रुद्रपुर: कोरोनाकाल के बाद रुद्रपुर में प्रसिद्ध मां अटरिया धाम में मेले का आगाज हो गया है. शनिवार को माता अटरिया का डोला हजारों श्रद्धालुओं के बीच रमपुरा से अटरिया मंदिर जगतपुरा लाया गया. अब मां 29 अप्रैल तक मंदिर में श्रद्धालुओं को दर्शन देंगी, जिसके बाद पूरे विधि-विधान के साथ 29 अप्रैल को माता का डोला रमपुरा ले जाया जाएगा.
रुद्रपुर के अटरिया मेले का शनिवार को आगाज हो गया है. लगभग एक माह तक चलने वाले इस मेले में देश के कई राज्यों से श्रद्धालु मां के दर्शनों के लिए पहुंचे हैं. शनिवार को मां का डोला हजारों श्रद्धालुओं के बीच रमपुरा से अटरिया मंदिर जगतपुरा में पूरे विधि-विधान के साथ लाया गया, जिसके बाद माता अटरिया को मंदिर में स्थापित कर मंदिर के कपाट को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया.
इस दौरान हजारों श्रद्धालुओं ने मां के दर्शन कर मनोकामना भी मांगी. पिछले दो वर्षों से कोरोनाकाल के चलते अटरिया मेला का आयोजन नहीं हो पाया था. लेकिन इस बार प्रशासन से अनुमति मिलने के बाद मेले को और भी अधिक भव्य बनाया गया है. शनिवार को रमपुरा से गाजे-बाजे के साथ मां अटरिया का डोला निकला. जगह-जगह मां के डोले का पुष्प वर्षा कर स्वागत किया गया. शोभायात्रा के दौरान मुख्य रूप से राधा कृष्ण की झांकी व शंकर पार्वती का नृत्य आकर्षण का केंद्र बना रहा.
इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रही. मेले को लेकर झूले, विभिन्न स्टॉल और दुकाने सजनी शुरू हो गई हैं. माता के डोले लाये जाने के दौरान मेयर रामपाल विधायक शिव अरोरा भी मौजूद रहे. वहीं, एसएसपी मंजू नाथ टीसी ने भी मंदिर में पहुंच कर सुरक्षा का जायजा लिया.
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डोले को कंधे में उठा कर लाता है जावेद खान: हर साल की तरह इस वर्ष भी माता की सेवा के लिए जावेद खान मंदिर में व्यवस्था बनाने के लिए लगा हुआ है. जावेद साल 2002 से इस मेले में बढ़-चढ़ कर भाग लेता है. हर साल माता के डोले को जावेद खान ही कंधे पर लाता है.
ये है मंदिर का इतिहास: 200 ईसवी के आसपास बना मां अटरिया धाम आज भी लोगों की अगाध श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है. उत्तराखंड ही नहीं बल्की देश भर से श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए मंदिर पहुंचते हैं. नवरात्रि के दिनों में मां के दर्शन के लिए मंदिर में भीड़ हो रही है. कहा जाता है कि निर्माण के बाद किसी आक्रमणकारी ने मंदिर को तोड़ दिया था और मूर्तियों को पास के कुएं में डाल दिया था. मंदिर के पुजारी पंकज गौड़ ने बताया कि साल 1588 में अकबर का शासन काल था, जिसके बाद तराई का क्षेत्र राजा रूद्र चंद के कब्जे में आया.
ऐसा माना जाता है की एक बार राजा रूद्र इस क्षेत्र के जंगल में घूम रहे थे. इस दौरान उनका रथ का पहिया मंदिर वाले स्थान पर फंस गया. काफी कोशिश के बाद भी रथ का पहिया नहीं निकला, तो वह पास के ही बरगद के पेड़ के नीचे आराम करने लगे. तभी उन्हें स्वपन में माता ने बताया कि जिस स्थान पर रथ का पहिया फंसा हुआ है. उसके नीचे कुआं हैं, जहां पर मेरी प्रतिमा को दबा दिया गया है. जैसे ही राजा जागे और उन्होंने सिपाहियों को खुदवाने में लगाया तो कुएं से माता अटरिया की मूर्ति निकली, जिसके बाद राजा रूद्र ने उस स्थान पर मंदिर बनाया. तब से लेकर अब तक यहा पर मेले का आयोजन होता रहता है.