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बाजपुरः 6 हजार एकड़ लीज भूमि मामले में गरमाई राजनीति, खरीद-फरोख्त पर लगी रोक - बाजपुर में 6 हजार एकड़ लीज भूमि मामला

उधम सिंह नगर जिले में 4805 एकड़ जमीन पर प्रशासन द्वारा खरीद फरोख्त पर रोक लगाने के बाद राज्य की राजनीति में अचानक उबाल आ गया है. सत्ता पक्ष और विपक्ष इस मामले में लगातार राजनीति कर रहे हैं.

लीज भूमि मामले में राजनीति गर्मायी
लीज भूमि मामले में राजनीति गर्मायी
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Published : Feb 27, 2020, 1:58 PM IST

बाजपुरः जहां एक ओर किसान कर्ज के तले दबे हुए अपनी जीवन लीला कर रहे हैं तो वहीं, जिला प्रशासन की मनमानी से किसान आत्म हत्या करने पर मजबूर हैं. ऐसा ही एक मामला इन दिनों सुर्खियों में है. 20 गांवों के एक लाख लोगों को प्रभावित करने वाले लगभग 6 हजार एकड़ भूमि मामले ने किसानों की रातों की नींद हराम कर दी है, जिसने अब राजनीतिक रूप धारण कर लिया है. सत्तापक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप मढ़ते नजर आ रहें हैं. ऐसे में जिलाधिकारी के आदेश के बाद पूरे क्षेत्र में हड़कंप मचा हुआ है.

बता दें कि उधम सिंह नगर में 5,838 एकड़ भूमि की खरीद-फरोख्त पर लगी रोक के बाद क्षेत्र में हड़कंप मचा हुआ है, जिससे किसानों की रातों की नींद हराम हो गयी है. वहीं, इस पूरे प्रकरण के बाद अब नेता अपनी अपनी राजनीति की रोटियां सेंकते नजर आ रहे हैं. सत्ताधारी नेता जनता को पूरा भरोसा देते हुए किसी की भी भूमि को नहीं छीनने का आश्वासन दे रहें हैं, तो विपक्षी दल बीजेपी पर गंभीर आरोप लगा कर अपनी राजनीति चमका रहे हैं.

कांग्रेस पार्टी मुद्दे को भुनाने के प्रयास में लगी है. अब कांग्रेसियों के बड़े नेताओं ने बाजपुर में अपना डेरा डाल दिया है, जहां पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मोर्चा संभाल लिया है और आलाधिकारियों से आदेश वापस लेने की मांग कर रहें हैं. इस दौरान कांग्रेसियों ने स्थानीय विधायक और कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के इस मामले पर चुप्पी साधने को लेकर सवाल उठाये. सूबे के कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने कहा है कि विपक्ष को राजनीति करनी चाहिए लेकिन गलत राजनीति नहीं. उनका कहना है कि किसी को उजड़ने नहीं दिया जाएगा.

आखिर क्या है पूरा मामला

बता दें कि सन 1920 में लाला खुशीराम पुत्र प्रभुदयाल ने ब्रिटिश सरकार से 4805 एकड़ ( तहसील बाजपुर के 12 गांव में ) लीज पर ली, जोकि 93 वर्ष के लिये अर्थात 2013 तक थी. इसका उद्देश्य जंगल खत्म कर कृषि योग्य जमीन बनाना था. यह लीज मुकदमेबाजी अधिनियम में दी गयी थी. लीज की शर्तो में यह भी प्रावधान थे. यह लीज कुछ अन्य लीजों से अलग थी. इसमें जमीन बेचने का एवं किराए पर देने का अधिकार प्राप्त था. 1961 की प्रथम सीलिंग आने से पहले सभी पट्टे दिए जा चुके थे. यह की 1966 में सरकारी ठेकेदार एक्ट सेक्शन 3 के अधीन लीज निर्धारित की गयी 1967 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस एक्ट को अल्ट्रा विर्स घोषित किया.

यह भी पढ़ेंः वनरक्षक भर्ती परीक्षा: प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने हिरासत में लिया, परीक्षा निरस्त करने की मांग

इन खामियों को दूर करते हुए उत्तरप्रदेश सरकार ने इस एक्ट को पुनःसत्यापित किया गया . 16 अक्टूबर 1970 को (ZA & LR ACT के तहत) उस समय के जिलाधिकारी बसंत गोस्वामी ने शासनादेश के आधार पर जारी किया जिसमे यह कहा गया कि जो जिस वर्ग में है वह उसी वर्ग में दर्ज होगा.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश “ FURTHER, AS POINTED OUT EARLIER, THE TENANT PERMANENTLY IN PLACE OF HIS EARLIER RIGHTS AS A TENURE- LASSEE WHICH WERE TO EXPIRE AFTER 2013. THIS IS , THEREFORE, A CLEAR CASE OF MODIFICATION OF THE RIGHTS AND NOT OF ACQUISITION OF ALL THE RIGHTS. IT CANNOTS BE CONTENDED FURTHER THAT THIS MODIFICATION IS LESS BENEFICIAL TO THE APELLANT.”HENCE THIS IS A CASE OF MODIFICATION OF HIS RIGHTS & NOT A CASE OF LAND ACQUISITION, HENCE NO COMPENSATION IS PAYABLE.

वहीं, लीज लेने वाले संजय सूद की माने तब इनके पूर्वजों को अंग्रेजी हुकूमत के दौरान 93 वर्ष के लिये लीज पर दी गयी थी यह सुप्रीम कोर्ट में भी केश जीत चुके हैं और उन्हें इस भूमि को बेचने के अधिकार भी दे दिए गए थे.

यह भी पढ़ेंः पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ मशाल लेकर सड़क पर उतरा जनरल ओबीसी इम्प्लाइज एसोसिएशन, दी ये चेतावनी

अब मौजूदा जिलाधिकारी ने एक लाख लोगों को प्रभावित किया है जिसमें 6 हजार एकड़ भूमि आती है. पीड़ित किसान चरन सिंह ने बताया कि वे हिंदुस्तान ओर पाकिस्तान के बंटबारे के दौरान विस्थापित होकर भारत आये थे. अब उनकी भूमि को भी छीना जा रहा है. उनका परिवार इस सदमे में है. किसान पहले से ही कर्ज के तले दबे हुए हैं. दूसरी ओर जिला प्रशासन की ये मनमानी. यदि ऐसा ही रहा तब पूरा परिवार आत्म हत्या करने पर मजबूर होगा.

बाजपुरः जहां एक ओर किसान कर्ज के तले दबे हुए अपनी जीवन लीला कर रहे हैं तो वहीं, जिला प्रशासन की मनमानी से किसान आत्म हत्या करने पर मजबूर हैं. ऐसा ही एक मामला इन दिनों सुर्खियों में है. 20 गांवों के एक लाख लोगों को प्रभावित करने वाले लगभग 6 हजार एकड़ भूमि मामले ने किसानों की रातों की नींद हराम कर दी है, जिसने अब राजनीतिक रूप धारण कर लिया है. सत्तापक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप मढ़ते नजर आ रहें हैं. ऐसे में जिलाधिकारी के आदेश के बाद पूरे क्षेत्र में हड़कंप मचा हुआ है.

बता दें कि उधम सिंह नगर में 5,838 एकड़ भूमि की खरीद-फरोख्त पर लगी रोक के बाद क्षेत्र में हड़कंप मचा हुआ है, जिससे किसानों की रातों की नींद हराम हो गयी है. वहीं, इस पूरे प्रकरण के बाद अब नेता अपनी अपनी राजनीति की रोटियां सेंकते नजर आ रहे हैं. सत्ताधारी नेता जनता को पूरा भरोसा देते हुए किसी की भी भूमि को नहीं छीनने का आश्वासन दे रहें हैं, तो विपक्षी दल बीजेपी पर गंभीर आरोप लगा कर अपनी राजनीति चमका रहे हैं.

कांग्रेस पार्टी मुद्दे को भुनाने के प्रयास में लगी है. अब कांग्रेसियों के बड़े नेताओं ने बाजपुर में अपना डेरा डाल दिया है, जहां पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मोर्चा संभाल लिया है और आलाधिकारियों से आदेश वापस लेने की मांग कर रहें हैं. इस दौरान कांग्रेसियों ने स्थानीय विधायक और कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के इस मामले पर चुप्पी साधने को लेकर सवाल उठाये. सूबे के कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने कहा है कि विपक्ष को राजनीति करनी चाहिए लेकिन गलत राजनीति नहीं. उनका कहना है कि किसी को उजड़ने नहीं दिया जाएगा.

आखिर क्या है पूरा मामला

बता दें कि सन 1920 में लाला खुशीराम पुत्र प्रभुदयाल ने ब्रिटिश सरकार से 4805 एकड़ ( तहसील बाजपुर के 12 गांव में ) लीज पर ली, जोकि 93 वर्ष के लिये अर्थात 2013 तक थी. इसका उद्देश्य जंगल खत्म कर कृषि योग्य जमीन बनाना था. यह लीज मुकदमेबाजी अधिनियम में दी गयी थी. लीज की शर्तो में यह भी प्रावधान थे. यह लीज कुछ अन्य लीजों से अलग थी. इसमें जमीन बेचने का एवं किराए पर देने का अधिकार प्राप्त था. 1961 की प्रथम सीलिंग आने से पहले सभी पट्टे दिए जा चुके थे. यह की 1966 में सरकारी ठेकेदार एक्ट सेक्शन 3 के अधीन लीज निर्धारित की गयी 1967 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस एक्ट को अल्ट्रा विर्स घोषित किया.

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इन खामियों को दूर करते हुए उत्तरप्रदेश सरकार ने इस एक्ट को पुनःसत्यापित किया गया . 16 अक्टूबर 1970 को (ZA & LR ACT के तहत) उस समय के जिलाधिकारी बसंत गोस्वामी ने शासनादेश के आधार पर जारी किया जिसमे यह कहा गया कि जो जिस वर्ग में है वह उसी वर्ग में दर्ज होगा.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश “ FURTHER, AS POINTED OUT EARLIER, THE TENANT PERMANENTLY IN PLACE OF HIS EARLIER RIGHTS AS A TENURE- LASSEE WHICH WERE TO EXPIRE AFTER 2013. THIS IS , THEREFORE, A CLEAR CASE OF MODIFICATION OF THE RIGHTS AND NOT OF ACQUISITION OF ALL THE RIGHTS. IT CANNOTS BE CONTENDED FURTHER THAT THIS MODIFICATION IS LESS BENEFICIAL TO THE APELLANT.”HENCE THIS IS A CASE OF MODIFICATION OF HIS RIGHTS & NOT A CASE OF LAND ACQUISITION, HENCE NO COMPENSATION IS PAYABLE.

वहीं, लीज लेने वाले संजय सूद की माने तब इनके पूर्वजों को अंग्रेजी हुकूमत के दौरान 93 वर्ष के लिये लीज पर दी गयी थी यह सुप्रीम कोर्ट में भी केश जीत चुके हैं और उन्हें इस भूमि को बेचने के अधिकार भी दे दिए गए थे.

यह भी पढ़ेंः पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ मशाल लेकर सड़क पर उतरा जनरल ओबीसी इम्प्लाइज एसोसिएशन, दी ये चेतावनी

अब मौजूदा जिलाधिकारी ने एक लाख लोगों को प्रभावित किया है जिसमें 6 हजार एकड़ भूमि आती है. पीड़ित किसान चरन सिंह ने बताया कि वे हिंदुस्तान ओर पाकिस्तान के बंटबारे के दौरान विस्थापित होकर भारत आये थे. अब उनकी भूमि को भी छीना जा रहा है. उनका परिवार इस सदमे में है. किसान पहले से ही कर्ज के तले दबे हुए हैं. दूसरी ओर जिला प्रशासन की ये मनमानी. यदि ऐसा ही रहा तब पूरा परिवार आत्म हत्या करने पर मजबूर होगा.

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