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बाजार से रौनक गायब होने पर कुम्हारों की चिंता बढ़ी, दीवाली पर दीयों की बिक्री को लेकर परेशान

काशीपुर में दीपावली (Deepawali) का बाजार सज चुका है. बात अगर बाजार की करें तो मिट्टी के बने दीयों का बाजार भी सज गया है. हालांकि इस बाजार से रौनक गायब है. जिससे कुम्हारों के आगे रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है.

Kashipur
दीये के बाजार से रौनक गायब
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Published : Oct 31, 2021, 3:44 PM IST

काशीपुर: इस बार 4 नवंबर को दीपावली मनाई जाएगी. काशीपुर में दीपावली (Deepawali) का बाजार सज चुका है. बात अगर बाजार (Market) की करें तो मिट्टी के बने दीयों का बाजार भी सज गया है. हालांकि इस बाजार से रौनक गायब है. क्योंकि इस बार भी मिट्टी के दीये को लोग कम खरीद रहे हैं. अबकी दीये की जगह फैंसी दीये और विद्युत झालर ने ली है. जिसके कारण कुम्हारों का यह पुश्तैनी धंधा सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है. जिससे कुम्हारों के आगे रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है.

दीपावली का पर्व नजदीक है. दीपावली के पर्व पर मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगरों के चेहरे मुरझाए हुए हैं. क्योंकि इस बार भी मिट्टी के दीये (Earthen lamps) को लोग कम खरीद रहे हैं. जिस कारण मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगरों को आर्थिकी की चिंता सताने लगी है. दीपावली पर्व को लेकर कुम्हार परिवार दुर्गापूजा के बाद से ही अपनी तैयारी शुरू कर देते हैं. कुम्हार परिवार मिट्टी के छोटे-बड़े दीये, कलश और लक्ष्मी की मूर्ति बनाकर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं.

पढ़ें- अल्मोड़ा: 400 साल पुराना ताम्र उद्योग झेल रहा उपेक्षा का दंश, कारीगरों के सामने रोजी रोटी का संकट

लेकिन उनके कारोबार पर भी आधुनिकता की मार साफ देखी जा सकती है. जिसके कारण इन कुम्हारों के चेहरों पर चिंता की लकीरें और मायूसी भी देखने को मिल रही है. काशीपुर के दिये बनाने वाले 70 साल के बुजुर्ग एवज हुसैन और उनकी पत्नी सगीरन ने बताया कि हमें अपने पुरखों से विरासत में यही काम मिला, दीवाली में हमारे हाथों से बने दीये और मिट्टी के बर्तन कभी देश के कई हिस्सों के साथ ही विदेशों तक जाते थे. लेकिन मांग कम होने की वजह से रोजी-रोटी का संकट उभर आया है.

पढ़ें- इस साल 10 हजार से ज्यादा पर्यटकों ने किया फूलों की घाटी का दीदार

उन्होंने कहा कि आज इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से बने झालर बाजार में अपना कब्जा किए हुए हैं. जिस कारण इस पारंपरिक व्यापार पर चोट पहुंच रही है. उन्होंने कहा कि आज भले ही जमाना आधुनिकता की ओर बढ़ रहा हो, लेकिन जमान कल इसी पर लौटकर आएगा. उन्होंने इस पारंपरिक व्यवसाय को संजोने रखने के लिए सरकार को आगे आने की मांग की. जिससे अतीत के इस पारंपरिक व्यवसाय से आने वाली पीढ़ी रूबरू हो सके.

काशीपुर: इस बार 4 नवंबर को दीपावली मनाई जाएगी. काशीपुर में दीपावली (Deepawali) का बाजार सज चुका है. बात अगर बाजार (Market) की करें तो मिट्टी के बने दीयों का बाजार भी सज गया है. हालांकि इस बाजार से रौनक गायब है. क्योंकि इस बार भी मिट्टी के दीये को लोग कम खरीद रहे हैं. अबकी दीये की जगह फैंसी दीये और विद्युत झालर ने ली है. जिसके कारण कुम्हारों का यह पुश्तैनी धंधा सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है. जिससे कुम्हारों के आगे रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है.

दीपावली का पर्व नजदीक है. दीपावली के पर्व पर मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगरों के चेहरे मुरझाए हुए हैं. क्योंकि इस बार भी मिट्टी के दीये (Earthen lamps) को लोग कम खरीद रहे हैं. जिस कारण मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगरों को आर्थिकी की चिंता सताने लगी है. दीपावली पर्व को लेकर कुम्हार परिवार दुर्गापूजा के बाद से ही अपनी तैयारी शुरू कर देते हैं. कुम्हार परिवार मिट्टी के छोटे-बड़े दीये, कलश और लक्ष्मी की मूर्ति बनाकर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं.

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लेकिन उनके कारोबार पर भी आधुनिकता की मार साफ देखी जा सकती है. जिसके कारण इन कुम्हारों के चेहरों पर चिंता की लकीरें और मायूसी भी देखने को मिल रही है. काशीपुर के दिये बनाने वाले 70 साल के बुजुर्ग एवज हुसैन और उनकी पत्नी सगीरन ने बताया कि हमें अपने पुरखों से विरासत में यही काम मिला, दीवाली में हमारे हाथों से बने दीये और मिट्टी के बर्तन कभी देश के कई हिस्सों के साथ ही विदेशों तक जाते थे. लेकिन मांग कम होने की वजह से रोजी-रोटी का संकट उभर आया है.

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उन्होंने कहा कि आज इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से बने झालर बाजार में अपना कब्जा किए हुए हैं. जिस कारण इस पारंपरिक व्यापार पर चोट पहुंच रही है. उन्होंने कहा कि आज भले ही जमाना आधुनिकता की ओर बढ़ रहा हो, लेकिन जमान कल इसी पर लौटकर आएगा. उन्होंने इस पारंपरिक व्यवसाय को संजोने रखने के लिए सरकार को आगे आने की मांग की. जिससे अतीत के इस पारंपरिक व्यवसाय से आने वाली पीढ़ी रूबरू हो सके.

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