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इटली की रूट स्टॉक तकनीक से खिलेंगे बागवानों के चेहरे, आय में होगी बढ़ोतरी

अब देश की दो मल्टीनेशनल कम्पनियों की सहायता से बागवानों का ये इंतजार कम होने वाला है. ये कंपनियां इटली की रूट स्टॉक तकनीक से सेब की बागवानी करना सिखाएंगी. इसकी शुरुआत रवांई घाटी के पुरोला से हो चुकी है.

ईटली की तकनीक से खिलेंगे बागवानों के चेहरे.
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Published : Jun 28, 2019, 6:19 PM IST

Updated : Jun 28, 2019, 11:28 PM IST

उत्तरकाशी: जनपद की हर्षिल और रवांई घाटी में सबसे ज्यादा सेब का उत्पादन होता है. हर्षिल सहित रवांई घाटी में करीब 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. अबतक जनपद के सेब बागवान पुरानी पद्धति से ही सेब का उत्पादन करते थे लेकिन अब सेब उत्पादक इटली की रूट स्टॉक तकनीक से सेब का उत्पादन करेंगे. इसके लिए देश की दो मल्टीनेशनल कम्पनियों ने जिम्मा लिया है.

रूट स्टॉक तकनीक से होगी सेबों की बागवानी.

इन मल्टीनेशनल कम्पनियों ने रवांई घाटी में डेमोस्ट्रेशन के लिए एक यूनिट पौध पुरोला में लगा दी है. इस नई तकनीक से सेब बागवानों को सेब के अच्छे उत्पादन और आजीविका की उम्मीद बंध गई है. सेब बागवान भी इस तकनीक की ओर आकर्षित हो रहे हैं

पढ़ें-बुजुर्ग मां को बेटों ने किया 'अनाथ', भटकते हुए मिला बेटी का साथ

उत्तरकाशी के हर्षिल,मोरी,नौगांव,पुरोला में सेब का उत्पादन होता है. जहां पर एक सेब के पौध को बड़ा होने के लिए बागवानों को 8 से 10 साल की इंतजार करना पड़ता है. लेकिन अब देश की दो मल्टीनेशनल कम्पनियों की सहायता से बागवानों का ये इंतजार कम होने वाला है. ये कंपनियां इटली की रूट स्टॉक तकनीक से सेब की बागवानी करना सिखाएंगी. इसकी शुरुआत रवांई घाटी के पुरोला से हो चुकी है.

पढ़ें-केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग में दिखा दुर्लभ प्रजाति का बाघ, कैमरे में कैद हुईं तस्वीरें

इसके अलावा ये कम्पनियां पहले चरण में मोरी के आराकोट क्षेत्र में 1 यूनिट पौध लगाने की तैयारी भी कर चुकी हैं. बताया जा रहा है कि इस तकनीक के इस्तेमाल से 1 एकड़ में 100 सेब के पौध तैयार हो सकते हैं. इस किफायती तकनीक को देखते हुए सेब बागवान बड़ी संख्या में कंपनी के विशेषज्ञों से संपर्क कर रहे हैं.

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वहीं, स्थानीय सेब बागवान भी इस तकनीक को लेकर खासे उत्सुक नजर आ रहे हैं. इस तकनीक से सेब के पेड़ किसी भी रोग से लड़ सकते हैं. साथ ही इस तकनीक से सेब की बागवानी करने पर खराब नहीं होता. स्थानीय काश्तकारों का कहना है कि जहां पहले सेब के उत्पादन के लिए 8 से 10 वर्ष का इंतजार करना पड़ता था तो वहीं अब इस तकनीक से 1 से 3 साल में ही सेब का उत्पादन कर सकते हैं.

उत्तरकाशी: जनपद की हर्षिल और रवांई घाटी में सबसे ज्यादा सेब का उत्पादन होता है. हर्षिल सहित रवांई घाटी में करीब 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. अबतक जनपद के सेब बागवान पुरानी पद्धति से ही सेब का उत्पादन करते थे लेकिन अब सेब उत्पादक इटली की रूट स्टॉक तकनीक से सेब का उत्पादन करेंगे. इसके लिए देश की दो मल्टीनेशनल कम्पनियों ने जिम्मा लिया है.

रूट स्टॉक तकनीक से होगी सेबों की बागवानी.

इन मल्टीनेशनल कम्पनियों ने रवांई घाटी में डेमोस्ट्रेशन के लिए एक यूनिट पौध पुरोला में लगा दी है. इस नई तकनीक से सेब बागवानों को सेब के अच्छे उत्पादन और आजीविका की उम्मीद बंध गई है. सेब बागवान भी इस तकनीक की ओर आकर्षित हो रहे हैं

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उत्तरकाशी के हर्षिल,मोरी,नौगांव,पुरोला में सेब का उत्पादन होता है. जहां पर एक सेब के पौध को बड़ा होने के लिए बागवानों को 8 से 10 साल की इंतजार करना पड़ता है. लेकिन अब देश की दो मल्टीनेशनल कम्पनियों की सहायता से बागवानों का ये इंतजार कम होने वाला है. ये कंपनियां इटली की रूट स्टॉक तकनीक से सेब की बागवानी करना सिखाएंगी. इसकी शुरुआत रवांई घाटी के पुरोला से हो चुकी है.

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इसके अलावा ये कम्पनियां पहले चरण में मोरी के आराकोट क्षेत्र में 1 यूनिट पौध लगाने की तैयारी भी कर चुकी हैं. बताया जा रहा है कि इस तकनीक के इस्तेमाल से 1 एकड़ में 100 सेब के पौध तैयार हो सकते हैं. इस किफायती तकनीक को देखते हुए सेब बागवान बड़ी संख्या में कंपनी के विशेषज्ञों से संपर्क कर रहे हैं.

पढ़ें-बुजुर्ग मां को बेटों ने किया 'अनाथ', भटकते हुए मिला बेटी का साथ

वहीं, स्थानीय सेब बागवान भी इस तकनीक को लेकर खासे उत्सुक नजर आ रहे हैं. इस तकनीक से सेब के पेड़ किसी भी रोग से लड़ सकते हैं. साथ ही इस तकनीक से सेब की बागवानी करने पर खराब नहीं होता. स्थानीय काश्तकारों का कहना है कि जहां पहले सेब के उत्पादन के लिए 8 से 10 वर्ष का इंतजार करना पड़ता था तो वहीं अब इस तकनीक से 1 से 3 साल में ही सेब का उत्पादन कर सकते हैं.

Intro:हेडलाइन- रूट स्टॉक तकनीक से होगा सेब उत्पादन। नोट- इस खबर के विसुअल बाईट मेल से भेजे गए हैं। उत्तरकाशी। उत्तरकाशी जनपद में प्रदेश का सबसे ज्यादा सेब उत्पादन होता है। उत्तरकाशी के हर्षिल सहित रवांई घाटी में करीब 20 हजार मीट्रिक टन सेब उत्पादन होता है। अब तक जनपद के सेब बागवान पुरानी पद्धति से ही सेब का उत्पादन करते थे। लेकिन अब सेब उत्पादक इटली की रुत स्टॉक तकनीक से सेब का उत्पादन करेंगे। इसके लिए देश की दो मल्टीनेशनल कम्पनी ने जिम्मा लिया है। वहीं मल्टीनेशनल कम्पनी रवांई घाटी में डेमोस्ट्रेशन के लिए भी एक यूनिट पौध पुरोला में लगा चुकी है। तो वहीं इस नई तकनीक से सेब बागवानों को सेब के अच्छे उत्पादन और आजीविका की उम्मीद बंध गई है। सेब बागवान भी इस तकनीक की और आकर्षित हो रहे हैं। क्योंकि इससे सेब का फल 1 से 3 वर्ष के बीच ही मिल जाएगा।


Body:वीओ-1, उत्तरकाशी के हर्षिल,मोरी,नौगांव,पुरोला में सेब का उत्पादन होता है। जहाँ पर एक सेब की पौध के बड़े होने के लिए सेब बागवानों को 8 से 10 वर्ष इंतजार करना पड़ता था। लेकिन अब देश की दो मल्टीनेशनल कम्पनियों की सहायता से इटली की रुत स्टॉक तकनीक का प्रयोग सेब बागवान कर पाएंगे। इसकी शुरुआत रवांई घाटी के पुरोला से हो चुकी है। तो वहीं यह कम्पनियां पहले चरण में मोरी के आराकोट क्षेत्र में 1 यूनिट पौध लगाने की तैयारी कर चुकी है। बताया कि 1 एकड़ में 100 सेब के पौध तैयार हो सकते हैं। जिससे कि अब सेब बागवान भी इन कम्पनियों के विशेषग्यो से सम्पर्क कर रही है।


Conclusion:वीओ-2, स्थानीय सेब बागवान भी इस तकनीक को लेकर उत्सुक नजर आ रहे हैं। वहीं इस तकनीक से सेब के पेड़ किसी भी रोग से लड़ सकते हैं और जल्दी सेब खराब नहीं होगा। स्थानीय काश्तकारों का कहना है कि जहां पहले सेब के उत्पादन के लिए 8 से 10 वर्ष का इंतजार करना पड़ता था। तो वहीं अब 1 से 3 वर्ष के बीच सेब का फल मिलना शुरू हो जाएगा। जिससे कि सेब उत्पादकों को अच्छी आजीविका भी मिलेगी। साथ ही यह युवाओ के स्वरोजगार के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। बाईट- स्थानीय काश्तकार।
Last Updated : Jun 28, 2019, 11:28 PM IST
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