काशीपुरः ग्रीष्म ऋतु में किसान ज्यादा मुनाफे कमाने के लिए बे-मौसमी धान बोते हैं, लेकिन बे-मौसमी फसल को वैज्ञानिकों ने मुनाफा कम और नुकसान ज्यादा बताया है. ग्रीष्म ऋतु में मक्के की फसल धान के मुकाबले बेहतर विकल्प है. इससे भूजल स्तर संतुलित करने और मिथेन का उत्सर्जन रोकने में मदद मिलती है. मक्के में कम लागत में किसान अच्छा मुनाफा कमा सकता है. साथ ही इससे खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी.
बाजपुर रोड स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों ने किसानों को जागरुक करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं. किसानों को ग्रीष्मकालीन धान की फसल के विकल्प के रुप में मक्के की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. डॉ. जितेंद्र क्वात्रा ने बताया कि किसान बे-मौसमी धान अक्सर ज्यादा फायदे के लिए फसल बोते हैं. लेकिन इस फसल से फायदा कम और नुकसान ज्यादा हैं.
उन्होंने कहा की बसंत कालीन मौसम में कई वर्षों तक लगातार धान की खेती करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी आ जाती है. फसल चक्र में असंतुलन से उत्पादकता प्रभावित होती है. इससे मिथेन गैस का अधिक उत्सर्जन होता है. जिससे ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचता है. लगातार बे-मौसमी धान की ऊपज से भूजल गिरता है और धान की अगली फसल पर भिन्न प्रकार की बीमारियां और कीड़े लग जाते हैं. जिससे किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है.
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उन्होंने कहा कि बे-मौसमी धान से बेहतर विकल्प मक्के की खेती है, जिसे प्रोत्साहित किया जा रहा है. उन्होंने ने बताया धान की अपेक्षा मक्के की लागत 25 फीसदी कम है, जबकि मुनाफा 40% तक अधिक है. मक्के की फरवरी के प्रथम सप्ताह से तीसरे सप्ताह तक बोई जाती है. बाद में गर्म हवा चलने पर पराग कणों के सूखने की संभावना रहती है. जिससे दाना नहीं पड़ता और मक्के की फसल 100 दिन में तैयार हो जाती है. किसानों को फायदा देने के साथ-साथ जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है.