरण पहुंचेगी, लेकिन विडंबना तो देखिए जिला मुख्यालय से महज चार किमी की दूरी पर शासन-प्रशासन एक अदद सड़क और पुल नहीं बना सकी है तो दूरस्थ गावों में विकास की कल्पना कैसे कर सकते हैं. जो इस बात की तस्दीक के लिए काफी है कि आज भी कई गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित है.
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उत्तरकाशी के स्युना गांव के लोग 6 महीने तक विकट परिस्थितियों में जीवन जीते हैं. क्योंकि, इनका जीवन भागीरथी नदी के जलस्तर के घटने और बढ़ने पर ही सीमित रह गया है. बरसात के दौरान ऊपर से पहाड़ी से पत्थर गिरने का डर और नीचे भागीरथी के ऊफान में बहने का खतरा बना रहता है. सर्दियों में भागीरथी नदी का जलस्तर कम होता है तो ग्रामीण सड़क मार्ग से गांव की दूरी कम करने के लिए भागीरथी नदी के ऊपर लकड़ी का अस्थायी पुलिया का निर्माण करते हैं. जिस पर भी लगातार खतरा बना रहता है. ऐसे में सवाल उठना भी लाजिमी है कि शासन-प्रशासन सभी की नजरें इस गांव पर पड़ती है तो किसी को इन ग्रामीणों की परेशानी क्यों नहीं दिखाई देती है.