खटीमा: देवभूमि के हर शिवधाम में लोगों की अटूटआस्था है. जिन मंदिरों का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. श्रद्धालु देवभूमि के प्राकृति नैसर्गिक सौंदर्य के साथ ही यहां के पौराणिक मंदिरों में शिवत्व से भी साक्षात्कार करते हैं. लोगों की अटूट श्रद्धा ही उन्हें यहां खींच लाती है. जहां देश ही नहीं विदेश से भी श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे हैं.
जी हां ऐसा ही एक शिवधाम उधम सिंह नगर जिले के भारत- नेपाल सीमा पर चकरपुर गांव में स्थित है. जिसे वनखंडी महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. भारत- नेपाल सीमा पर स्थित होने के कारण यहां भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. जहां हर साल शिवरात्रि पर्व पर मेला भी लगता है. लोगों का मानना है कि वनखंडी महादेव शिवमंदिर का शिवलिंग महाशिवरात्रि पर्व पर सात रंग बदलता है. इसलिए इस मंदिर की महत्ता क्षेत्र में ही नेपाल तक फैली हुई है. इस शिवधाम की पौराणिक कथा भी काफी रोचक है. जिसे महाभारत काल से जोड़ा जाता है.
मान्यता है कि वनवास के दौरान पांडवों ने शांतियज्ञ किया था और वहीं शांति यज्ञ का एक स्तंभ कांकण नामक स्थान पर शारदा नदीं के बीचों-बीच गाड़ा था. स्थानीय लोक कथाओं में बताया गया है कि महाभारत काल के बाद यहां से मिला शिवलिंग समय की परतों में कहीं खो गया था. जिसकी पुनः खोज स्थानीय थारू जनजाति समाज के आदिवासियों द्वारा की गई. शिवलिंग को न पाकर लोग हैरान रह गए. जिसके बाद थारु जनजाति के एक किसान की गाय पास के ही जंगल में चरने जाती थी. जंगल में गाय एक शिला पर खुद ही दूध देने लगती थी.
जब इस बारे में कुछ लोगों को पता चला तो ग्रामीण दूसरे दिन गाय के पीछे-पीछे चल दिए और जैसे ही उस स्थान पर गाय रुकी तो लोग भी रुक गए वे ये देख हैरान हो गए की गाय शिला पर दूध दे रही है. उस स्थान की सफाई करने पर वहां एक शिवलिंग दिखाई पड़ा. जिसके उसी दिन से यहां शिवलिंग की पूजा शुरू हो गई. लोगों का मानना है कि यहां सच्चे मने से उपासना करने से हर मुराद पूरी होती है. जहां स्थानीय लोग ही नहीं नेपाल से भी श्रद्धालु शीष नवाने पहुंचते हैं. वहीं बद्री दत्त पांडे द्वारा लिखित कुमाऊं के इतिहास में भी इस प्राचीन वनखंडी महादेव के शिवालय का उल्लेख मिलता है.