उत्तरकाशीः बीते 23 सितंबर को सतोपंथ चोटी के आरोहण के लिए गए भारतीय सेना के पर्वतारोहियों को वहां एक शव के अवशेष मिले थे. पर्वतारोही शव के अवशेषों को गंगोत्री लाये थे, जिसे सेना ने पुलिस के सुपुर्द किया था. उस शव के अवशेष की शिनाख्त हो गई है. भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल हर्षदीप गहलोत ने बताया कि शव की शिनाख्त आर्मी ऑर्डिनेंस कोर के पर्वतारोही नायक अमरीश त्यागी के रूप में हुई है. अमरीश त्यागी मुरादनगर गाजियाबाद के रहने वाले थे. पुलिस ने सेना को शव सौंप दिया है और अब पार्थिव शव जवान के घर के लिए रवाना कर दिया गया है.
बता दें कि साल 2005 में आर्मी ऑर्डिनेंस कोर का एक दल सतोपंथ चोटी के आरोहण के लिए गया. उस समय कुछ पर्वतारोही आरोहण के दौरान दुर्घटना का शिकार होकर लापता हो गए थे. रेस्क्यू के दौरान तीन सिपाहियों का शव निकाल लिया गया था, लेकिन अमरीश का शव नहीं मिल पाया था. बताया जाता है कि उनका शव गहरी खाई में चला गया था, जहां पर काफी ज्यादा बर्फ थी, लेकिन 16 साल बाद सेना ने शव ढूंढ निकाला है. इसके बाद अमरीश के परिवार को सूचना दी गई. मंगलवार (28 सितंबर) को अमरीश का शव उनके पैतृक गांव पहुंच जाएगा, जहां राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.
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सैन्य सम्मान के साथ पार्थिव शरीर गाजियाबाद भेजा गया: वहीं, शहीद जवान के परिजनों ने उत्तरकाशी पुलिस को पत्र लिखकर पार्थिव शरीर को हर्षिल स्थित बिहार रेजिमेंट को सौंपने की बात कही है. जिसके बाद शव का पोस्टमॉर्टम और डीएनए सैंपल लेने के बाद पुलिस की ओर से कॉन्स्टेबल नवीन कवि और उत्तम पुंडीर ने शव को सेना के सुपुर्द किया. पर्वतारोही शहीद नायक अमरीश त्यागी के पार्थिव शव को तिरंगे के साथ कलक्ट्रेट परिसर में बिहार रेजिमेंट के जवानों ने सैन्य सम्मान के साथ सलामी दी. उसके बाद सेना का जवान पार्थिव शव को लेकर शहीद के घर मोदीनगर गाजियाबाद के लिए रवाना हो गए हैं.
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साल 2005 में लापता हुआ था जवानः बता दें कि साल 2005 में आर्मी ऑर्डिनेंस कोर का एक दल सतोपंथ चोटी के आरोहण के लिए गया. उस समय कुछ पर्वतारोही आरोहण के दौरान दुर्घटना का शिकार होकर लापता हो गए थे. भारतीय सेना का एक दल स्वर्णिम विजय वर्ष के उपलक्ष्य में सतोपंथ चोटी के आरोहण के लिए गया था. अभियान के दौरान सेना के दल को एक पर्वतारोही के शव के अवशेष मिले. जिसे सेना के जवानों ने खराब मौसम और खड़ी चढ़ाई को पार कर गंगोत्री पहुंचाया था.
16 साल से इंतजार में परिवार: गाजियाबाद के मुरादनगर के हिसाली गांव में जन्मे अमरीश का परिवार 16 साल से अमरीश के इंतजार में था. उन्हें तो यह भी नहीं पता था कि अमरीश जिंदा हैं या फिर उनकी मौत हो चुकी है. अब 16 साल बाद उनके शव आने की खबर सुनकर परिवार एक बार फिर से भावुक है और उन्हें खुशी है कि वो बेटे का अंतिम संस्कार कर पाएंगे. वहीं अमरीश के शव के आने की खबर सुनकर आसपास के गांव के लोग भी उनके पैतृक गांव पहुंच रहे हैं. बता दें कि अमरीश के पिता ने भी 1962 और 1965 की लड़ाई में अपना योगदान दिया था. कुछ साल पहले पिता और अमरीश की पत्नी का भी देहांत हो चुका है.