ETV Bharat / state

इस शिवधाम में सात रंग बदलता है शिवलिंग, दर्शन के लिए विदेशों से भी आते हैं श्रद्धालु

एक शिवधाम उधम सिंह नगर जिले के भारत- नेपाल सीमा पर चकरपुर गांव में स्थित है. जिसे वनखंडी महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. भारत- नेपाल सीमा पर स्थित होने के कारण यहां भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. जहां हर साल शिवरात्रि पर्व पर मेला भी लगता है.

मंदिर के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु.
author img

By

Published : May 27, 2019, 10:35 AM IST

खटीमा: देवभूमि के हर शिवधाम में लोगों की अटूटआस्था है. जिन मंदिरों का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. श्रद्धालु देवभूमि के प्राकृति नैसर्गिक सौंदर्य के साथ ही यहां के पौराणिक मंदिरों में शिवत्व से भी साक्षात्कार करते हैं. लोगों की अटूट श्रद्धा ही उन्हें यहां खींच लाती है. जहां देश ही नहीं विदेश से भी श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे हैं.

मंदिर में पूजा-अर्चना करने नेपाल से भी पहुंचे हैं श्रद्धालु.

जी हां ऐसा ही एक शिवधाम उधम सिंह नगर जिले के भारत- नेपाल सीमा पर चकरपुर गांव में स्थित है. जिसे वनखंडी महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. भारत- नेपाल सीमा पर स्थित होने के कारण यहां भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. जहां हर साल शिवरात्रि पर्व पर मेला भी लगता है. लोगों का मानना है कि वनखंडी महादेव शिवमंदिर का शिवलिंग महाशिवरात्रि पर्व पर सात रंग बदलता है. इसलिए इस मंदिर की महत्ता क्षेत्र में ही नेपाल तक फैली हुई है. इस शिवधाम की पौराणिक कथा भी काफी रोचक है. जिसे महाभारत काल से जोड़ा जाता है.

मान्यता है कि वनवास के दौरान पांडवों ने शांतियज्ञ किया था और वहीं शांति यज्ञ का एक स्तंभ कांकण नामक स्थान पर शारदा नदीं के बीचों-बीच गाड़ा था. स्थानीय लोक कथाओं में बताया गया है कि महाभारत काल के बाद यहां से मिला शिवलिंग समय की परतों में कहीं खो गया था. जिसकी पुनः खोज स्थानीय थारू जनजाति समाज के आदिवासियों द्वारा की गई. शिवलिंग को न पाकर लोग हैरान रह गए. जिसके बाद थारु जनजाति के एक किसान की गाय पास के ही जंगल में चरने जाती थी. जंगल में गाय एक शिला पर खुद ही दूध देने लगती थी.

जब इस बारे में कुछ लोगों को पता चला तो ग्रामीण दूसरे दिन गाय के पीछे-पीछे चल दिए और जैसे ही उस स्थान पर गाय रुकी तो लोग भी रुक गए वे ये देख हैरान हो गए की गाय शिला पर दूध दे रही है. उस स्थान की सफाई करने पर वहां एक शिवलिंग दिखाई पड़ा. जिसके उसी दिन से यहां शिवलिंग की पूजा शुरू हो गई. लोगों का मानना है कि यहां सच्चे मने से उपासना करने से हर मुराद पूरी होती है. जहां स्थानीय लोग ही नहीं नेपाल से भी श्रद्धालु शीष नवाने पहुंचते हैं. वहीं बद्री दत्त पांडे द्वारा लिखित कुमाऊं के इतिहास में भी इस प्राचीन वनखंडी महादेव के शिवालय का उल्लेख मिलता है.

खटीमा: देवभूमि के हर शिवधाम में लोगों की अटूटआस्था है. जिन मंदिरों का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. श्रद्धालु देवभूमि के प्राकृति नैसर्गिक सौंदर्य के साथ ही यहां के पौराणिक मंदिरों में शिवत्व से भी साक्षात्कार करते हैं. लोगों की अटूट श्रद्धा ही उन्हें यहां खींच लाती है. जहां देश ही नहीं विदेश से भी श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे हैं.

मंदिर में पूजा-अर्चना करने नेपाल से भी पहुंचे हैं श्रद्धालु.

जी हां ऐसा ही एक शिवधाम उधम सिंह नगर जिले के भारत- नेपाल सीमा पर चकरपुर गांव में स्थित है. जिसे वनखंडी महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. भारत- नेपाल सीमा पर स्थित होने के कारण यहां भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. जहां हर साल शिवरात्रि पर्व पर मेला भी लगता है. लोगों का मानना है कि वनखंडी महादेव शिवमंदिर का शिवलिंग महाशिवरात्रि पर्व पर सात रंग बदलता है. इसलिए इस मंदिर की महत्ता क्षेत्र में ही नेपाल तक फैली हुई है. इस शिवधाम की पौराणिक कथा भी काफी रोचक है. जिसे महाभारत काल से जोड़ा जाता है.

मान्यता है कि वनवास के दौरान पांडवों ने शांतियज्ञ किया था और वहीं शांति यज्ञ का एक स्तंभ कांकण नामक स्थान पर शारदा नदीं के बीचों-बीच गाड़ा था. स्थानीय लोक कथाओं में बताया गया है कि महाभारत काल के बाद यहां से मिला शिवलिंग समय की परतों में कहीं खो गया था. जिसकी पुनः खोज स्थानीय थारू जनजाति समाज के आदिवासियों द्वारा की गई. शिवलिंग को न पाकर लोग हैरान रह गए. जिसके बाद थारु जनजाति के एक किसान की गाय पास के ही जंगल में चरने जाती थी. जंगल में गाय एक शिला पर खुद ही दूध देने लगती थी.

जब इस बारे में कुछ लोगों को पता चला तो ग्रामीण दूसरे दिन गाय के पीछे-पीछे चल दिए और जैसे ही उस स्थान पर गाय रुकी तो लोग भी रुक गए वे ये देख हैरान हो गए की गाय शिला पर दूध दे रही है. उस स्थान की सफाई करने पर वहां एक शिवलिंग दिखाई पड़ा. जिसके उसी दिन से यहां शिवलिंग की पूजा शुरू हो गई. लोगों का मानना है कि यहां सच्चे मने से उपासना करने से हर मुराद पूरी होती है. जहां स्थानीय लोग ही नहीं नेपाल से भी श्रद्धालु शीष नवाने पहुंचते हैं. वहीं बद्री दत्त पांडे द्वारा लिखित कुमाऊं के इतिहास में भी इस प्राचीन वनखंडी महादेव के शिवालय का उल्लेख मिलता है.

Intro:एंकर- भोलेनाथ का एक ऐसा शिवलिंग जहां ग्यालो की गाय स्वयं आकर चढ़ा जाती थी अपना सारा दूध .........जो बदलता है शिवरात्रि के दिन सात रंग...जिस शिवलिंग की स्थापना की थी स्वयं महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने, महाभारत काल में स्थापित उत्तराखंड की भारत नेपाल सीमा से लगे जंगलों में स्थित पौराणिक प्राचीन बनखंडी महादेव मंदिर पर देखी हमारी एक खास रिपोर्ट.....

नोट-खबर एफटीपी में है।



Body:वीओ- उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले की भारत नेपाल सीमा पर बसे चकरपुर नामक ग्राम के पास घने जंगलों में स्थित है भगवान भोलेनाथ का प्रसिद्ध मंदिर, जिसे बनखंडी देव महादेव के नाम से भी जाना जाता है। जहां हर साल महाशिवरात्रि के मौके पर लगने वाले मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु आकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन कर मन की शांति पाते हैं। वहीं स्थानीय निवासी से ग्राम देवता के रूप में भी पूजते हैं। स्थानीय लोक कथाओं के अनुसार इस शिवलिंग की स्थापना महाभारत काल में अपने वनवास के दौरान पांडवों ने शांतियज्ञ कर की थी। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण देती है खटीमा से 25 किलोमीटर दूर कांकण नामक स्थान पर गाड़ी गई वह छड़ी स्तंभ जिसे शांति यज्ञ कर स्वयं भीम ने शारदा नदी की धारा के बीचो-बीच गाड़ा था। हालांकि पिछले कुछ वर्ष पहले भूस्खलन के चलते छड़ी नदी में समा गई हो, लेकिन पांडव काल में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान चकरपुर के बनखंडी महादेव के शिवलिंग की स्थापना के बाद इस भीम ने छड़ी को शारदा नदी की धार के बीचो बीच लड़ा गया था।
वर्तमान में मंदिर के बारे में भी स्थानीय लोक कथाओं में बताया गया है कि महाभारत काल के बाद यहां से मिली शिवलिंग समय की परतों में कहीं खो गया था। इसकी पुनः खोज स्थानीय थारू जनजाति समाज के आदिवासियों ने तब की जब जंगल में चरने वाली उनकी गाये इस स्थान पर स्वयं अपना सारा दूध शिवलिंग पर चढ़ा देती है। जिसके बाद तत्कालीन चंद्रवंशी राजाओं ने इस मंदिर का निर्माण करवाया, और तब से ही यहां हर साल शिवरात्रि पर एक भव्य मेले का आयोजन होता है। मेले में देश के कई स्थानों के साथ-साथ नेपाल से भी श्रद्धालु आकर भोले बाबा के दर्शन कर अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। जिनकी हर प्रार्थना को बनखंडी महादेव हमेशा पूरा करते हैं। वही शिवरात्रि के दिन रोहिणी नक्षत्र में यह अद्भुत व पुराणिक शिवलिंग सात रंग भी बदलता है। जिसके चलते बनखंडी महादेव शिवालय लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। बद्री दत्त पांडे द्वारा लिखित कुमाऊ के इतिहास में भी इस प्राचीन बनखंडी महादेव के शिवालय का उल्लेख मिलता है।

बाइट- भुवन जोशी पुजारी वनखंडी महादेव शिवालय

वीओ 2- इस पौराणिक मंदिर में जहां स्थानीय लोगों की अपार आस्था है वही अपनी मनोकामनाओं को लेकर बनखंडी महादेव के दर्शनों को श्रद्धालु दूर-दूर से आकर अपनी मनोकामनाओं को भोलेनाथ के दर्शनों को कर प्राप्त करते हैं। स्थानीय लोग इन्हें ग्राम देवता के रूप में पूजते हैं। वहीं उनके अनुसार भोलेनाथ पौराणिक काल से क्षेत्र के लोगों की रक्षा भी करते रहे हैं। शिवरात्रि के समय लगने वाले भव्य मेले में हर साल लाखों श्रद्धालु बनखंडी महादेव के प्राचीन शिवालय में जल चढ़ा महादेव से अपनी मनोकामना की प्राप्ति करते हैं।

बाइट-गणेश पुजारा स्थानीय निवासी व श्रद्धालु


Conclusion:फाइनल वीओ- बनखंडी महादेव के स्वामी मंदिर में जहा शिवरात्रि के दिन अपार भक्तों का मेला लगता है। वही मान्यता के अनुसार इस दिन भोलेनाथ का यह शिवलिंग सात रंग भी बदलता है। कुमाऊं के इतिहास में वर्णित इस पौराणिक मंदिर की समृद्धि जहां दिनों दिन लगातार बढ़ती जा रही है। वही नेपाल व भारत के लाखों लोगों की आस्था के केंद्र के रूप में पौराणिक काल से यह मंदिर स्थापित है। और जहां आने वाले हर वक्त की मनोकामना को बनखंडी महादेव पूरा करते हैं। बनखंडी महादेव की अपार प्रसिद्धि के चलते मंदिर स्थान के पास ही 100 फीट ऊंची शिव भगवान की मूर्ति का भी निर्माण किया जा रहा है, जो आने वाले स्वयं इस प्राचीन मंदिर की शोभा को और बढ़ा देगा।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.