गदरपुर: उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों से पलायन को रोकने और युवाओं को रोजगार देने का सबसे कारगर तरीका प्रदेश में जड़ी-बूटियों का उत्पादन करना था. इससे न सिर्फ युवाओं को रोजगार मिलता बल्कि किसानों की आय भी दो गुनी हो सकती थी, लेकिन अब ये सपना टूटता जा रहा है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2010 में करीब औषधीय पौधे की संख्या 21 लाख की जो अब घटकर पांच हजार के आसपास रह गई है. यह खुलासा आरटीआई (सूचना का अधिकार अधिनियम) में मिली जानकारी से हुआ है.
भूतपूर्व राष्ट्रपति के मानद चिकित्सक और पद्मश्री से सम्मानित वैद्य बालेंदु प्रकाश का कहना है कि जड़ी-बूटियों को लेकर प्रदेश सरकार कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री के अध्यक्षता वाले औषधीय पादप बोर्ड की बैठक पिछले 10 सालों से नहीं हुई है. लगभग नौ करोड़ रुपए और 54 कर्मचारी की फौज के बावजूद इस बोर्ड की हालत बद से बदतर हैं.
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वैद्य बालेंदु ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आयुष को देश और विदेशों में बढ़ाने की पुरजोर वकालत कर रहे हैं. यही कारण है उन्होंने पिछले पांच सालों में इसका बजट 1.260 करोड़ रुपए से बढ़कर 1.746 करोड़ रुपए कर दिया. लेकिन आयुर्वेद का उद्गम स्रोत चरक ऋषि की जम्मस्थली उत्तराखंड में आयुर्वेद की मूलभूत इकाई जड़ी-बूटियों का उत्पादन पर सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है.
वैद्य बालेंदु ने कहा कि उन्होंने 2010 में जड़ी-बूटी शोध शुरू किया था. जिसमें से अधिकांश बेशकीमती जड़ी-बूटी की पैदावार 21 लाख की थी, जो 2019 तक आते-आते पांच हजार तक सीमित रह गई. इसके अलावा कई बेशकीमती जड़ी-बूटियों का उत्पादन भी पिछले सात सालों में बंद कर दिया गया.
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वैद्य बालेंदु ने बताया कि इस प्रदेश में जड़ी-बूटी की सात प्रजातियां चिन्हित थी, लेकिन अब उसमें से मात्र तीन ही रह गई है. केंद्र सरकार ने जड़ी-बूटियों के प्रोत्साहन के लिए राज्य सरकार को करोड़ों रुपए दिए थे, लेकिन उस पैसा का कोई उपयोग नहीं किया गया. वैद्य बालेंदु को ये सभी जानकारी आरटीआई (सूचना का अधिकार अधिनियम) के तहत मिली है.