उत्तरकाशीः द्रौपदी का डांडा 2 हिमस्खलन त्रासदी को आज एक साल पूरा हो गया है. यह दिन पर्वतारोहण के इतिहास में कभी न भुलाया जाने वाला काला दिन है. जहां नेहरू पर्वतारोहण संस्थान ने अपने 29 युवा पर्वतारोहियों को खो दिया था. यह घटना इतनी भयावह थी कि किसी को संभलने तक का मौका नहीं मिला. घटना ने दुनियाभर के पर्वतारोहियों को झकझोर कर दिया था. इसके साथ कई परिवारों के घर सुने पड़ गए थे. इस एवलॉन्च की घटना में 27 लोगों की मौत को गई थी. जबकि, दो लोग अब भी लापता हैं.
पर्वतारोहण का काला दिन 4 अक्टूबर: 4 अक्टूबर 2022 को दोपहर बाद मिली इस हादसे की सूचना ने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान प्रबंधन को कभी न भूलाने वाला गम दिया. इस एवलॉन्च में 27 लोगों की मौत हुई थी. जबकि, दो लोगों का अभी तक पता नहीं चल पाया है. इस हादसे में निम के 34 प्रशिक्षुओं का दल द्रौपदी का डांडा 2 चोटी आरोहण के दौरान हिमस्खलन की चपेट में आ गया था. जिसमें 25 प्रशिक्षुओं और 2 प्रशिक्षक समेत कुल 27 लोगों की मौत हो गई थी.
ये लोग अभी भी लापताः वहीं, हादसे के बाद से दो लोग अभी भी लापता चल रहे हैं. जिनमें उत्तराखंड से नौसेना में नाविक विनय पंवार और हिमाचल निवासी लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक वशिष्ट शामिल हैं. हालांकि, उस दौरान निम के साथ एसडीआरएफ की टीम ने दोनों लापता लोगों की खोजबीन के लिए माइनस 25 डिग्री तापमान में भी विशेष अभियान चलाया. इसके लिए निम ने बेंगलुरु से जीपीआर (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार) मंगाकर भी दोनों लापताओं की खोजबीन की थी, लेकिन उनका कोई पता नहीं चला.
उत्तरकाशी ने पर्वतारोही सविता कंसवाल और नौमी रावत को खोयाः हादसे में उत्तरकाशी जिले ने माउंट एवरेस्ट विजेता सविता कंसवाल और पर्वतारोही नौमी रावत को खोया था. दोनों प्रशिक्षुओं के दल में बतौर प्रशिक्षक शामिल थीं. जिनकी मौत की खबर ने उनके परिवार समेत जिले को कभी न भूलने वाला गम दिया. सविता ने कम समय में पर्वतारोहण के क्षेत्र में बड़ा मुकाम हासिल कर लिया था.
उत्तरकाशी की दोनों बेटियों ने विपरीत परिस्थितियों के बीच अपनी पहचान बनाई. 27 वर्षीया सविता कंसवाल ने कड़े संघर्ष से अपनी पहचान बनाई. उन्होंने 12 मई 2022 को माउंट एवरेस्ट और इसके ठीक 16 दिन बाद माउंट मकालू पर्वत पर सफल आरोहण किया. इन राष्ट्रीय रिकॉर्ड को बनाने वाली सविता कंसवाल पहली भारतीय महिला थीं.
जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 15 किमी दूर भटवाड़ी ब्लॉक के लौंथरू गांव की सविता का बचपन कठिनाइयों में गुजरा. सविता के पिता घर का गुजारा करने के लिए पंडिताई का काम करते हैं. सविता चार बेटियों में सबसे छोटी थी. किसी तरह पैसे जुटाकर सविता ने साल 2013 में नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग निम उत्तरकाशी से माउंटेनियरिंग में बेसिक और फिर एडवांस कोर्स किया. इसके लिए उसने देहरादून में नौकरी भी की. वहीं, 7 अक्टूबर को सविता को जल समाधि दी गई.
पर्वतारोही नौमी रावत भी हुई खामोशः वहीं, भटवाड़ी के भुक्की गांव की पर्वतारोही नौमी रावत (नवमी) भी बेहद गरीब परिवार से थी. पर्वतारोहण के क्षेत्र में नौमी ने भी ठीक ठाक पहचान बनाई, लेकिन दुर्भाग्य ने उनको अपनों से छीन लिया. नौमी एक अच्छे प्रशिक्षक के तौर पर जानी जाती थी. नौमी रावत ने भी निम से पर्वतारोहण के गुर सीखे. पर्वतारोही नौमी रावत की शादी उसी साल यानी 2022 को दिसंबर महीने में तय थी, लेकिन उससे पहले वो हिमालय की गोद में सो गईं. नौमी के पिता भी निम में ही काम करते थे और उनके भाई जितेंद्र भी एक कुशल पर्वतारोही हैं.
अजय कोठियाल ने कही ये बातः नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के पूर्व प्राचार्य कर्नल अजय कोठियाल ने कहा कि पर्वतारोहण के दौरान हिमस्खलन की कई घटनाएं घटी है, लेकिन द्रौपदी का डांडा 2 में हुई घटना सबसे दुखदायी है. हालांकि, इस घटना से डरने की नहीं, बल्कि सबक लेने की जरूरत है. ताकि कभी ऐसी घटना घटित होने पर खुद के साथ अपनी टीम के साथियों की जान भी बचाई जा सके.
खास है निम की साखः आजादी के एक साल बाद यानी साल 1948 में देश का पहला पर्वतारोहण संस्थान हिमालय पर्वतारोहण संस्थान दार्जिलिंग में खुला. इसके बाद साल 1965 में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की उत्तरकाशी, साल 1993 में द जवाहर इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग एंड विंटर स्पोर्ट्स निमास की दिरांग में स्थापना हुई. देश के इन चारों पर्वतारोहण संस्थानों में निम की साख सबसे अच्छी मानी जाती रही है.
कई उपलिब्धयां है निम के नामः पर्वतारोहण में निम ने कई कीर्तिमान बनाए हैं. निम एवरेस्ट और शीशा पांगमा समेत तीन दर्जन से ज्यादा चोटियों पर तिरंगा फहरा चुका है. करीब 35 हजार देशी विदेशी पर्वतारोही यहां से प्रशिक्षण हासिल कर चुके हैं. सर्च एंड रेस्क्यू कोर्स कराने वाला यह एशिया का इकलौता संस्थान है. केदारनाथ में पुनर्निर्माण के चुनौतीपूर्ण कार्य को भी विपरीत हालात में कर्नल अजय कोठियाल के नेतृत्व में निम ने बखूबी से अंजाम दिया.
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